राजनैतिकशिक्षा

बिहार भारत में लोकतन्त्र का ‘जनक’ कहा जाता है दृ फिर विधान सभा में हिंसा क्यों?

-अशोक भाटिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

बिहार में विधानसभा में हालिया राजनैतिक तकरार पुलिस को और ज्यादा अधिकारों से लैस करने वाला एक संशोधन विधेयक है। मामला कुछ इस प्रकार है कि बिहार में विशेष ससश्स्त्र पुलिस बल को विशेष अधिकार देने के लिए सरकार इस विधेयक को लाई। जिसमें प्रावधान है कि किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट या मजिस्ट्रेट की इजाजत की जरूरत नहीं होगी। विशेष सशस्त्र पुलिस बिना वारंट के किसी की भी तलाशी कर सकेगी। गिरफ्तारी के बाद प्रताड़ित करने का आरोप लगता है तो बिना परमिशन कोर्ट कुछ नहीं कर सकता। कानून के जरिये पुलिस को ऐसे अधिकार दिए गए हैं जिसके तहत बिहार पुलिस को अब किसी भी वक्त तलाशी लेने के लिए किसी वारंट की जरूरत नहीं होगी और तो और अगर किसी वर्दीधारी ने जुल्म किया तो कोर्ट भी उसके खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं कर पाएगी। ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता सकता है जो सशस्त्र पुलिस को उसका काम करने से रोकता है। हमले का भय दिखाने, बल प्रयोग करने, धमकी देने पर बिना वारंट सशस्त्र पुलिस गिरफ्तार कर सकती हैं।

विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने विधेयक पास न हो पाये इसके लिए सड़क से सदन तक भारी विरोध प्रदर्शन का इंतजाम किया था। विधानसभा अध्यक्ष के इर्द गिर्द तो महिला विधायकों को मोर्चे में लगा दिया था लेकिन पूरी कवायद अंत जैसे हुआ वो काफी गलत हुआ।सबसे बड़ी बात तो ये है कि जो कुछ हुआ उसकी जिम्मेदारी लेने को कोई पक्ष तैयार नहीं है और विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष भी ठीकरा दूसरे के ही सिर पर फोड़ रहा है।सोशल मीडिया वायरल हो रहे वीडियो में सदन के अंदर पुलिस और प्रशासन के लोग विधायकों को पीटते देखे जा सकते हैं। विधानसभा के भीतर हुई हिंसक झड़प में दो महिला विधायकों सहित दर्जन भर एमएलए घायल हुए हैं साथ में कुछ पुलिसकर्मियों और मीडियाकर्मियों को भी चोटें आयी हैं।

यदि हम इस बिल की गंभीरता से देखे तो बिहार राज्य की सीमाएं तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश से लगती हैं। इसके साथ ही नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा भी है। जिसकी वजह से आतंरिक सुरक्षा को चाक-चैबंद रखने के लिए कुशल प्रशिक्षित और हर तरह से लैस सशस्त्र पुलिस बल की आवश्यकता है। बीएमपी का गठन बंगाल पुलिस अधिनियम 1892 के तहत हुआ था और 1961 को बिहार पुलिस आयोग ने बीएमपी में संशोधन की सिफारिश की थी। जिसके तहत बीएमपी को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस के रूप में गठन करने की बात कही गई थी। अब सरकार की ओर से नया कानून यानी बिहार विशेष सशस्त्र विधेयक 2021 लेकर आई।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि विधेयक को लेकर विपक्ष की तरफ से अफवाह फैलायी जा रही है। नीतीश कुमार का दावा है कि ये कानून ऐसा नहीं कि लोगों को तकलीफ देखा, बल्कि ये तो लोगों को सुरक्षा प्रदान करने वाला है।दरअसल विपक्ष इसे नीतीश सरकार के नये हथियार के तौर पर देख रहा है। विपक्ष को ऐसी आशंका है कि राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बिहार पुलिस का भी वैसे ही बेजा इस्तेमाल किया जा सकेगा जैसे केंद्रीय एजेंसियों को लेकर केंद्र की सरकार पर लगता रहा है।

लोकतन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होता है मगर जब सदन के भीतर ही हिंसा का नाच होने लगे तो सन्देश इसके विपरीत जाता। इस विधेयक का विरोध विपक्षी विधायक पुरजोर तरीके से कर रहे थे और विधेयक के पारित होने से पहले सरकार से तीखे प्रश्न पूछ रहे थे। इससे इस बात का भी पता चलता है कि विधेयक के बारे में नीतीश सरकार ने विपक्ष से कोई संवाद कायम करना जरूरी नहीं समझा और सीधे विधेयक को पारित कराने की जिद ठान ली।

गौरतलब हैं कि बिहार भारत में लोकतन्त्र का ‘जनक’ कहा जाता है। चैथी शताब्दी तक यहां लोक गणराज्य चला करते थे। छठी शताब्दी तक यह विश्व का शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र था जिसका प्रमाण नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेष हैं और सबसे ऊपर वर्तमान में इसी राज्य के मतदाताओं को सर्वाधिक कुशाग्र व राजनीतिक रूप से सचेत मतदाता कहा जाता है। यही प्रदेश था जो स्वतन्त्रता के बाद श्रीकृष्ण बाबू के मुख्यमन्त्रीत्व काल में पूरे देश में सुशासन के मामले में प्रथम नम्बर पर आता था। सबसे ऊपर नीतीश बाबू को यह विचार करना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनावों में उनके गठबन्धन को विपक्षी गठबन्धन से मात्र 23 हजार अधिक मत मिले हैं जिसके चलते उनकी सरकार काबिज हुई है। अतः इन परिस्थितियों में विपक्ष की आवाज को पुलिस बल की मार्फत कुचलवा कर वह स्वयं अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर रहे हैं। लोकतन्त्र की एक बहुत बड़ी खूबी यह भी होती है कि जिस नेता की विश्वसनीयता एक बार संदिग्ध हो जाती है उसे सुधारने में उसे पूरा जीवन बीत जाता है परन्तु लोकतन्त्र किसी व्यक्ति का मोहताज नहीं होता बल्कि वह उन संवैधानिक शक्तियों से चलता है जो संविधान आम आदमी को देता है। सदन में बैठे जनप्रतिनिधि इन्हीं शक्तियों की नुमाइन्दगी करते हैं। संवाद से चलने वाले लोकतन्त्र को जब पुलिस की ताकत से चलाने की जुर्रत की जाती है तो सबसे पहले वहीं संविधान कराहने लगता है जिसकी शपथ लेकर ये जनप्रतिनिधि सदन के भीतर बैठने योग्य बनते हैं। अतः जरूरत इस बात की है कि संवैधानिक मर्यादाओं को सरकारों की कीमत पर भी बरकरार रखा जाये तभी तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहला सकता है।

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