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कर्नाटक में कांग्रेस की कन्नड़ अस्मिता भारी

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

कर्नाटक विधानसभा का चुनाव बड़े रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। 8 मई को यहां पर प्रचार थम जाएगा। 10 मई को मतदान होना है। 13 मई को चुनाव परिणाम घोषित होंगे। कर्नाटक के चुनाव प्रचार में इस बार मतदाताओं की बल्ले-बल्ले है। सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। लोकलुभावन घोषणाएं हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित आधा दर्जन से ज्यादा भाजपा के मुख्यमंत्री दो दर्जन से ज्यादा केंद्रीय मंत्री और उनके स्टार प्रचारक पिछले कई महीनों से कर्नाटक विधानसभा के चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। पिछले 1 हफ्ते से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने कर्नाटक में मोर्चा जमा कर रखा हुआ है। चुनाव प्रचार के दौरान सांप और बजरंग बली कर्नाटक के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका में आए। नंदनी दूध और अमूल दूध भी चुनाव प्रचार में अपनी रंगत जमाई, कर्नाटक के मतदाताओं को पहली बार एहसास हुआ कि वह कितने महत्वपूर्ण हैं।
कांग्रेस ने भी इस चुनाव में पूरी
तयारी के साथ चुनाव के युद्ध में अपने कौशल का प्रदर्शन किया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, जो कर्नाटक के सपूत हैं। उन्होंने हर मौके पर सीधे प्रधानमंत्री और भाजपा पर हमला कर मतदाताओं को रिझाने का काम किया। उसका असर भी देखने को मिल रहा है।कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी, जो अब पूरी तरह से परिपक्व हो गए हैं।उन्होंने भी चुनाव मैदान में कोई कोर कसर अपने कौशल को दिखाने की नहीं छोड़ी। मतदाताओं को जोड़ने के लिए उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के बीच विशेष प्रभाव डालने में वह सफल रहे।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सबसे असरकारी भूमिका प्रियंका गांधी वाड्रा ने निभाई। उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी की यादें कर्नाटक के चुनाव में ताजा कर दी। कर्नाटक में इंदिरा गांधी की बड़ी लोकप्रियता है। उन्होंने जिस आक्रमक शैली से भाजपा के नेताओं और भाजपा पर हमला किया। कांग्रेस के पक्ष में उन्होंने एक ऐसी हवा बनाई, उसने बड़े-बड़े युद्ध वीरों की हवा निकाल दी। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में इंदिरा गांधी सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कर्नाटक के हर वर्ग के मतदाताओं को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाई है। जिसके कारण कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम बड़े आश्चर्यजनक होने जा रहे हैं।
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में सबसे ज्यादा असर मतदाताओं पर 40 फ़ीसदी कमीशन खोरी का पड़ा। उसके बाद नंदिनी दूध का अमूल दूध में विलय करने वाले बयान के बाद, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कन्नड़ अस्मिता और गुजराती मॉडल का, मतदाताओं पर बड़ा असर पड़ा। रही सही कसर कर्नाटक में पहली बार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं बगावत के रूप में देखने को मिला।उसके बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव की फिजा बड़ी तेजी से बदलती हुई चली गई।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक नई ऑक्सीजन मिली है। वह पूरी ताकत के साथ दौड़ने लगी है। कर्नाटक चुनाव में किसी भी किस्म का डर और भय,कांग्रेस नेताओं में देखने को नहीं मिला। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस नेताओं में भारी दबाव देखने को मिलता था। कांग्रेस नेताओं की आक्रामकता का असर मतदाताओं के बीच में देखने को मिला। मतदाता भी अब मुखर होकर बोलने लगा। जिसके कारण सर्वे कर रही एजेंसियों को मतदाताओं का मूड जानने मैं आसानी हुई।
चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में भाजपा रक्षात्मक स्थिति में देखी गई। पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर आधारित होकर कर्नाटक में लड़ा जा रहा है। कर्नाटक के चुनाव प्रचार में स्थानीय नेता कहीं देखने में नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस के घोषणा पत्र मे आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने, जिसमें बजरंग दल का भी उल्लेख है। उसको आधार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को बजरंगबली के भरोसे छोड़ दिया। निश्चित रूप से भारत में धर्म के प्रति आस्था है। देवी देवताओं का आम जनता और गरीब गुरबों में बड़ा असर होता है। भाजपा को भी बजरंगबली के सहारे कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने की नई आस बनी है। यह ध्रुवीकरण कितना काम करता है। इसका पता तो चुनाव परिणाम के बाद ही लगेगा। लेकिन अभी इसका कोई विशेष असर होता हुआ दिख नहीं रहा है।
6 हिस्सों में बंटा कर्नाटक राज्य
कर्नाटक राज्य की 224 विधानसभा सीटें 6 अलग-अलग इलाकों में बंटी हुई हैं। जहां से अलग-अलग चुनाव परिणाम मिलते हैं।
मुंबई कर्नाटक की 50 सीटें
मुंबई कर्नाटक इलाके में 50 विधानसभा सीटें आती हैं। यह क्षेत्र भाजपा के प्रभाव का क्षेत्र माना जाता है। 2018 के चुनाव में भाजपा को 30, कांग्रेस को 17, जेडीएस को 2 और अन्य को 1 सीट प्राप्त हुई थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बिल्कुल उलट होती हुई दिख रही है। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को न्यूनतम 30 सीट, भाजपा को 18 सीट एवं अन्य को 2 सीट मिलती हुई दिख रही हैं। यहां पर वोटों का समीकरण तेजी के साथ बदला है। इस क्षेत्र में लिंगायत, कुरुवा,एससी-एसटी तथा मुस्लिम वोट निर्णायक स्थिति में होते हैं।
पुराना मैसूर 59 सीट
ओल्ड मैसूर के क्षेत्र में 59 विधान सभा सीटें आती हैं। इस क्षेत्र को जीडीएस का गढ़ माना जाता है। 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां पर भी कांग्रेस को फायदा होता हुआ दिख रहा है। यहां पर जेडीएस और भाजपा दोनों ही कमजोर हुई हैं। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मतदाताओं का जो रुझान प्राप्त हुआ है। उसमें कांग्रेस बढ़त मिल रही है
भाजपा ने यहां पर वोक्कालिंगा समुदाय का आरक्षण 5% से बढ़ाकर 7% कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस पर रोक लगा दी है। भाजपा को उम्मीद थी, कि इससे कांग्रेस और जेडीएस का वोट कम होगा। इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। लेकिन यहां पर भी आरक्षण के इस फैसले से भाजपा को नुकसान होता हुआ नजर आ रहा है। इस इलाके में भी कांग्रेस की लोकप्रियता बड़ी तेजी के साथ बढ़ी है। मतदाताओं ने आरक्षण के मुद्दे को नकार दिया है।
2018 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 29 सीटें मिली थी। कांग्रेस को 20 सीटें प्राप्त हुई थी। भाजपा को 8 सीटें मिली थी।2 सीटें अन्य उम्मीदवारों को मिली थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहाँ से अच्छी बढ़त लेते हुए दिख रही है। कांग्रेस को 30 सीटें, भारतीय जनता पार्टी को 15 सीटें,जेडीएस को 14 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं।यहां पर सबसे ज्यादा नुकसान इस बार जनता दल एस को होता हुआ दिख रहा है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में हो रहा है।
कल्याण- कर्नाटक क्षेत्र 40 सीट
कल्याण कर्नाटक क्षेत्र मे 40 सीटें हैं। यहां पर लिंगायत, मुस्लिम, एससी, एसटी, कुरबा समुदाय के मतदाता निर्णायक स्थिति में आते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने यहां भी मुस्लिमों का आरक्षण काटकर, लिंगायत और वोकालिंगा समुदाय के बीच में बांटा है। इस क्षेत्र में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे और जगदीश शेट्टार जो अब भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए हैं। इन दोनों नेताओं का बड़ा असर है। शेट्टार के कांग्रेस में जाने से इस क्षेत्र में भारी परिवर्तन आया है। भाजपा ने बागी जगदीश शेट्टार को हराने के लिए पूरी ताकत लगा दी है।इसके बाद भी इस चुनाव में भाजपा को नुकसान होता हुआ दिख रहा है। इस चुनाव में जाति और धर्म के स्थान पर,महंगाई और भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा मतदाताओं के बीच में बन गया है। इस क्षेत्र से भी आश्चर्यजनक परिणाम सामने आ रहे हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से 15 सीट कांग्रेस को 21 सीट जेडीएस को 4 सीट प्राप्त हुई थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है। 2023 में इस क्षेत्र से कांग्रेस को 25 सीटें 12 सीटें भाजपा को और 3 सीटें जेडीएस को मिलती हुई दिख रही हैं।
मध्य कर्नाटक
कर्नाटक विधानसभा की 28 सीटें मध्य कर्नाटक क्षेत्र की आती हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से अच्छी जीत हासिल की थी।2013 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से बड़ी विजय प्राप्त की थी।इस क्षेत्र में लिंगायत, कुरुवा, एससी और एसटी मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी कड़ी टक्कर है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस ने अपनी पकड़ बढ़ाई है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से 23 सीटें मिली थी कांग्रेस मात्र 5 सीटों पर सिमट गई थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में यह स्थिति तेजी के साथ बदलती हुई दिख रही है। कांग्रेस को 2023 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटें भाजपा को 7 सीटें एवं अन्य को 1 सीट प्राप्त हो सकती है।
तटीय कर्नाटक क्षेत्र 19 सीट
तटीय कर्नाटक क्षेत्र में 19 विधानसभा सीटें आती हैं। यहां पर मोगावीरा, ब्राह्मण,अडिगा, ईसाई और मुस्लिम समुदाय के मतदाता आते हैं।2013 में यह, कांग्रेस का प्रभाव क्षेत्र था। 2018 में भाजपा ने यहां से अच्छी विजय प्राप्त की थी। इस बार यहां से भी कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 17 सीट प्राप्त हुई थी। कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बिल्कुल उलट दिख रही है। यहां पर कांग्रेस को 15 सीटें और भाजपा को 4 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं।
बेंगलुरु क्षेत्र 28 सीट
कर्नाटक राज्य का बेंगलुरु विधानसभा क्षेत्र के मतदाता कभी हवा के साथ नहीं उड़ते है।राजनीति में यह क्षेत्र संतुलन बनाकर रखता है। इस बार कांग्रेस और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत, इसी क्षेत्र को साधने में लगाई है। इस क्षेत्र में 28 विधानसभा की सीटें आती हैं। इसमें वोक्कालिगा,ब्राह्मण, मुस्लिम और रेड्डी समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां मुख्य रूप से टक्कर कांग्रेस और भाजपा के बीच में हैं। कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार इसी क्षेत्र से आते हैं। इनका भी बड़ा प्रभाव है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 12 सीटें प्राप्त हुई थी। कांग्रेस को 14 सीटें मिली थी। जीडीएस को 2 सीटें प्राप्त हुई थी।
2023 के विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस स्पष्ट रूप से सीधी लड़ाई में बढ़त लेती हुई दिख रही है। इस चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें और भाजपा को 10 एवं अन्य को एक सीट मिलने का अनुमान है। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच में सीधा मुकाबला है।
इस चुनाव की विशेष खासियत
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में विशेष रूप से, भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा बना हुआ है।चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के यह कहने से कि नंदनी दूध का विलय अमूल दूध में कर दिया जाएगा। उसके बाद चुनावी हवा बदलना शुरू हुई।कन्नड़ अस्मिता को गुजरात मॉडल से जोड़कर देखा जाने लगा। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आ गए। टिकटों को लेकर भारी बवाल मचा। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह थी कि पिछले 9 वर्षों में कांग्रेस सुरक्षात्मक तरीके से डर डर कर चुनाव प्रचार करती थी। लेकिन इस बार कांग्रेस बहुत आक्रमक ढंग से चुनाव प्रचार कर रही है।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद से,यहां पर जाति और धार्मिक समीकरण कमजोर पड़ते हुए दिख रहे हैं।चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में बजरंगबली का मुद्दा और प्रधानमंत्री को गाली दिए जाने का मुद्दा भी जनता के बीच में असरकारी नहीं रहा। मुस्लिमों का 4 फ़ीसदी आरक्षण अलग करके, वोक्कलिंगा और लिंगायत समाज को देने का असर भी, इन दोनों वर्गों में पड़ता हुआ नहीं दिखा। यहां के लोगों की यह मांग ही नहीं थी। यह मुद्दा जबरदस्ती उठाकर हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण का जो प्रयास किया गया था। उसे मतदाताओं ने पसंद नहीं किया।

 

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