राजनैतिकशिक्षा

पंजाब में फंस रही है आम आदमी पार्टी

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आम आदमी पार्टी पंजाब में लगता है दिन-प्रतिदिन दलदल में धंसती जा रही है। दिल्ली का अड्डा उखड़ जाने के बाद केजरीवाल ने अपने कुछ गिने चुने साथियों के साथ पंजाब में ही डेरा जमा लिया था। लेकिन केजरीवाल की लालसा दिल्ली, पंजाब से संतुष्ट होने वाली तो है नहीं। वे अपनी पार्टी को क्षेत्रीय पार्टी भी नहीं मानते। उनकी दृष्टि में भाजपा के बाद उनकी पार्टी ही एक मात्र राष्ट्रीय पार्टी है। वे राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। इस लिहाज से वे मोदी की टक्कर के नेता हैं। उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बनना है। इसके लिए उन्हें और उनकी पार्टी को पैसे की जरूरत थी। दिल्ली में इसके लिए विशेष शराब नीति बनाई गई। एक बोतल के साथ दूसरी बोतल मुफ्त। लेकिन जब हो हल्ला हुआ तो नीति को बीच रास्ते छोड़ दिया गया। यह हो हल्ला कानून का ही था। कानून का हो हल्ला खतरनाक होता है। बीच रास्ते नीति छोड़ देने के बाद भी होता रहता है। यही कारण है कि केजरीवाल और उनके दूसरे साथी मनीष सिसोदिया को लंबे अरसे तक जेल में रहना पड़ा। अभी भी जमानत पर ही छूटे हुए हैं। इससे भी ज्यादा नुकसान तो तब हुआ जब इस शराब घोटाले के कारण दिल्ली विधानसभा का चुनाव तक हार गए। उस हार की वजह से केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने पंजाब में डेरा जमा लिया। पहले केजरीवाल दिल्ली से छलांग लगा कर प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और अब पंजाब से छलांग लगा कर प्रधानमंत्री का सपना पालने लगे। लेकिन दिल्ली में लगी पैसे की लत छूट नहीं रही थी। उसके लिए कोई रास्ता निकालना जरूरी था। पंजाब में इसके लिए एक नई नीति बनाई गई जिसका नाम रखा गया ‘लैंड पूलिंग नीति’।

इस नई नीति के अनुसार सरकार को पांच-छह जिलों के किसानों की 65 हजार से भी ज्यादा उपजाऊ जमीन पंजाब सरकार ने काबू करनी थी। यह जमीन किसानों से लेकर बिल्डर्स को नई-नई कालोनियां बनाने के लिए दी जाने वाली थी। लेकिन ख़ूबसूरती यह थी कि इसके लिए किसानों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाना था। किसानों को दिल्ली की शैली में समझाने की कोशिश की जा रही थी कि आपको जमीन के बदले में एक या दो प्लाट दिए जाएंगे। यानी मेरी एक एकड़ जमीन लेकर मुझे उसी जमीन में से एक प्लाट दिया जाएगा। इस प्लाट पर मैं दुकान खोल सकता था, घर बना सकता था। सरकार का कहना था कि इन प्लाटों की कीमत एक एकड़ की कीमत से कहीं ज्यादा होने वाली थी, क्योंकि अब यह प्लाट किसी विकसित कालोनी का हिस्सा बनने वाले थे। यानी सरकार का कहना था कि यह खेती बेकार का काम था, किसानों को चाहिए कि वे नई विकसित कालोनियों में अपनी दुकानें खोलें और ख़ूब पैसा कमाएं। यह आम आदमी पार्टी की पंजाब में किसानों की भलाई के लिए लागू की जाने वाली किसान भलाई स्कीम थी। दिल्ली में शराबियों के लिए ‘शराब भलाई स्कीम’ के फेल हो जाने के बाद पंजाब में यह नई ‘किसान भलाई स्कीम’ लागू की गई थी। लेकिन भीतर की बात जानने का दावा करने वाले कह रहे थे कि ‘शराब भलाई स्कीम’ की तरह ही यह पंजाब में बिल्डर्स माफिया से पैसा वसूलने का केजरीवाल का तरीका है। लेकिन मान लो किसान अपनी जमीनें सरकार को देकर, खेती का काम छोड़ कर दुकानें भी खोल लें तो भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न बचता था। गांव में इस जमीन पर मजदूरी का काम काम करके आजीविका चलाने वाला भी एक वर्ग होता है। इसी जमीन के लिए किसानों की अन्य जरूरतें पूरी करने वाले कुछ बढ़ई, लोहार इत्यादि भी होते हैं। किसान तो जमीन देकर दुकानदार बन जाएगा लेकिन किसान की जमीन पर आश्रित ये बाकी लोग कहां जाएंगे? इसका उत्तर देने की जरूरत शायद केजरीवाल जरूरी नहीं समझते। लेकिन पंजाब के किसान शायद केजरीवाल की इस किसान भलाई स्कीम को समझ नहीं पाए। वैसे भी केजरीवाल की स्कीमों को समझने के लिए बुद्धि से ज्यादा चतुराई चाहिए। केजरीवाल को प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास व डां आनंद कुमार जैसे लोग नहीं समझ पाए थे। जब तक समझ पाते तब तक वे इन सभी को पार्टी से बाहर निकाल चुके थे।

जिस केजरीवाल की भीतरी चतुराइयों को अन्ना हजारे नहीं समझ पाए, उसे पंजाब के सीधे-साधे निश्छल किसान कहां समझ पाएंगे? यही सोच कर भगवंत मान की सरकार ने किसानों पर लैंड पूलिंग पालिसी का जाल फेंका था। लेकिन पंजाब का किसान समझ गया कि शिकारी ने जाल फेंका है। पंजाब का किसान एक बार इस जाल में फंस चुका था और केजरीवाल को पंजाब में विधानसभा की 92 सीटें दे दी थीं। परंतु काठ की हांडी चूल्हे पर एक बार चढ़ती है, बार-बार नहीं चढ़ती। किसानों ने गांव के बाहर जगह-जगह बोर्ड लगा दिए, केजरीवाल की पार्टी का कोई आदमी गांव में न आए। उनका प्रवेश वर्जित है। भगवंत मान अपने चुटकुले सुना कर किसानों को धोखा देने की कोशिश करते करते स्वयं ही चुटकुला बनने की स्थिति में पहुंचने लगे। पहले तो वे अपने गांव की कहानियां सुनाया करते थे कि किसान अपनी जमीन की रक्षा के लिए कत्ल करने से भी नहीं चूकता, लेकिन अब वे यह समझाने लगे कि दुकानदारी के क्या क्या फायदे हैं। यह फायदे शायद उन्हें केजरीवाल ही बताते होंगे, क्योंकि भगवंत मान तो आज तक भी यही समझाते रहते थे कि किसान खेती कैसे करता है। लेकिन अब वे पंजाब के किसानों को नया पाठ पढ़ा रहे थे। यह वह पाठ था जिसे याद करने में शायद भगवंत मान के भी पसीने छूट रहे थे। लेकिन किस्सा कोताह यह कि अंत में दिल्ली की शराब नीति की तरह पंजाब में यह किसान भलाई नीति भी सरकार को वापस लेनी पड़ी। आंखों में आंसू ला देने वाला प्याज भी खाना पड़ा और सजा भी भुगतनी पड़ी। सबसे बड़ी बात यह कि पंजाब के आगे आम आदमी का भीतरी पर्दा भी नंगा हो गया, हाथी के दांतों की तरह दो खाने के और होते हैं और दिखाने के लिए और होते हैं। पंजाब ने पहली बार केजरीवाल के खाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले असली तीखे दांत देखे थे। जाहिर है भरी सभा में किसी का पर्दा उठ जाए और उसकी असलियत सामने आ जाए तो उसे अपने भविष्य की चिंता सताने लगती है। लैंड पूलिंग नीति का पर्दा खुल जाने के बाद यही चिंता केजरीवाल को सताने लगी। कुछ महीनों बाद ही पंजाब विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं। पार्टी के तीखे और खतरनाक दांत, जिनसे सचमुच खाया जाता है, लोगों ने देख लिए हैं। इसलिए आने वाले चुनावों में कहीं दिल्ली की तरह पंजाब भी केजरीवाल को अर्श से फर्श पर तो नहीं ले आएगा? यदि लैंड पूलिंग नीति के चक्कर में किसान फंस जाते तो चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाती। लेकिन उस नीति को तो किसानों ने छूने से भी इंकार कर दिया था।

अब चुनाव कैसे जीते जाएं? इसके लिए आम आदमी पार्टी ने पंजाब के लिए नई नीति अपनाई। पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया, जिन्होंने पंजाब को संभाल लेने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है, उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक अंदरूनी बैठक में यह नई नीति समझाई। उन्होंने कहा कि हमें हर हालत में पंजाब विधानसभा का आगामी चुनाव जीतना ही है। उनके अनुसार, ‘2027 का चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद, सच-झूठ, प्रश्न-उत्तर, लड़ाई-झगड़ा, जो भी करना पड़ेगा, वह करेंगे। हम तैयार हैं जोश के साथ।’ पंजाब में चुनाव जीतने के लिए उनकी इस भावी योजना पर वहां उपस्थित सभी तथाकथित कार्यकर्ताओं ने तालियां बजा कर इस नई नीति का स्वागत किया। पंजाब के लोगों को भी, एक प्रकार से चुनौती देते हुए आम आदमी पार्टी ने पंजाब को लेकर अपनी इस नई नीति की घोषणा अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पर भी कर दी। आम आदमी पार्टी के हौसले की तो सचमुच दाद देनी पड़ेगी। लगता है शराब नीति के बाद लैंड पूलिंग नीति और उसके बाद ‘साम दाम दंड भेद नीति’ के कारण केजरीवाल एक के बाद दूसरे दलदल में फंसते जा रहे हैं।

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