राजनैतिकशिक्षा

बिहार विधानसभा चुनाव में हर दल को बग़ावत और भितरघात का भय

-कांतिलाल मांडोत-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बिहार विधानसभा में छोटे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। छोटे दलों को विस्मृत नही किया जा सकता है। ये दल वोट काटने में अहम भूमिका में रहते है। एआईएमआईएम, आप व जनसुनराज सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया 10 अक्टूबर को शुरू होगी। अपने अपने हिसाब से सभी दल चुनाव प्रचार में लग गए है। मायावती में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। एनडीए की घटक दलों के चिराग पासवान की पार्टी कई अलग रंग न दिखा दे। जैसे 2020 में दिखाया गया था। बिहार में भाजपा के पास जनमत है। इस बार जेडीयू 101सीटो पर चुना लड़ रही है। जबकि भाजपा 100 सीटों पर चुनाव मैदान में है। प्रशांत किशोर सभी पार्टियों पर चुनाव लड़ने की बात करते है। उनके निशाने पर एनडीए और महागठबंधन है। उनका कहना है कि 15 साल लालू और 20 साल नितीश के शासनकाल में बिहार बेहाल है। इस बार प्रादेशिक पार्टिया गणित बिगाड़ भी सकती है तो नीतीश को फायदा पहुंचा भी सकती है। गोपालगंज में ओवैसी वोट काटने में सफल नही हुए तो यहां आरजेडी की सफलता निश्चित है। बिहार में भ्रष्टाचार के लिए लालू का नाम हर चुनाव में उछलता है। उधर, हर घर मे एक व्यक्ति को नौकरी दिलाने की बात कहने पर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने तेजस्वी पर सीधा निशाना साधा है कि अगर थोड़ी सी नैतिकता बाकी है तो नौकरी के बदले हड़पी गई जमीन लौटाने की घोषणा करे। उल्लेखनीय है कि रेलमंत्री के कार्यकाल में लालू ने लोगो को नौकरी के बदले जमीन हड़प ली थी। उनके हाव भाव मे बैचेनी, घबराहट और हताशा साफ झलकती है। कुशवाहा ने कहा कि जिस नेता के पास नीति और नियत न हो, वह आधारहीन बयानबाजी के सहारे अपना राजनीतिक चेहरा तो चमका सकता है, लेकिन बिहार की जागरूक जनता को बेवकूफ बनाने में कभी सफल नही होगा।
भाजपा अपने वैचारिक आंदोलन के उफान पर थी। उसके रथी लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा बिहार में लोकतंत्र की भूमि कहे जाने वाले हाजीपुर पहुंचने वाली थी। जिसे रोकने के लिए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने ऐलान किया था कि रथ को गांधी सेतु पार नही करने देंगे। उसी वक्त संघ की पृष्ठभूमि से बीजेपी का युवा चेहरा उभर रहा था। उसने लालू की सत्ता को चुनौती दी और ऐलान किया कि राम रथ यात्रा को हाजीपुर रोकने दिया जायगा। तब नित्यानंद राय ने महापंचायत बुलाकर ऐसा जनसमर्थन जुटाया कि लालकृष्ण आडवाणी का रथ हाजीपुर में रोकने का साहस नही जुटा पाई। राजनीति में नैतिक मूल्यों की तरजीह दी। उधर, वैशाली जिले में पप्पु यादव ने अचार संहिता का उल्लंघन किया। बाढ़ पीड़ितो को नकद राशि दी गई। बिहार की राजनीति में ओवैसी ने कदम ताल बढ़ाए है। उनकी महत्वकांशा है कि वे मुसलमानों के सबसे नेता बन जाए। अनेक राज्यो में उनकी पार्टी का विस्तार होने लगा है। उनको मालूम है कि हिंदुस्तान के मुसलमानों का मसीहा बनना है तो हिंदी बेल्ट के मुस्लिम प्रभाव वाले राज्यो में अपने पैर फैलाने है और वे कर रहे है। अरविंद केजरीवाल की महत्वकांशा प्रधानमंत्री बनने की थी। लेकिन उनका नाम भ्रष्टाचार में उछलने और दिल्ली में करारी हार के बाद केजरीवाल की साख में भारी कमी आई है। अब देश मे लोग उनको याद नही करते है। हर चुनाव में राज्य जितने की बात करने वाले केजरीवाल की दशा औऱ दिशा दोनो बदल चुकी है। राजनीति करने आने वाले नेताओं में नैतिकता, प्रमाणिकता होनी चाहिए। लालू प्रसाद ने भ्रष्टाचार में अपने दामन पर दाग लगा दिया। अब उनकी राजनीतिक विरासत में उनके पुत्र की राजनीतिक महत्वकांशा दबती दिखाई देती है। बिहार में जनमत सर्वेक्षण में एनडीए की सरकार की संभावना जताई जा रही है। जनसुराज पार्टी की 13.3 प्रतिशत लोगो के समर्थन में आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। इस बार विधानसभा चुनाव में अनेक दल चुनाव मैदान में है। तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री का सबसे पसंदीदा चेहरा है। लेकिन इनकी राह आसान नही है। सतारूढ़ एनडीए 20 साल में सत्ता में है। पार्टी के पास बहुमत है जबकि सरकार में नीतीश की भूमिका सराहनीय रही है। बिहार में करिश्माई नेता तो मोदी है और मोदी के नाम पर मतदाता जान चिटकने के लिए तैयार है। बिहार चुनाव में कथनी और करनी के हिसाब से भाजपा को तरजीह दी जाती है। बिहार में नीतीश कुमार बेदाग नेता है और मतदाताओ के लिए निष्पक्ष और न्यायनीति के लिए सुशासन बाबू लोगों की प्राथमिकता है। इन दलों से चुनाव प्रक्रिया में व्यवधान खड़ा होगा। अनेक दल चुनाव में खड़े होने की वजह से वोटो की हिस्सेदारी में विभाजन होगा। इन सारे माहौल में कांग्रेस अपना आधार बनाने की फिराक में है। बिहार चुनाव पर पूरे देश की नजर है। मौजूदा सियासी शून्य की स्थिति में राजनीतिक दल अपने लिए अच्छा मौका तलाश सकते है। लेकिन यह हकीकत उनके मंसूबो पर पानी फेर सकती है। बिहार चुनाव सिर पर है और पार्टियां चटपटा रही है। नेताओ की धड़कने बढ़ी हुई है। 14 नवम्बर को क्या होगा?जिसने विकास की गाथा लिखी है। जनता का कार्य किया है। और नीतिपरायणता का काम किया है। वे नेता भरोसा कर सकते है। भ्रष्टाचार और अनैतिकता का सत्ता में कोई स्थान नही है।

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