राजनैतिकशिक्षा

कैप्टन के तेवर

सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

इस्तीफा देने पर मजबूर किए गए पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। वे अपनी पार्टी बनाएंगे या किसी और के साथ जाएंगे, तय नहीं है। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब कांग्रेस के साथ तो कतई नहीं। बुधवार को कैप्टन ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर जिस तरह से हमला बोला और उन्हें अनुभवहीन बताया, वह कांग्रेस से विदाई की ओर साफ इशारा करता है। कैप्टन यहीं नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को कह दिया है कि वे नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे, चुनाव में उनके खिलाफ मजबूत प्रत्याशी खड़ा करेंगे। अब कैप्टन ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं, उसकी उम्मीद इस्तीफा देने वाले दिन से की जा रही थी। पिछले कई महीनों से पंजाब कांग्रेस में जो हालात बने हुए थे, वे किसी अराजक स्थिति से कम नहीं थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जंग ने पार्टी को संकट में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इससे जनता के बीच लगातार यह हवा बनती रही कि अब कांग्रेस पार्टी इस हालत में पहुंच चुकी है कि कोई आलाकमान की भी नहीं सुन रहा। बल्कि सिद्धू और अमरिंदर सिंह जिस तरह से आलाकमान के सुझावों की अनदेखी करते रहे, उससे पार्टी में संकट बढ़ रहा था। कांग्रेस के लिए इस वक्त बड़ी चिंता पंजाब में खुद को बचाए रखने की है। चरणजीत सिंह चन्नी को कमान सौंप कर कांग्रेस ने अपनी सामाजिक राजनीति की रणनीति को भले ही नया स्वरूप दे दिया हो, इससे कुछ हासिल होगा कहा नहीं जा सकता। सवाल यह भी है कि क्या चन्नी को मुख्यमंत्री बना देने से पंजाब कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक हो जाएगा! कांग्रेस कुछ भी दावा करे, मगर सच यही है कि वह भी इस घटनाक्रम को लेकर परेशान है। पंजाब की नदियों में काफी पानी बह चुका है। नवजोत सिंह सिद्धू के पंजाब के अध्यक्ष बनने के बाद से कैप्टन के इस्तीफे तक चीजें इतनी खराब हो चुकी हैं कि उन्हें सही करना चन्नी के बूते की बात नहीं रह गई है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राज्य में पार्टी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जिस तरह की खींचतान शुरू हुई है, उसने तो फिलहाल चन्नी के दांव को कमजोर किया है। पंजाब में जब नवजोत सिंह सिद्धू को राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष पद सौंप दिया गया, उसके बाद अमरिंदर सिंह के रुख में आई नरमी से यह लगा कि अब कलह का दौर शायद खत्म होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यों पार्टी की ओर से यह घोषणा की कई थी कि पंजाब में विधानसभा चुनाव कांग्रेस अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेगी। सिद्धू और उनके खेमे में इस पर सहमति बनती तब शायद कांग्रेस को थोड़ी राहत मिलती, लेकिन महत्वाकांक्षाओं के टकराव ने समूची पार्टी को नुकसान के दरवाजे पर ला खड़ा किया है। ध्यान रखने की जरूरत है कि आपसी मतभेदों और टकराव के चलते ही कांग्रेस कई राज्यों में हाथ आई सत्ता गंवा चुकी है। राजस्थान में पार्टी के आंतरिक झगड़े जगजाहिर रहे हैं। पार्टी के भीतर महत्वाकांक्षाओं के टकराव की वजह से आज दशा यह है कि कांग्रेस राष्ट्रीय फलक पर खुद को एक मजबूत विपक्ष के रूप में पेश नहीं कर पा रही है। जबकि मौजूदा वक्त में एक सशक्त विपक्षी पार्टी या गठबंधन की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है, जो आम जनता के अधिकारों को आवाज दे सके और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर न होने दे।

 

 

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