समाजसेवा, शिक्षा और समर्पण की जीवंत मिसाल – 89 वर्षीय ‘गुरुजी’ श्री ओमप्रकाश शर्मा का जन्मदिवस भव्य रूप से मनाया गया
-: सक्षम भारत :-
नई दिल्ली ( अजय कुमार चौधरी) लक्ष्मी नगर ट्रांस यमुना क्षेत्र के सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक जीवन की पहचान बन चुके 89 वर्षीय प्रतिष्ठित समाजसेवी एवं सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा जी का जन्मदिवस एक गरिमामय समारोह के रूप में लक्ष्मी नगर स्थित बेनी स्वीट्स में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह अवसर न केवल एक जन्मदिवस था, बल्कि समाज के लिए समर्पित एक सदी के प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का शुभ क्षण भी था।
इस विशेष समारोह में राष्ट्र टाइम्स के संपादक श्री विजय शंकर चतुर्वेदी द्वारा श्री शर्मा जी को शॉल, प्रतीक चिन्ह और हार्दिक शुभकामनाओं सहित सम्मानित किया गया। उनकी जीवन यात्रा को समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बताते हुए चतुर्वेदी जी ने कहा कि “श्री ओमप्रकाश शर्मा जी न केवल एक शिक्षक रहे हैं, बल्कि उन्होंने सच्चे अर्थों में एक संजीवनी पुरुष की भूमिका निभाई है, जिन्होंने शिक्षा को समाज सेवा से जोड़ कर जीवन भर पीड़ितों, जरूरतमंदों और उपेक्षितों के हित में कार्य किया।”
इस समारोह में कई विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति ने आयोजन को और भी विशेष बना दिया। पूर्व पार्षद श्री बी.बी. त्यागी, संतोष पॉल, श्री राजेश पांडेय, रूपेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र चौधरी, अशोक शर्मा, एवं के. के. बेनी जैसे सम्माननीय गणमान्यजन उपस्थित रहे, जिन्होंने श्री शर्मा जी को पुष्पगुच्छ और शुभकामनाएं अर्पित कीं तथा उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की मंगलकामना की।
श्री ओमप्रकाश शर्मा, जिन्होंने आलोक भारती पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्य के रूप में लंबे समय तक सेवाएं दीं, ‘गुरुजी’ के नाम से पूर्वी दिल्ली, विशेष रूप से ट्रांस यमुना क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय हैं। वे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनका जीवन समाज के उत्थान, गरीबों की सहायता, और नैतिक मूल्यों की स्थापना में बीता है। वे सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक समरसता और शिक्षात्मक प्रगति के सशक्त संवाहक रहे हैं।
पिछले पचास वर्षों से भी अधिक समय से, श्री शर्मा जी ने लक्ष्मी नगर कॉम्प्लेक्स एवं आसपास के क्षेत्रों के विकास, स्वच्छता, सामुदायिक एकता और जनजागरूकता अभियानों में अग्रणी भूमिका निभाई है। वे अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और आज भी समाज की हर छोटी-बड़ी गतिविधियों में अपनी सक्रिय सहभागिता निभा रहे हैं।
उनका जीवन दर्शन यही रहा है – “सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है, और शिक्षा उसकी पहली सीढ़ी।”
उनके जन्मदिवस का यह आयोजन समाज के हर वर्ग के लिए यह संदेश था कि सेवा, समर्पण और सच्चाई से जीने वाले लोग कभी उम्रदराज नहीं होते – वे समाज के लिए सदैव ऊर्जा और प्रेरणा बने रहते हैं।