भारत की नींव में दरारें, मोदी जिम्मेदार
-सर्वमित्रा सुरजन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में कारोबार प्रभावित हुआ। पिछले पांच सालों में जो संभलने की कोशिश व्यापारियों ने की थी, अब ट्रंप के टैरिफ से उसे और झटका लगेगा। इस झटके से उबरने में अगर सरकार ने कोई मदद नहीं की, तो फिर इसका बोझ भी जनता पर ही आएगा। यानी दोनों सूरतों में जनता को नुकसान होना तय है।
बुधवार को देश में दो बड़ी घटनाएं हुईं, जिनका दूरगामी असर पड़ेगा। इसे यूं भी कह सकते हैं कि 75 सालों में तिनका-तिनका जोड़कर जिस भारत को बनाया गया था, उसकी नींव में ही दरार डालने की कोशिश हुई है। अगर ये कोशिश कामयाब होती है, तो फिर आने वाली पीढ़ियां शायद फिर उसी दर्द, तकलीफ और संघर्ष से गुज़रें जिनकी साक्षी गुलामी के दौर की पीढ़ियां रही हैं। दोनों घटनाएं अमेरिका से ही जुड़ी हैं। 27 अगस्त से अमेरिका द्वारा बढ़ाई गई टैरिफ दरें लागू हो चुकी हैं, जिसके बाद से छोटे और मध्यम व्यापारियों में नुकसान का डर बढ़ गया है।
दूसरी घटना युद्धविराम से जुड़ी है, डोनाल्ड ट्रंप ने 42वीं बार दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम उन्होंने करवाया है। इस बार ट्रंप ने बाकायदा नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर इस बात को दोहराया है। साथ ही यह भी बता दिया है कि उन्होंने तो 24 घंटे का वक्त दिया था, लेकिन नरेन्द्र मोदी 5 घंटों में ही मान गए। ट्रंप ने जिस अंदाज में अपनी केबिनेट में इस बात को कहा, उस पर वहां मौजूद लोग हँसने लगे। अर्थात भारत का प्रधानमंत्री अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजाक का पात्र बन गया है, लेकिन भाजपा अब भी शायद यही कहेगी कि नरेन्द्र मोदी विश्वगुरु हैं, उन्हें पूरी दुनिया के नेता सम्मान देते हैं।
अंग्रेजों का गुलाम बनने से पहले भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था, दूध-दही की नदियां बहने के मुहावरे यहां बने, तो इसका अर्थ यही है कि हमारे पास प्राकृतिक और आर्थिक दोनों संपदा प्रचुर मात्रा में थी। लेकिन विदेशी व्यापारियों के आगे घुटने टेकने और उनकी रणनीति में मोहरा बनने की बड़ी गलती कर तत्कालीन राजाओं ने पूरे देश को दो सदियों की गुलामी में धकेल दिया। इसके बाद देश को आजाद कराने में लगे स्वाधीनता सेनानियों ने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक हर क्षेत्र की कमजोरियों और कुप्रथाओं की शिनाख्त की, ताकि देश को आजाद कराने के साथ-साथ नयी मजबूत नींव पर खड़ा किया जा सके। आजाद भारत को दुनिया की शक्तियों से मुकाबला करने में आसानी हो जाएगी, ऐसा उनका यकीन था। आजादी के बाद इसी दिशा में काम भी हुआ।
संविधान बना, स्वतंत्र विदेश नीति बनी, मिश्रित अर्थव्यवस्था की राह पर देश चला, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के प्रिवीपर्स खत्म हुए, हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, संचार क्रांति हुई, अनेक सार्वजनिक निकाय खड़े हुए ताकि रोजगार की व्यवस्था हो, उच्च शिक्षा के लिए काम हुआ। इसके साथ-साथ देश में गैरबराबरी और सांप्रदायिक नफरत को मिटाने की सतत कोशिशें भी चलीं। लेकिन भारत की आजादी से लेकर उसके नवनिर्माण के पूरे दौर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने कार्यकर्ताओं को तैयार करता रहा कि वे इन सारी उपलब्धियों पर पानी फेर कर हिंदू राष्ट्र का कथानक तैयार करें। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी संघ की भारत को देन हैं। जिन्होंने 11 बरसों के शासनकाल में आजादी के 75 बरसों के भारत को पूरी तरह जर्जर और खोखला बना दिया है। उस पर तुर्रा ये कि अब वो खुलकर कालेधन की हिमायत करने लगे हैं। मंगलवार को गुजरात में जापान के साथ एक संयुक्त उपक्रम की शुरुआत करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मेरी स्वदेशी की व्याख्या बहुत सिंपल है, पैसा किसका लगता है, उससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है। वो डॉलर है, पाउंड है, वो करंसी काली है, गोरी है, मुझे कोई लेना-देना नहीं है। इसका मतलब यही है कि श्री मोदी ने काले धन को अपनी सहमति दे दी है।
याद कीजिए 2014 में सत्ता पर बैठने के लिए यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार के खूब इल्जाम भाजपा ने लगाए। फिर नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जितना काला धन विदेशों में है, सब वापस लाऊंगा और हरेक के खाते में 15-15 लाख आ जाएंगे। 15 लाख तो किसी के खाते में नहीं आए, उल्टा जो जमा पूंजी थी वो 2016 की नोटबंदी में निकल गई, तब भी श्री मोदी ने काले धन को मिटाने का ही वास्ता दिया था। अब उस फैसले की चर्चा नरेन्द्र मोदी कभी नहीं करते हैं, क्योंकि जानते हैं कि नोटबंदी उनकी बड़ी गलती थी, या फिर आम भारतीय की कमर तोड़ने की सायास कोशिश, ताकि जनता दो वक्त की रोटी के लिए जूझते रहे और उसे अन्य मुद्दों को देखने-समझने की फुर्सत ही नहीं मिले। जनता को मजबूर कर उद्योगपतियों के लिए काम करना आसान हो जाता है। भाजपा और नरेन्द्र मोदी की मुहिम में मीडिया ने भी भरपूर साथ दिया, क्योंकि मीडिया पर भी पूंजीपतियों का कब्जा हो चुका है। रोजगार, उद्योग-धंधों, शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्रों की कमियां इन सब पर खबरें बिल्कुल नहीं होती, केवल हिंदू-मुसलमान के नए-नए विवाद खड़े कर उन पर अशोभनीय चर्चाएं टीवी पर होती हैं। एक चर्चा में जनता उलझती है, तब तक दूसरा विवाद खड़ा हो जाता है।
इसलिए जनता मोदी सरकार से और नरेन्द्र मोदी से ये सवाल नहीं कर रही कि आपने अमेरिका को किस तरह भारत और पाकिस्तान के बीच आने दिया, जबकि शिमला समझौता यही है कि दोनों देशों के बीच तीसरे पक्ष के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा। हमारी सेनाओं ने ऑपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए पाकिस्तान को हराने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन अमेरिका के कहने पर सैन्य अभियान को रोकना क्या देश की सुरक्षा से खिलवाड़ और सैनिकों का अपमान नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर की जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान ने जो हमले किए, उनमें कई आम नागरिक मारे गए और सैनिकों की शहादत भी हुई, क्या उनकी जान की कीमत अब अमेरिका तय करेगा। पहलगाम के दोषी कहां हैं, इस पर भी क्या अमेरिका जवाबदेही लेगा। इसी तरह गलवान के बाद चीन के आगे नरेन्द्र मोदी ने घुटने टेके और देश का अपमान किया है।
डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कहा है कि उन्होंने व्यापार की धमकी देकर युद्ध रुकवाया, नरेन्द्र मोदी भी कहते हैं कि उनके खून में व्यापार है। तो फिर ट्रंप को व्यापार में उन्होंने आगे क्यों निकलने दिया। क्यों नरेन्द्र मोदी अमेरिका को बढ़ा हुआ टैरिफ लगाने से रोक नहीं पाए। अमेरिका अब भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगा रहा है। यह पूरी दुनिया में लगाए गए टैरिफ की सबसे अधिक टैरिफ दर है। इस वजह से निर्यातकों और किसानों को नुकसान तो हो ही रहा है, बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ने की आशंका भी बन गई है। तिरुपुर, नोएडा और सूरत जैसे प्रमुख कपड़ा उत्पादन केंद्रों में मंगलवार से उत्पादन रोक दिया गया है, क्योंकि अब निर्यात कठिन हो जाएगा। भारतीय निर्यात संगठनों के संघ (एफआईईओ) ने बताया है कि अब कपड़ा और परिधान उद्योगों में लागत बढ़ रही है। वियतनाम और बांग्लादेश जैसे कम लागत वाले प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले भारत की स्थिति अब खराब हो गई है। संघ ने सरकार से तत्काल मदद मांगी है। जिनमें छोटे व्यापारियों और लघु उद्योगों को तुरंत आर्थिक सहायता दी जाए, उन्हें सस्ते ऋण और आसान क्रेडिट सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, ब्याज और मूलधन चुकाने के लिए कम से कम 1 साल की राहत मिले, प्रभावित कंपनियों को बिना गारंटी वाले लोन दिए जाएं, यूरोपीय यूनियन, ओमान, चिली, पेरू, अफ्रीकी देशों और लैटिन अमेरिका के साथ जल्द से जल्द फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किए जाएं ताकि अमेरिकी बाजार के नुकसान की भरपाई हो सके, आदि प्रमुख हैं।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार, यह टैरिफ 60.2 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय निर्यात को प्रभावित करेगा, जिसमें कपड़ा, रत्न और आभूषण, झींगा, कालीन और फर्नीचर शामिल हैं। इन क्षेत्रों में निर्यात मात्रा में 70 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। नयी टैरिफ दरों के बाद टेक्सटाइल और गारमेंट्स: कपड़ों पर टैरिफ 9 प्रतिशत से बढ़कर 59प्रतिशत और रेडीमेड पर 13.9प्रतिशत से बढ़कर 63.9प्रतिशत हो जाएगा। तिरुपुर, सूरत, लुधियाना और मुंबई जैसे केंद्र प्रभावित होंगे। मेटल सेक्टर: स्टील, एल्युमिनियम और कॉपर पर टैरिफ 1.7प्रतिशत से बढ़कर 51.7प्रतिशत हो गया है। फर्नीचर और बेडिंग: 2.3प्रतिशत से बढ़कर 52.3प्रतिशत। सीफूड: पहले कोई टैरिफ नहीं था, अब 50प्रतिशत लगाया जाएगा। ज्वेलरी और प्रेशियस मेटल्स: हीरे और सोने पर शुल्क 2.1प्रतिशत से बढ़कर 52प्रतिशत। मशीनरी और मैकेनिकल सामान: 1.3प्रतिशत से बढ़कर 51.3प्रतिशत। ऑटो सेक्टर: गाड़ियों और स्पेयर पार्ट्स पर अलग से 25प्रतिशत नहीं लगाया गया, लेकिन कुल 26प्रतिशत शुल्क लागू रहेगा।
कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में कारोबार प्रभावित हुआ। पिछले पांच सालों में जो संभलने की कोशिश व्यापारियों ने की थी, अब ट्रंप के टैरिफ से उसे और झटका लगेगा। इस झटके से उबरने में अगर सरकार ने कोई मदद नहीं की, तो फिर इसका बोझ भी जनता पर ही आएगा। यानी दोनों सूरतों में जनता को नुकसान होना तय है। बेरोजगारी, महंगाई बढ़ेगी लेकिन श्री मोदी अब भी इससे बेपरवाह दिख रहे हैं। उनके भाषणों में कोरी लफ्फाजी के कुछ नहीं होता। संकल्प, शक्ति, विकास, नया भारत, बस ऐसे कुछ शब्दों की जुगाली हो रही है, देश का कुछ भला नहीं हो रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप ने साबित कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी के कं धे पर रखकर बंदूक चलाई जा सकती है। इससे दुनिया में अच्छा संदेश नहीं गया है। इससे पहले किसी अमेरिकी रार्ष्ट्रपति की हिम्मत नहीं होती थी कि वह भारत से गुस्ताखी करे और अगर किसी ने ऐसा दुस्साहस दिखाया तो भारतीय प्रधानमंत्रियों ने कड़ा जवाब भी दिया। इंदिरा जी ने 71 के युद्ध में सातवां बेड़ा भेजने की अमेरिकी धमकी पर कहा था कि सातवां भेजो या सत्तहरवां, हम पीछे नहीं हटेंगे। इसी तरह 2013 में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े पर अमेरिकी पुलिस ने जांच की, तो जवाब में डा. मनमोहन सिंह ने अमेरिकी दूतावास की सुरक्षा हटा ली थी। लेकिन स्वतंत्र विदेश और आर्थिक नीति को मोदी ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया है।