इस्लाम के आगमन के बाद भारत में छुआछूत आई: आरएसएस नेता कृष्ण गोपाल
नई दिल्ली, 27 अगस्त (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने दावा किया कि भारत में इस्लाम आने के बाद छुआछूत की प्रथा शुरू हुई थी और इस्लाम के साथ ही दलित शब्द भी इस्तेमाल में आया. अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति के लिए इसका खूब इस्तेमाल भी किया. एक कार्यकम में कृष्ण गोपाल ने कहा कि आरएसएस जातिविहीन समाज बनाने में विश्वास करता है. गोपाल ने कहा कि भारत में सबसे पहले छुआछूत का केस इस्लाम आने के बाद ही सामने आया था. राजा दहीर (सिंध के आखिरी हिंदू राजा) की पत्नियां जौहर करने जा रही थीं. इस दौरान मलेच्छा शब्द का इस्तेमाल किया गया.
जौहर करने जा रही रानियों को कहा गया कि आप जल्द जौहर कर लें नहीं तो मलेच्छा आपको छू लेंगे और आप सब अपवित्र हो जाओगे. इससे भारत में पहली बार जाति के आधार पर लोगों को विभाजित किया गया. उन्होंने कहा कि आज मौर्य को पिछड़ा वर्ग में गिना जाता है, जबकि पहले इन्हें उच्च जाति में गिनते थे, पाल बंगाल में राजा थे. आज ये पिछड़ा वर्ग में आते हैं. आज बुद्ध की जाति शाक्य भी ओबीसी बन गई है. दलित शब्द हमारे समाज में नहीं है. इसका इस्तेमाल ब्रिटिशों का षडयंत्र है क्योंकि ब्रिटिश भारत में फूट डालो और शासन करो की नीति पर राज करते थे. संविधान सभा ने भी दलित शब्द के इस्तेमाल को नकार दिया था. आरएसएस नेता ने कहा कि इस्लाम का शासन अंधकार युग था, भारत इसलिए बच गया क्योंकि इसकी आध्यात्मिक जड़ें बहुत मजबूत हैं. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत में जातीय भेदभाव था, लेकिन छुआछूत कभी नहीं था. जो भी गोमांस खाता था उसे अछूत घोषित कर दिया जाता था. आंबेडकर ने भी इसके बारे में लिखा है. देखते ही देखते देश में एक बड़ा समुदाय अछूत बन गया.
उन्होंने कहा कि विपक्ष आरएसएस की छवि दलित विरोध के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. समाज में वंचित जातियों के लिए काम करके संघ ने अपनी अलग छवि बनाई है. हम कई बार कह चुके हैं कि पिछड़ी जातियों के संदर्भ में संघ पर गलत निशाना साधा जाता है. आरएसएस चीफ मोहन भागवत के बयान को मीडिया में कई बार तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.आरएसएस को कई बार अपवाद का सामना करना पड़ा था क्योंकि उसने कहा था कि शूद्र ही दलित थे. गोपाल के मुताबिक, समाज में शूद्र कई बार राजा बने और समाज में उन्हें बहुत सम्मान भी मिला. भारत के महान शासक चंद्र गुप्ता मौर्य शूद्र के रूप में बड़े हुए थे. यहां तक कि वाल्मीकि भी शूद्र थे और उन्हें आज महर्षि के नाम से जाना जाता है.