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गांवों में बेहतर ऋण आबंटन जरूरी

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

यद्यपि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार आ रहा है, लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में सरल और सुगम ऋण की जरूरत बनी हुई है। हाल ही में 12 मई को वित्त मंत्रालय ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) की समीक्षा बैठक में इन बैंकों की वित्तीय व्यवहार्यता योजनाओं पर चर्चा की और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्तीय समावेशन के मामले में प्रदर्शन सुधारने और ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण आवंटन बेहतर करने के लिए सुझाव दिए गए। ऐसे में निश्चित रूप से गांवों में बेहतर ऋण आवंटन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। गौरतलब है कि देश छोटे किसानों को आय सहायता के लिए लागू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम किसान) की स्पष्ट उपयोगिता दिखाई देने लगी है। पीएम किसान के तहत पारदर्शिता के साथ प्रति वर्ष 3 किस्तों में 6 हजार रुपए सीधे छोटे किसानों के खातों में दिए जाते हैं। विगत 27 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत लगभग 16800 करोड़ रुपये की 13वीं किस्त देशभर के लाभार्थी किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) द्वारा जमा की। देश के 11 करोड़ से अधिक छोटे किसानों के खातों में अब तक लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए जमा किए जा चुके हैं। इसमें भी 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पैसे किसानी करने वाली हमारी माता-बहनों के खाते में जमा हुए हैं। केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक 2014 के पहले तक कृषि क्षेत्र का बजट लगभग 25 हजार करोड़ रुपए होता था, जबकि अब 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपए का बजट कृषि के लिए है। कृषि के विकास के लिए टेक्नालाजी के माध्यम से काम किया जा रहा है। केंद्र सरकार 10 हजार नए एफपीओ बना रही है, जिस पर 6865 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई है जिसमें किसानों को उनकी प्रीमियम 25 हजार करोड़ रुपए के मुकाबले अभी तक 1.30 लाख करोड़ रुपए क्लेम के रूप में दिए गए हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, 1 लाख करोड़ रुपए का एग्री इंफ्रास्ट्रकचर फंड एवं कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के फंड दिए गए हैं।

हर जगह गैप्स भरने के लिए तथा किसान मुनाफे की खेती करें, इसके लिए पर्याप्त निवेश की व्यवस्था की है। इस बार 2023-24 के बजट में भी एग्री स्टार्टअप को मदद देने के साथ ही, प्राकृतिक खेती, मिलेट्स व बागवानी फसलों को बढ़ावा देने, कृषि क्षेत्र में टेक्नालाजी के जरिये विकास, प्लांटेशन को बढ़ाने, हर विषय के लिए पर्याप्त प्रावधान किए हैं, जिससे भारतवर्ष की खेती को काफी फायदा मिल रहा है और मिलेगा। कृषि उत्पादों का निर्यात बढक़र 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है, जो अब तक का सर्वाधिक है। साथ ही खाद्यान्नों के मामले में हम आत्मनिर्भर हैं। नि:संदेह इस वर्ष एक जनवरी 2023 से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) 2023 की जिस तरह उत्साहवद्र्धक शुरुआत हुई है, उससे भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। ज्ञातव्य है कि भारत सरकार के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है, जिसे वर्ष भर देश के साथ ही वैश्विक स्तर पर उत्साह के साथ मनाने तथा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स की मांग और स्वीकार्यता बढ़ाने के उद्देश्य से, अनेक कदम सुनिश्चित किए गए हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश में एक जिला-एक उत्पाद के तहत 19 जिलों को श्रीअन्न के लिए चुना गया है। भारत में श्रीअन्न की उपज और खपत में लगातार वृद्धि हो रही है। इसकी विभिन्न प्रजातियों की खेती 12 राज्यों में होती है। प्रति व्यक्ति खपत पहले दो किलो प्रति माह थी, जो अब बढक़र 14 किलो तक पहुंच गई है। केंद्र सरकार ने कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) को श्रीअन्न के प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी सौंपी है और उसके संसाधन बढ़ाए हैं। एपीडा ने भी दो स्तरों पर काम प्रारंभ कर दिया।

उसने ऐसे 30 प्रमुख देशों की सूची बना ली है जो मोटे अनाज के बड़े आयातक हैं। साथ ही अपने देश के 21 राज्यों में उत्पादन बढ़ाने की कार्ययोजना भी बना ली है। एपीडा ने एक कदम और बढ़ाते हुए श्रीअन्न की खपत और कारोबार को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीअन्न ब्रांड का निर्माण किया है। वस्तुत: मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है। श्रीअन्न केवल भोजन या खेती तक ही सीमित नहीं है। भारतीय परंपरा में यह गांवों-गरीबों से जुड़ा है। छोटे किसानों के लिए समृद्धि का द्वार, करोड़ों लोगों के पोषण का आधार व आदिवासियों का सम्मान है। सामान्य भूमि और कम पानी में भी उगाया-उपजाया जा सकता है। यह रसायनमुक्त है। उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। खेती के लिए खाद की जरूरत नहीं पड़ती। जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार है। इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक संग्रहण योग्य बने रहते हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों से मोटे अनाज की फसलें किसान हितैषी फसलें हैं। ज्ञातव्य है कि देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद गेहूं-चावल का हर तरफ अधिकतम उपयोग होने लगा। मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया। स्थिति यह है कि कभी हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज की हिस्सेदारी इस समय 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है।

निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के तहत जनवरी से अप्रैल 2023 के चार माह पूर्ण होने के बाद यह बात उभरकर दिखाई दे रही है कि अब सरकार की यह रणनीति होनी चाहिए कि जिस तरह से पिछले चार-पांच दशकों में अन्य नकदी फसलों को बढ़ावा देने के कदम उठाए गए हैं उसी तरह के कदम मोटे अनाजों के संदर्भ में भी उठाए जाएं। इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाना होगा। देश के कृषि अनुसंधान संस्थानों के द्वारा मोटे अनाजों पर लगातार शोध बढ़ाया जाना होगा। देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आम आदमी तक गेहूं एवं चावल की तुलना में मोटे अनाज की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मोटे अनाजों की सरकारी खरीदी बढ़ाई जानी होगी। साथ ही मोटे अनाजों के निर्यात को अधिक ऊंचाई देने की नई रणनीति भी बनाई जानी होगी। हम उम्मीद करें कि जहां छोटे किसानों का सशक्तिकरण और अंतरराष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष भारत के लिए मोटे अनाज सहित खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में मील के पत्थर साबित होगा, वहीं गांवों में ऋण आबंटन बेहतर किए जाने से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवरते हुए दिखाई देगी।

 

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