मध्यप्रदेश भाजपा पर सिंधिया का दबदबा
-रहीम खान-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
प्रदेश में निष्ठा पर अवसरवादिता हावी
भाजपा से बगावत की कीमत वसूल रहे है
भारत की राजनीति में कभी अपने चालचरित्र और अनुशासन के लिये अलग पहचान रखने वाली भाजपा पर सत्ता का रंग ऐसा चढ़ा है कि वह जिस राज्य में सत्ता गंवाती है, उसे वह घटना बैचेन कर देती है जिसके चलते वह कमजोर कड़ियों को ढूंढकर सरकार को अस्थिर करने एवं सरकार गिराने के वह सारे फार्मूले अपनाती है, जिसे हम साम, दाम, दंड, भेद की नीति कहते है। जिसकी झलक हमने मध्यप्रदेश में 15 साल बाद राज्य की सत्ता में वापस आये कांग्रेस सरकार को षडयंत्रपूर्वक गिराने में देखी है। जहां पर कांग्रेस के पूर्व सांसद पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिये योजनाबद्ध साजिश करके कांग्रेस में बगावत कराकर सरकार को गिरा दिया गया और उसके बाद जो कुछ घटित हुआ वह सबके सामने है।
कांग्रेस में बगावत कराने की पूरी कीमत सिंधिया भाजपा से वसूल रहे है। पुनः जब भाजपा सत्ता में आई तो मंत्रिमंडल में अपने समर्थक 12 विधायक को मंत्री बनवाया। उसके बाद स्वयं राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। जब केन्द्र में मंत्रीमंडल का पुनर्गठन हुआ तो वहां भी वह केन्द्रीय मंत्री बनने में सफल हो गये। जिसके कारण भाजपा के ही दूसरे नेताओं का राजनीतिक हित प्रभावित हुआ, परन्तु सत्ता में बने रहने के लालच के कारण वह खुलकर कुछ बोल भी नहीं पा रहे है। हालांकि वर्तमान समय जो विभाग सिंधिया को दिया गया है उसका आम जनता से कोई सरोकार नहीं है। एयर इंडिया पर नीजिकरण के काले बादल मंडरा रहे है, कुछ एयरपोर्ट प्रायवेट हाथों में दे दिये गये है। इसको देखकर लगता है कि भाजपा को सिंधिया को संतुष्ट करना था सो उन्होंने कर दिया। ये सिंधिया का ही प्रभाव था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान 16 माह तक जिले के प्रभार मंत्री नियुक्त नहीं कर पाये। जब नियुक्ति की बारी आई तो वहां भी सिंधिया के प्रभाव वाले नेताओं का दबदबा साफ दिखाई पड़ रहा है। इतना ही नहीं भाजपा संगठन में भी सिंधिया ने अपनी मंशा के अनुरूप अपने लोगों को स्थान दिलाने में सफलता पाई। अब बारी है जो सिंधिया समर्थक उपचुनाव हार गये उनको निगम मंडल में मनोनीत करने की। शायद ऐसा हो भी जायेगा। उपरोक्त सारा घटनाक्रम का अध्ययन करने के पश्चात इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि मध्यप्रदेश भाजपा पर पूरी तरह से नये भाजपायी सिंधिया हावी है। जिसके कारण प्रदेश में भाजपा को सत्ता के शिखर तक ले जाने वाले समर्थिक और निष्ठावान भाजपा नेता अपने आपको उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहे है। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि कांग्रेस के बागी सिंधिया एंड ग्रुप को भाजपा में इतना महत्व मिलेगा।
जहां तक मध्यप्रदेश भाजपा में संगठन की बात है, तो आज की तारीख में वी.डी. शर्मा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में एक विफल नेता के रूप मे पार्टी के भीतर ही पहचाने जाने के साथ इनके द्वारा जिस तरह से सीनियर नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है उससे भीतर ही भीतर आंतरिक असंतोष प्रत्यक्ष चर्चा में साफ दिखता है। एक तो उन्हें अपने संगठन की कार्यकारिणी बनाने में शर्मा को पसीना छूट गया। इसके बाद भी अनेक जिलों में यह संगठन को व्यवस्थित नहीं कर पाये है। भाजपा में जो कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटित हो रहा है उस पर पूर्व मंत्री वर्तमान विधायक अजय विश्नोई खुलकर अपनी बात रख रहे है। प्रदेश अध्यक्ष की कमजोरी उस समय ही समझ आ गई जब उन्होने दमोह उपचुनाव में भाजपा की शर्मनाक पराजय के बाद पूर्व मंत्री जयंत मलैया व अन्य नेताओं को कारण बताओं नोटिस जारी किया और जब प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा हुई तो उन्हें विशेष आमंत्रित सदस्य में शामिल कर लिया। शर्मा के कार्यकाल की दूसरी सबसे बड़ी गलती जब उन्होंने प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा की तो उन्होंने पदाधिकारियों के साथ उनकी जाति का भी उल्लेख किया है जो कभी होता नहीं, परन्तु जब बवाल मचा तो एक घंटे में पूरी सूची में परिवर्तन करना पड़ा। ये सच है कि युवाओं को अवसर देना चाहिये परन्तु सीनियर को एकदम से हटाकर कार्य करना भी न्यायसंगत नहंी कहा जा सकता।
ये अलग बात है कि पार्टी सत्ता में है इस कारण अपने ही घर में उपेक्षा के शिकार भाजपा के सीनियर नेता सार्वजनिक रूप से कुछ न बोले पर उनके मन में जो पीड़ा है वह आॅफ द रिकार्ड बात करने पर खुलकर सामने आती है। भले ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान अपनी चैथी पारी खेल रहे है लेकिन वहीं जानते है कि उन्हें किस तरह से किन किन मोर्चे पर कैसी कैसी राजनीतिक परेशानियों का सामना अपने ही घर के भीतर करना पड़ रहा है।
पिछले दिनों जिन भाजपा नेताओं प्रदेश अध्यक्ष शर्मा के साथ चलाया था उसके बाद तो ऐसा लग रहा था कि शिवराजजी लंबे समय तक अपने वर्तमान पद पर बने नहीं रहेगें। जो राजनाथ सिंह कहा करते थे कि ये यूपीए नहीं है, यह एनडीए है यहां पर आरोप लगाने से नेता को हटाया नहीं जाता, लेकिन उसी भाजपा में आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को तीन माह में हटाना पड़ा, केन्द्रीय मंत्रीमंडल से 12 मंत्री को उनके कमजोर प्रदर्शन के कारण हटाना पड़ा। सत्ता पर काबिज रहने के लिये इन्होने एज फेक्टर को दरकिनार कर 77 साल के विवादित और भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदुरप्पा को इस पद पर राजनीतिक मजबूरियों के चलते पदस्थ करना पड़ा। मुख्यमंत्री हटाने का क्रम तो उत्तरप्रदेश में भी चलने वाला था, क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने भाजपा की बनी बनाई साख को अपने कार्यकाल में मटियामेट कर दिया है पर योगी मोदी शाह के दबाव में नहीं आये जिस कारण उन्हें वहां पर संगठन को विस्तार करने पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ा।
बहरहाल अपनी कथनी और करनी में साफ तौर पर अंतर को प्रदर्शित करने वाली भाजपा में मध्यप्रदेश के भीतर जिस प्रकार का राजनीतिक घटनाक्रम घटित हो रहा है उसने यह संकेत भी दे दिया है कि कोई जरूरी नहीं है प्रदेश मंे शिवराज 2023 तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। दूसरी बात जिस प्रकार से प्रदेश में भले ही सिंधिया को भाव देने में भाजपा के भीतर आनाकानी की जाये पर दिल्ली दरबार जिस तरह से उनको हाथो हाथ ले रहा है, उससे साफ है कि आनेवाले 2023 के चुनाव में अगर सिंधिया प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। दरअसल सिंधिया के पीछे परिवार का जो भाजपायी बेकग्राऊंड है वह उन्हें यहां पर प्लस कर रहा है। चूंकि वह लोकसभा चुनाव हार चुके है और उपचुनाव में भी उनके क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन पार्टी से उनके हटने के बाद भी दमदारी वाला रहा है। उस आधार पर कहा जा सकता है कि सिंधिया के आने से ग्वालियर चंबल संभाग में भाजपा की एकतरफा लहर चलेगी, ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जिन परिस्थितियों में पार्टी का नेतृत्व कर रहे है वहां उनके समक्ष कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के खेमे की तरफ से आई हुई चुनौती ही उनके लिये सिरदर्द बनी हुई है। आसमान छूती हुई मंहगाई, कोरोना महामारी में मौतों का ऊंचा ग्राफ, सगठन के भीतर अपने लोगों को स्थान न दिला पाना जैसी अनेक विषमतायें है जो कहीं न कहीं आने वाले हर चुनाव में भाजपा के लिये सिरदर्द बनेगी। जिसकी झलक दमोह उपचुनाव में देखी जा चुकी है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा की कुलाचे मारती राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी कहीं न कहीं भाजपा को जनता की अदालत में माईनस करने के लिये काफी है। आने वाले चार उपचुनाव प्रदेश में भाजपा के भविष्य का निर्धारण करेगें। अगर भविष्य में सिंधिया के भविष्य में बढ़ते प्रभाव के कारण भाजपा के भीतर ही भीतर पल रहा आक्रोश राजनीतिक ज्वालामुखी बनकर फूटे तो कोई आश्चर्य नहीं।