राजनैतिकशिक्षा

बांग्लादेश में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और अल्पसंख्यक समुदाय को सत्ता रही हिंसा की आशंका

-कांतिलाल मांडोत-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत की भागीदारी से जिस बंग्लादेश को अलग देश बनाया गया। वही आज हिन्दू अल्पसंख्यक हिंसा के शिकार हो रहे है। भारत के राजनयिक सम्बंधो को दरकिनार कर शेख हसीना का तख्तापलट करने वाले कट्टरपंथी समाज अल्पसंख्यक हिन्दुओ के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे है। बांग्लादेश दक्षिण एशिया में एक मुस्लिम बहुल राष्ट्र है जहाँ लगभग 8% से अधिक आबादी हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। जम्मा ए-इस्लामी जैसे इस्लामवादी एवं धर्मनिरपेक्ष राजनीति में सक्रिय समूह देश की राजनीतिक सामाजिक तस्वीर को जटिल बना देते हैं। इसके अतिरिक्त, राजनीतिक दलों और सरकार के बीच सत्ता-संघर्ष के कारण यही जनसंघर्ष अक्सर सामाजिक तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रभावित करता रहा है। वर्तमान में बांग्लादेश में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की अवधारणा उस बदलाव के संदर्भ में उठ रही है जिसे छात्र आंदोलन, नागरिक समाज और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने मांग किया है। हालांकि, स्पष्ट रूप से यह प्रणाली देश में लागू है या नहीं, यह सवाल बना हुआ है।
एक सरकारी जानकारी के मुताबिक जुलाई-अगस्त 2024 के छात्र-आंदोलनों के बाद नया अंतरिम सरकार चुनावी सुधार एवं प्रशासनिक सुधार की दिशा में काम कर रही है। समानुपातिक प्रतिनिधित्व का उद्देश्य है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व सिर्फ बहुमत वाले धड़ों तक सीमित न रहे बल्कि जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग आदि विविध समूहों को भी संसद-स्थानिक शासन में उचित भागीदारी मिले। यदि इस तरह की प्रणाली बांग्लादेश में पूरी तरह लागू हो जाए, तो अल्पसंख्यकों-विशेषकर हिन्दुओं के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व संभव हो सकता है।
जमात -ऐ-इस्लाम (जमात) बांग्लादेश में इस्लामी विचारधारा वाले प्रमुख राजनीतिक संगठन है जिसे कई आलोचकों द्वारा कट्टरवाद और अल्पसंख्यकों विरोधी कार्रवाई से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान छात्र-आंदोलन हिंसक मोड़ लेने पर जमात-छात्र संगठन सहित कुछ इस्लामी समूहों पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा था। इन आंदोलनों तथा रैलियों का उद्देश्य अक्सर सरकार-नीति से असन्तुष्ट आवाज उठाना, प्रशासनिक सुधार की मांग करना, या सत्ता-विग्रह की स्थिति बनाना रहा है। हालांकि, जब यह प्रदर्शन हिंसात्मक बने, तो सामाजिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर असर हुआ।

शेख हसीना के विरुद्ध 13 नवम्बर को सजा-घोषणा
भारत मे रह रही शेख हसीना को 13 नवम्बर को सजा सुनाने की प्रकिया शुरू होगी। हाल के वर्षों में बांग्लादेश में राजनीतिक- हिस्सेदारी के चलते कई बड़े मुकदमों और सजा-घोषणाओं की चर्चाएँ हुई हैं। शेख हसीना की सजा के संदर्भ में जहाँ तक देखा जा सकता है, ऐसा कोई स्पष्ट निर्णय नहीं मिल रहा है कि उन्हें सजा सुनाई गई हो। लेकिन उन पर इस्तीफा और सत्ता-परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं हैं। जुलाई-अगस्त 2024 के छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना ने 5अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
ऐसे में यदि सजा से उनका पदच्युत होना या किसी अन्य कानूनी कार्रवाई को हम समझ रहे हैं, तो यह टिप्पणी योग्य है कि राजनीतिक अस्थिरता एवं हिंसा-प्रवण माहौल ने देश में कानून-व्यवस्था को तलहटी पर ला दिया है। बांग्लादेश में हाल के वर्षों में राजनीतिक आंदोलन, प्रदर्शन, छात्र आन्दोलन, सांप्रदायिक तनाव अल्पसंख्यकों विशेषकर हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा के कई प्रमाण सामने आए हैं। जुलाई 2024 में बांग्लादेश के कई विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं ने सरकारी नौकरी में कोटा प्रणाली, प्रशासनिक असमानताओं और अन्य सामाजिक-शिक्षण मुद्दों के खिलाफ आन्दोलन खड़ा किया था।

इसके जवाब में सरकार ने इंटरनेट बंदी, कर्फ्यू, सेना-पुलिस तैनाती जैसे उपाय अपनाए। मानवाधिकार संगठनों ने सूचना दी है कि इन प्रदर्शनकारियों पर पुलिस व सुरक्षा बलों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग हुआ। आरयूबीरू, लाइव गोलियां, कंधे-पीछे निशाने, आदि रही है। प्रदर्शनों तथा राजनीतिक उथल-पुथल के बीच हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से प्रभावित रहा है। अगस्त 2024 में हिन्दू व्यापारियों ने शिकायत की कि जब शेख हसीना इस्तीफा देने के बाद प्रदर्शनकारी घरों-दुकानों पर हमला कर रहे थे, तो हिन्दू व्यवसायों को निशाना बनाया गया। हिन्दू मंदिरों, पूजा-स्थलों तथा समुदाय के सामाजिक चिन्हों पर हमले की खबरें आईं। यह स्थितियाँ यह इंगित करती हैं कि राजनीतिक अस्थिरता समय में अल्पसंख्यक की सुरक्षा कमजोर हो जाती है। क्योंकि भीड़-भिड़ समुदायों-विरोधी रुख अपना सकती है, या सुरक्षा तंत्र असमर्थ रह सकती है।
सामाजिक भरोसा टूट रहा है। हिन्दू-मुस्लिमअल्पसंख्यक-बहुसंख्यक बीच मेंराजनीतिक प्रतिनिधित्व एवं सुरक्षा की कमी गंभीर चिंता का विषय बन गई है। सरकार-सत्ताधारी दल तथा विपक्ष-पक्षी दलों के बीच कट्टरता और प्रतिशोध की प्रवृत्ति बढ़ गई है, जिससे कानून-व्यवस्था पर दबाव बढ़ा है। बांग्लादेश में समानुपातिक प्रतिनिधित्व का महत्व और चुनौतियाँ को देखते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के लिए गम्भीर संकट है। समानुपातिक प्रतिनिधित्व का मॉडल उस स्थिति से बेहतर माना जाता है जहाँ एक ही धड़े द्वारा अधिकांश बहुमत जीत ले और अन्य छोटे-वोटर समूह अनदेखे रह जाएँ। यदि बांग्लादेश में पीआर लागू हुआ या हो रहा है, तो इसके निम्न लाभ-हानि व्याख्यायित किये जा सकते हैं।
अल्पसंख्यकों जैसे हिन्दू को संसद-विधान परिषद में बेहतर भागीदारी मिल सकती है। राजनीतिक दलों को वोट-विभाजन तथा विविधता को धारण करना पड़ेगा, जिससे ध्रुवीकरण कम हो सकता है। सामाजिक न्याय व समावेश नीति को बढ़ावा मिलता है।
राजनीतिक-संस्थागत संरचना सेक्युलर बनाम धर्मनिरपेक्ष, सेना-साहाय, प्रशासनिक प्रभाव ने पीआर को अपनाना कठिन बना दिया है। हिंसा और ध्रुवीकरण के कारण छोटे समूहों का डर और असुरक्षा बनी रहती है। यदि सत्ता-संघर्ष और हिंसा बनी रही, तो पीआर सिर्फ नाम का बदलाव हो सकता है, मूल सामाजिक सुरक्षा नहीं बनी। यदि हिन्दू समुदाय पीआर के लाभ उठा सकें, तो उन्हें सक्रिय-पोलिटिकल भागीदारी, सामाजिक-संरक्षण तथा स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना होगा। सामुदायिक संगठन बनाएँहिन्दू समुदाय को स्थानीय-स्तर पर संगठित होना चाहिए। मंदिरों, पूजा-स्थलों, व्यवसाय समुदायों के बीच नेटवर्क हो। इससे किसी भी हिंसा या उत्पीड़न की स्थिति में जल्दी प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी। राजनीतिक विरोधाभास, छात्र आंदोलन, जनमत रैली इत्यादी के समय सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। इस दौरान हिन्दू-व्यापार, पूजा-स्थल, सार्वजनिक जगहों पर सावधानी बरतें। यदि रैली या विरोध प्रदर्शन होने जा रहा हो, तो वहाँ से थोड़ी दूरी बनाए रखें। स्थानिक पुलिस- स्टेशन, सामुदायिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं से पहले-से संपर्क बनाए रखें। पूजा-स्थलों व हिन्दू-आयोजन के समय सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करें। प्रवेश-नियंत्रण, सीसीटीवी, स्थानीय पुलिस-सहाय। यदि किसी समूह द्वारा धमकी मिल रही हो, तुरंत दर्ज करें और समुदाय-सहाय जुटाएँ। संपत्ति-व्यवसाय के भवनों, दुकानों पर विशेष निगरानी रखें, विशेष रूप से राजनीतिक अशांति के दौरान।
राजनीतिक भागीदारी बढ़ाएँ
स्थानीय चुनावों, पंचायत नगर-स्तर शासन में हिन्दू प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की कोशिश करें। राजनीतिक दलों से संवाद रखें और पहचान बनाएं कि हिन्दू-समुदाय मात्र वोट बैंक नहीं बल्कि सक्रिय भागीदार है।
चुनावी समय में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी वोटिंग करें एवं स्थानीय नेताओं को जवाबदेह बनाएं कि वे अल्पसंख्यकों-हित में काम करें। कानूनी जानकारी एवं समर्थन जुटा जात-धर्म-आधारित उत्पीड़न, अल्पसंख्यक-विरोधी हमले आदि की जानकारी रखें, और आवश्यक कानूनी सहायता के लिए संपर्क रखें। सामाजिक संगठनों-मानवाधिकार समूहों की सहायता लें, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय प्लेटफार्मों को उपयोग करें। मीडिया में सूचना पहुँचाएँ, सोशल मीडिया-नेटवर्क को जागरूक करें। सामुदायिक सामाजिक-संबंध बनाएँ।
अन्य धर्म-समुदायों, मुसलमानों, स्थानीय प्रशासन एवं नागरिक समाज से संवाद बनाएँ। यह निष्पक्ष सहयोग अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण है। शिक्षा-प्रचार, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में सह-अस्तित्व और आपसी भरोसा बढ़ाएँ। स्वयं-रक्षा-संबंधी जागरूकता अभियान चलाएँ कि किस प्रकार तनाव-वाले समय में प्रतिक्रिया की जाए, किन स्थितियों में पुलिस-प्रशासन से संपर्क करें। बांग्लादेश में समानुपातिक प्रतिनिधित्व की दिशा में संभावनाएँ खुल रही हैं, लेकिन राजनीति-सामाजिक अस्थिरता, हिंसा-प्रवण माहौल और अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ते खतरे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ कानूनी बदलाव ही पर्याप्त नहीं हैं। सुरक्षा, भागीदारी, जागरूकता एवं सामाजिक-संबंधों का समन्वित विकास आवश्यक है। हिन्दू समुदाय को सक्रिय रूप से अपनी सुरक्षा-योजना विकसित करनी होगी। न कि सिर्फ रक्षा-मोड में, बल्कि भागीदारी-मोड में। इससे अल्पसंख्यको के लिए बंग्लादेश में सुरक्षा उपलब्ध हो सकती है।

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