राजनैतिकशिक्षा

संसद बाधित न हो

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

एक समय संसद का सत्र देश की जनता की समस्याओं पर चर्चा करने, नीतियां बनाने और देश की प्रगति में बाधा बने कानूनों की समीक्षा के लिए होता था, मगर अब सिर्फ बहस और सरकार को कैसे काम करने से रोकना है, यह विपक्ष का मूल उद्देश्य हो गया है। संसद के मानसून सत्र के दौरान पहले दिन से विपक्ष का जो रवैया है, वह सही नहीं है। किसानों के मुद्दे पर सरकार एक ही 12 बार बात कर चुकी है। समाधान निकलना होता तो तभी निकल जाता। पेगासस जासूसी कांड पर जब आईटी मंत्री तक कह चुके हैं कि किसी का फोन टेप नहीं हुआ, तो नहीं हुआ। बेवजह का बखेड़ा खड़ा कर संसद को बाधित करना गलत है। संसद में बैठे माननीयों को यह समझना होगा कि एक दिन के सत्र पर लाखों रुपया खर्च होता है। यह पैसा जनता की गाढ़ी कमाई से आया है। जनता के पैसे की इस तरह से बर्बादी ठीक नहीं है। विडंबना यह है कि अब न केवल देश की संसद में, बल्कि राज्यों के सदनों में भी जनहित से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श कम और सरकार के समर्थन और विरोध में टकराव और हंगामा एक मुख्य गतिविधि बन कर रह गई है। लगभग हर राज्य का आलम एक ही है। अगर संसद या विधानसभा सत्र का मकसद सिर्फ हंगामा रह जाएगा, तो फिर जनता के हितों की कौन सोचेगा।
संसद के मौजूदा सत्र में जिस तरह का हंगामा देखने में आ रहा है, वह सही नहीं है। विपक्ष जहां कृषि कानूनों के विरोध और पेगासस के संदर्भ में निशाने पर रखे गए लोगों की जासूसी और अन्य मुद्दों पर सरकार का विरोध कर रहा है, वहीं सरकार की इन मसलों पर अपनी राय है। सवाल है कि क्या संसद बाधित होने से किसी विवाद का समाधान निकल सकता है? जनहित से जुड़े मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करना विपक्ष का दायित्व है, मगर सदन के भीतर भी विरोध का स्वरूप अगर केवल हंगामा हो जाए, तो ऐसे में कौन किससे जवाब ले सकेगा? बेशक विपक्ष यह दावा कर सकता है कि वह जिन मुद्दों पर विरोध जता रहा है, उस पर सरकार का पक्ष स्पष्ट होना इसलिए जरूरी है कि ये व्यापक जनहित से जुड़े मामले हैं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लंबे समय से चल रहा है और उस पर सरकार ने अब तक कोई ठोस हल निकालने में रुचि नहीं दिखाई है, वहीं हाल में पेगासस के जरिए निगरानी और जासूसी के जिस मामले का खुलासा हुआ है, वह नागरिक स्वतंत्रता और निजता को बाधित कर सकता है। ये गंभीर मसले हैं, जिन पर सरकार कठघरे में है और उसे देश की जनता के सामने वस्तुस्थिति को साफ रखना चाहिए। लेकिन यह सदनों में केवल शोर-शराबे या हंगामे संभव नहीं हो सकेगा। निश्चित रूप से विपक्ष को पेगासस मामले की व्यापक और उच्चस्तरीय जांच पर जोर देना चाहिए और कृषि कानूनों पर किसानों को आश्वस्त करने लिए सरकार की ओर से पहलकदमी की मांग करनी चाहिए। इसके बजाय सदन को बाधित करने से किस मसले का हल निकल जाएगा? जबकि सदन इसीलिए है कि वहां व्यापक जनहित से जुड़े मुद्दों को रखा जाए, उन पर विचार किया जाए और उनका दीर्घकालिक समाधान निकाला जाए। जनता अपने जनप्रतिनिधियों को इसीलिए वहां भेजती है।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी सदन की एक दिन की कार्यवाही पर कई लाख रुपए खर्च होते हैं। जाहिर है, यह राशि जनता द्वारा चुकाए जाने वाले उन करों के मद में से निकाली जाती है, जिन्हें जनहित और विकास कार्यों पर खर्च होना चाहिए। सभी सांसदों या जनप्रतिनिधियों को किसी मुद्दे पर अपने विचार अभिव्यक्त करने का संवैधानिक हक है। बल्कि सदनों में समर्थन और विरोध से जुड़ी गतिविधियां समूचे तंत्र के संचालन का हिस्सा और लोकतंत्र की खूबसूरती हैं। लेकिन इनका कोई ठोस हासिल होना चाहिए। दूसरी ओर, सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगर वह व्यापक प्रभाव वाली कोई नीति बनाती है, तो उसमें संसद के सभी सदस्यों, पक्ष-विपक्ष को भागीदार बनाया जाए, न कि कोई फैसला लेने और लागू करने के बाद सदनों को औपचारिक सूचना भर दे दी जाए। सरकार के समर्थन में असहमति के स्वरों को दरकिनार करना या फिर विपक्ष की ओर से मुद्दे उठाने के बजाय सिर्फ हंगामा न केवल सदनों को, बल्कि लोकतंत्र को भी बाधित करेगा।

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