राजनैतिकशिक्षा

नीतीश कुमार: बिहार की राजनीति के अनिश्चितता के बादशाह

-दिलीप कुमार पाठक-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

बिहार की राजनीति की ग्रह – दिशा कुछ भी हो, कोई भी राजनीतिक हलचल हो नीतीश कुमार को कोई भी हल्के में नहीं ले सकता। बीते कुछ सालों से नीतीश कुमार की गतिविधियों को देखकर उनके चाहने वाले उनके लिए चिंतित रहते हैं, कुछ तो उनकी मानसिक स्थिति को लेकर भी परेशान दिखते हैं, हालांकि यहां विषय नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर नहीं है, यहां चर्चा नीतीश कुमार की राजनीतिक शख्सियत की है, जेडीयू एवं उनकी राजनीतिक ताकत की है। नीतीश कुमार कई बार पलटी मारने के बावजूद भी राजनीतिक अछूत नहीं हैं, उनका अपना कद है। भले ही तेजस्वी एवं आरजेडी नीतीश कुमार को पलटू चाचा कहते हों परंतु नीतीश कुमार से इनका मोह जगज़ाहिर है, नीतिश कुमार को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, नीतीश कुमार ने ही हमेशा नैतिकता के आधार पर छोड़ा है। यही बात भाजपा के साथ भी रही है, भाजपा ने नीतीश कुमार को कभी नहीं छोड़ा, हमेशा नीतीश कुमार ने ही दूरी बनाई है जब भी बनाई है। जब प्रशांत किशोर कहते हैं कि तेजस्वी यादव एवं नीतीश कुमार में कोई तुलना नहीं हो सकती, तमाम असहमति के बाद भी दोनों में मुझे एक को चुनना पड़े तो मैं हमेशा नीतीश कुमार को चुनूंगा, ये प्रशांत किशोर का कोई राजनीतिक हित नहीं अपितु नीतीश कुमार की शख्सियत को एवं उनके प्रभाव को दर्शाता है।
बिहार चुनावो में पिछले कई बार से देखा गया है कि जेडीयू की सीटें भले ही कम जीत पाती हो परंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनते हैं, इससे पीछे आरजेडी एवं भाजपा की महानता नहीं है कि वे नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना देते हैं, बल्कि उनकी मजबूरी छुपी हुई है, चूंकि नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की है। उनके ऊपर कोई परिवारवाद का आरोप नहीं लगा सकता। कांग्रेस, भाजपा, आरजेडी की तुलना में व्यक्तिगत रूप से नीतीश कुमार बेदाग माने जाते हैं, वहीँ बिहार के सारे दलों के नेताओं में नीतीश कुमार के लिए सम्मान सद्भावना भी है, यही कारण है कि उनकी उम्र के दिग्गज नेता सुशील कुमार मोदी हमेशा नीतीश कुमार के डिप्टी बनकर रहे और हमेशा उन्होंने नीतीश कुमार को इज्ज़त अफजाई की। यही बात आरजेडी के लिए भी है, नीतीश कुमार 90 के दशक से हमेशा लालू प्रसाद यादव के धुर विरोधी रहे हैं परंतु जब – जब नीतीश कुमार को जरूरत पड़ी है तब – तब लालू यादव आरजेडी सहित नीतीश कुमार के लिए खड़े हुए हैं।
वहीँ भाजपा के लिए नीतीश कुमार बिहार में एक खेवनहार की भूमिका में रहते हैं, भाजपा को पता है कि अगर नीतीश कुमार से अलग होकर भाजपा चुनाव में उतरी तो उसकी पराजय के साथ दुर्गति हो जाएगी, यही कारण है कि भाजपा नीतीश कुमार के कई बार पलटी मारने के बाद भी भाजपा कभी नीतीश के लिए विद्वेष नहीं दर्शाती, आलोचना बात अलग है कुछ अपवाद छोड़ दिया जाए तो यह भी सच है। आज केंद्र की सरकार में नीतीश कुमार का समर्थन है, भाजपा नीतीश कुमार की ताकत से वाकिफ़ है, यही कारण है कि महाराष्ट्र की तरह कोई राजनीतिक हलचल नहीं हो रही अन्यथा नीतीश कुमार केंद्र में सरकार को अस्थिर कार सकते हैं लेकिन नीतीश कुमार की बेदाग छवि सारे दलों को लुभाती है, और वो उनके लिए फायदेमन्द होती है, यही कारण है कि आरजेडी, भाजपा, कांग्रेस हमेशा नीतीश कुमार को सीएम बनाते हैं चूंकि नीतीश कुमार को दरकिनार करके सीएम बनाना भाजपा एवं आरजेडी के बस की बात नहीं है। प्रशांत किशोर के मैदान में उतरने के बाद ज़्यादा नुकसान एनडीए को होगा या महागठबंधन का ये तो कहना मुश्किल है परंतु नीतीश कुमार का फ़ायदा होना तय है। परिस्थिति कोई भी हो, कोई भी राजनीतिक दल नीतीश कुमार को हल्के में नहीं ले सकता, अन्यथा नुकसान उनका ही होगा।
आरजेडी कांग्रेस के साथ सामंज्य स्थापित करते हुए बड़ी कठिन परिस्थितियों से गुजर रही है, वहीँ उनकी परिवारिक कलह उन्हें सत्ता से बहुत दूर ले जा सकती है। आरजेडी के पास नीतीश कुमार को पलटू चाचा कहने के अलावा कोई आरोप नहीं है, नीतीश कुमार सीएम बनने के लिए ही सीएम पद से इस्तीफा दे देते हैं, ये बात नेताओ के लिए बोलना आसान होती होगी, यही कारण है कि जनता में संदेश जाता है कि नीतीश कुमार को काम करने नहीं दिया जा रहा इसलिए वे पलटी मार जाते हैं, उनकी पलटी मारने की कला जनता एवं राजनीतिक दलों में घृणा कारण नहीं है। भाजपा फिर से एनडीए सरकार के नारे ज़रूर लगा रही है, परंतु नीतीश कुमार के बिना उनका सीएम बनना दिन में सपने देखने से कम नहीं होगा। बिहार में फ़िलहाल नीतीश कुमार के बिना भाजपा का सरकार बना पाना मुश्किल है, साथ ही आरजेडी कितना भी माहौल बनाए उन्हें पता है कि नीतीश कुमार को हल्के में लेने की भूल उन्हें सस्ता से बहुत दूर ले जाएगी… यही कारण है कि बिहार में किंग एवं किंग मेकर की भूमिका में लेवल और केवल नीतीश कुमार होंगे।

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