राजनैतिकशिक्षा

गुस्से में क्यों है ममता दीदी?

-रमेश सर्राफ धमोरा-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी इन दिनों बहुत गुस्से में नजर आ रही है। मां, माटी और मानुष के नारे के साथ पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने वाली ममता बनर्जी इन दिनो गुस्से में रह रह कर केंद्र की मोदी सरकार को कोस रही है। ममता दीदी के गुस्से का मुख्य कारण भी पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते प्रभाव को माना जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार पश्चिम बंगाल की 18 लोकसभा सीटें जीत कर ममता दीदी को जता दिया था कि आने वाले विधानसभा चुनाव में चुनाव के परिणाम उनके मनमाफिक नहीं होंगे। भारतीय जनता पार्टी ने उनके जनाधार में सेंध लगा दिया है। इससे ममता बनर्जी को अपनी कुर्सी खिसकती नजर आने लगी है। जिस कारण वह भाजपा पर बुरी तरह खफा हो रही है।
ममता दीदी राज्य में अपने जनाधार को थोड़ा सा भी खिसकने नहीं देना चाहतीं है। उनका मानना है कि बंगाल में लेफ्ट फ्रंट उनका प्रतिद्वंद्वी नहीं है। यदि उनको कोई टक्कर दे सकता है तो वो है भारतीय जनता पार्टी। हाल ही में भाजपा ने ममता बनर्जी की टीएमसी पार्टी के एक दर्जनों विधायक व कई सांसदों को तोड़कर भाजपा में शामिल करवा लिया है। रही सही कसर गत दिनों टीएमसी के बड़े नेता व राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी के सांसद पद से इस्तीफा देने से पूरी हो गई।
दिनेश त्रिवेदी टीएमसी के टिकट पर 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद ममता बनर्जी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा था। मगर त्रिवेदी ने भी आखिर ममता दीदी का साथ छोड़ ही दिया त्रिवेदी बंगाल में तीन बार लोकसभा सदस्य कई बार राज्यसभा सदस्य व केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके हैं। उनकी छवि एक पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी समझदार नेता की मानी जाती है। दिनेश त्रिवेदी टीएमसी के गठन से ही ममता दीदी के साथ जुड़े हुए थे। उनका हिंदी भाषी क्षेत्र में खासा प्रभाव रहा है। ऐसे में उनका साथ छोड़ना ममता दीदी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। दिनेश त्रिवेदी ने ममता बनर्जी के सलाहकार प्रशांत किशोर व उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी पर पार्टी मामलों में अनावश्यक दखलअंदाजी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि मेरे उनके ट्विटर हैंडल से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जानबूझकर गलत संदेश ट्वीट किए जाते थे। जिससे दुखी होकर उन्होंने टीएमसी छोड़ने का फैसला किया था।
कुछ दिनों पूर्व ही ममता सरकार में परिवहन मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी ने भी टीएमसी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। अधिकारी परिवार का मेदिनीपुर क्षेत्र के कई दर्जन विधानसभा क्षेत्रों ने खासा प्रभाव माना जाता है। त्यागपत्र देने से पूर्व वो बहुचर्चित नंदीग्राम विधानसभा सीट से विधायक थे। उन्होंने ममता बनर्जी को चुनौती भी दी है कि वह नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से उनके सामने आकर चुनाव लड़े। वरिष्ठ मंत्री रहे राजीव बनर्जी ने भी हाल ही में टीएमसी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है।
कभी ममता बनर्जी के सबसे नजदीकी रहे मुकुल राय ने सबसे पहले ममता दीदी का साथ छोड़ा था। उस वक्त ममता बनर्जी ने मुकुल राय की खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि भाजपा जैसी पार्टी में जाकर मुकुल राय ने अपना राजनीतिक करियर तबाह कर लिया है। लेकिन समय ने पलटा खाया और आज स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी है। मुकुल राय आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा पश्चिम बंगाल में भाजपा के मुख्य नीति निर्धारकों में शामिल है।
कभी सोनार बांग्ला के नाम से जाने जाने वाला पश्चिम बंगाल विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है। पहले कांग्रेस फिर वामपंथी और अब 10 वर्षों से टीएमसी के शासन में बंगाल की जनता ने कोई बदलाव महसूस नहीं किया। औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल में अधिकांश बड़े उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं। यहां के लोगों को रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन करना पड़ता है। इससे आम जनता में सरकार के प्रति भारी नाराजगी है। इसी का फायदा उठाकर भाजपा ने बहुत तेजी से बंगाल के जनमानस में अपनी पैठ बनाई है।
पश्चिम बंगाल के अगले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला ममता बनर्जी की टीएमसी व भाजपा के बीच माना जा रहा है। कांग्रेस, वामपंथी दल राजनीति की मुख्यधारा से कट चुके हैं। हाल ही में कांग्रेस और वामपंथी दलों ने अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मगर पश्चिम बंगाल की जनता उनको सिरे से नकार चुकी है। इसके चलते विधानसभा चुनाव में उनकी विशेष भूमिका रहने की संभावना नहीं है। भाजपा के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य नेता लगातार जनसभाओं व रोड शो के माध्यम से ममता बनर्जी को खुली चुनौती दे रहे हैं।
भाजपा के बढ़ते प्रभाव से ममता दीदी इतनी डर गई है कि उन्होंने अपने पारंपरिक राजनीतिक दुश्मन कांग्रेस व वामपंथी दलों को भी उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ने तक का निमंत्रण दे डाला है। मगर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी ने उनके आमंत्रण को ठुकराते हुए उन्हें ही अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में शामिल होने को कह दिया है। इससे पता चलता है कि ममता बनर्जी धीरे-धीरे अपना प्रभाव खोती जा रही है।
कभी ममता बनर्जी का खुलकर साथ देने वाले मुस्लिम धर्मगुरु पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने भी राजनीति में एंट्री कर दी है। उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इससे ममता बनर्जी को और भी नुकसान होने की संभावना है। पीरजादा अब्बास सिद्दीकी उत्तरी 24 परगना में स्थित दरगाह कुरकुरा शरीफ के सज्जादा नशीन है। उनका बंगाली मुसलमानों में खासा प्रभाव माना जाता है। कुरकुरा शरीफ दरगाह बंगाली मुसलमानों की जियारत का बड़ा केंद्र है। पश्चिम बंगाल में हुगली, उत्तरी 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, वर्धमान, हावड़ा सहित कई जिलों की मुस्लिम बहुल 100 विधानसभा सीटों पर उनका असर है। पीरजादा सिद्दीकी के राजनीति में आने से घाटा तो ममता बनर्जी को ही उठाना पड़ेगा।
मुसलमानों के फायर ब्रिगेड नेता माने जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी का प्रभाव भी देश के मुसलमानों में तेजी से बढ़ रहा है। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने पांच सीटें जीतकर अपनी राजनीतिक ताकत का परिचय दिया है। ऐसे में बंगाल विधानसभा के चुनाव में पीरजादा अब्बास सिद्धकी व ओवैसी की जोड़ी मुस्लिम बहुल सीटों पर एक बड़ी ताकत बनकर उभरे तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा खुलकर हिंदू कार्ड खेल रही है। वही मुस्लिम वोटो का कांग्रेस, वाम गठबंधन, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी व पीरजादा अब्बास सिद्धकी, ओवैसी की पार्टियों के मध्य विभाजन होना तय माना जा रहा है। ऐसे में ममता बनर्जी के वोट बैंक रहे मुस्लिम समुदाय के वोटो में बिखराव से भाजपा को सीधा लाभ मिलेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी को 44.91 प्रतिशत व भाजपा को 40.70 प्रतिशत वोट मिले थे। इस तरह भारतीय जनता पार्टी टीएमसी से मात्र 4.21 प्रतिशत मतों से ही पीछे थी। जिनको कवर करने के लिए भाजपा नेता टीएमसी के बड़े जनाधार वाले नेताओं को तोड़कर भाजपा में शामिल कर रहें हैं। जिससे ममता बनर्जी को राजनीतिक रूप से कमजोर हो सके।

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