आगामी चुनाव और विपक्ष की रणनीति
-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
लोकसभा का आगामी चुनाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता जा रहा है। देश में भी और विदेश में भी। उसका कारण है। आज तक देश में तीन प्रकार की सरकारें रही हैं। कांग्रेस द्वारा अपनी कार्यकारिणी में भारत के विभाजन के पक्ष में प्रस्ताव पारित करने के उपरान्त, ब्रिटिश सरकार ने भारत को डोमीनियन का दर्जा देना स्वीकार कर लिया था और उस डोमिनियन की कमान पंडित जवाहर लाल नेहरू को सौंप दी थी। लेकिन यह ध्यान रखा कि डोमीनियन का गवर्नर जनरल अभी भी ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधि लार्ड माऊंटबेटन ही रहे। इसका ब्रिटिश सरकार को लाभ यह हुआ कि माऊंटबेटन ने जम्मू कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में करवा दिया, मामला सुरक्षा परिषद में लटका दिया जिसके कारण देश के संविधान में अनुच्छेद 370 ने जन्म ले लिया। यह कांग्रेस की पहली सरकार थी, जिसने देश के लिए भावी रणनीति तय कर दी थी। कांग्रेस की यह सरकार मोटे तौर पर 1947 से लेकर 1997 तक चली। बीच में तीन-चार साल गैर कांग्रेसी सरकारें रहीं, लेकिन वे सरकारें तकनीकी तौर पर ही गैर कांग्रेसी कही जा सकती हैं क्योंकि वे सरकारें भी मोटे तौर पर व्यक्तिगत कारणों से कांग्रेस से रूठे हुए कांग्रेसियों की ही सरकारें थीं । इसलिए देश के शासन में किन्हीं नीतिगत परिवर्तनों की आशा नहीं की जा सकती थी। सरकार की देश को लेकर सोच और दिशा वही रही जो पंडित जवाहर लाल नेहरू और लार्ड माऊंटबेटन तय कर गए थे।
यही कारण था कि पाकिस्तान बार-बार भारत पर हमले करता रहा, भारतीय सेना शौर्य का प्रदर्शन कर रही थी, लेकिन सरकारें मेज पर सेना की जीत को हार में बदलती रहीं। चीन ने भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और भारत सरकार फिर भी उसे संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पावर दिलवाने के लिए दिन-रात एक करती रही। 1998 से लेकर 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार रही। परन्तु वह चौबीस परस्पर विरोधी दलों की सरकार थी। अगले दस साल तक पुन: कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाले रखी। लेकिन यह भी तकनीकी तौर पर ही कांग्रेस की सरकार कही जा सकती थी। वास्तव में यह सोनिया माईनो गान्धी, जिसने खाँटी कांग्रेसी सीता राम केसरी को बैठक में से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया था, की सरकार ही थी जो वह अपने दरबारियों जिन्हें नैशनल कौंसिल का नाम दे रखा था, के माध्यम से चला रही थीं। लेकिन भारतीय संविधान में सरकार के मुखिया को प्रधानमंत्री कहा जाता है, इसलिए उस पद पर मनमोहन सिंह जी को बिठा रखा था। इसलिए यदि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के छह साल निकाल दिए जाएं तो 1947 से लेकर 2014 तक कांग्रेस के लोगों की सरकार ही रही। ये सरकारें चीन, अमेरिका और पाकिस्तान को बहुत ही मुफीदकारी लगती थीं।
सोनिया माईनो गान्धी की सरकार तो वैटिकन के राष्ट्रपति को एक प्रकार से अपनी ही सरकार लगती थी। यही कारण था कि उन दिनों चर्च हर रोज़ दिवाली मनाता था। इन सरकारें ने मानसिक रूप से ही तय कर रखा था कि देश को विश्व राजनीति के पिछवाड़े में ही रखना है। आर्थिक नीतियां इस प्रकार की रखी जाएं कि औद्योगीकरण में देश रेंगता रहे। जहां तक देश की सांस्कृतिक पहचान का प्रश्न था, इन सरकारों का निश्चित मत था कि देश की संस्कृति ही देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। यह देश का मानसिक पिछड़ापन है। इसलिए ये सरकारें भारत के विसंस्कृतिकरण को नीति का हिस्सा बनाती थीं। कुल मिला कर देश को विश्व शक्तियों का पिछलग्गू बना कर रखना भारत सरकार की आधिकारिक नीति थी । यही कारण था कि यह नीति रूस, चीन और अमेरिका को एक साथ ही अपने अनुकूल लगती थी। लेकिन 2014 में देश के लोगों ने इन नए-पुराने कांग्रेसियों से सत्ता लेकर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के हाथों में सौंप दी। पिछले तीस साल से बीस-बीस दल मिल कर भारत जैसे महान देश की सरकार चला रहे थे। ऐसी सरकारें देश को कोई निश्चित दिशा नहीं दे पाई। दिशाविहीन भारत उन सभी महाशक्तियों को अनुकूल लगता है जो दुनिया की दिशा अपने राजनीतिक व आर्थिक हितों के अनुकूल ढालना चाहती हैं।
लेकिन नरेन्द्र मोदी के आने से सारा परिदृश्य ही बदल गया। सबसे पहले तो देश ने सीमाओं को लेकर ढुलमुल नीति से किनारा किया। पूर्वोत्तर भारत में विकास ने गति पकड़ी। सडक़ें, रेल की पटरी बनने लगीं। हवाई अड्डे बनने लगे। सबसे बढ़ कर तिब्बत की सीमा से लगते इलाके में विकास होने लगा। जाहिर है इससे चीन तिलमिलाता। चीन तभी तक भारत का मित्र है जब तक भारत चीन की गतिविधियों की ओर से आंख मूंदे रहता है। जब भारत जागता है तो चीन को लगता है भारत अपनी परम्परा को छोड़ रहा है। चीन के लिहाज़ से भारत की परम्परा भारत द्वारा तिब्बत और लद्दाख व अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाक़ों पर चीन को कब्जा कर लेने की अनुमति देना ही है। लेकिन अब भारत डोकलाम और गलवान में चीन से भिड़ रहा है। जाहिर है चीन चाहेगा कि किसी भी तरह मोदी की सरकार हटनी चाहिए। वहीं कांग्रेस सरकार के वे पुराने दिन लौट आएं। इसी प्रकार पाकिस्तान की स्थिति है। पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में अपने आतंकवादी भेजता था। हुर्रियत कान्फ्रेंस के नेताओं को दिल्ली में अपने दूतावास में बुला कर ख़ातिरदारी करता था। मुम्बई में नरसंहार करता करवाता था। भारत में एटीएम (अरब, तुर्क, मुगल) मूल के लोग खुले आम जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान की हिस्सेदारी की बात करते थे। लेकिन सोनिया गान्धी की सरकार कहा करती थी कि बेचारा पाकिस्तान तो खुद आतंकवाद का शिकार है। लेकिन नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आ जाने से कांग्रेसी सरकारों और पाकिस्तान का वह सुहाना सफर ख़त्म हो गया। पाकिस्तान ने पुलवामा में हमला करवाया तो भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुस कर ही सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ।
कांग्रेसियों और पाकिस्तान दोनों के चेहरे सूख गए। दोनों ने एक स्वर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं। लेकिन मोदी सरकार यहीं नहीं रुकी। अनुच्छेद 370 के बहाने कश्मीर में पाकिस्तान की हिस्सेदारी बताने वाले गैंग का मुंह अनुच्छेद 370 को मार कर बंद कर दिया। कांग्रेस और पाकिस्तान ने इतना चिल्लाना शुरू किया कि भारतीयों को यह अनुमान लगाना मुश्किल हो गया कि अनुच्छेद 370 के हटने पर कौन ज्यादा दुखी है? कांग्रेस या पाकिस्तान? यही कारण है पाकिस्तान भी चाहता है कि किसी भी तरीके से हिन्दुस्तान से मोदी सरकार हटनी चाहिए। अमेरिका, इंग्लैंड को हिन्दुस्तान तब तक ही प्यारा लगता है जब तक वह पूरी वफादारी से ब्रिटिश काल की विरासत ढोता रहे और अपनी सनातन विरासत को छोड़ कर ब्रिटिश सत्ता की विरासत को ही अपनी विरासत घोषित कर दे। अभी तक कांग्रेस सरकारें यही करती आ रही थीं। लेकिन मोदी सरकार आ जाने के बाद मामला बदल गया। मोदी संयुक्त राष्ट्र से योग दिवस की घोषणा करवाते हैं। ब्रिटिश काल की शिक्षा नीति त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाते हैं। विदेशी मेहमानों को लेकर ताजमहल की जगह महाबलीपुरम लेकर जाते हैं। कोरिया के लोग अपना संबंध अयोध्या से जोड़ रहे हैं। भारत विश्व की आर्थिक शक्ति बनने के लिए दौड़ रहा है। कोरोना वैक्सीन में भारत विश्व के देशों की सहायता कर रहा है। ऐसा भारत भारतीयों को अच्छा लग रहा है, विदेशी ताक़तों और भारत में रह कर इन्हीं ताकतों के पिछलग्गू बने लोगों को नहीं। इसलिए वे सभी चाहते हैं कि किसी तरह 2024 में मोदी सरकार को हटाया जाए। यही कारण है अमेरिका सरकार सार्वजनिक रूप से कह रही है कि हम हिन्दुस्तान की सरकार की गतिविधियों पर तीखी नजऱ रखे हुए हैं। बीबीसी अपने तरीके से मोदी विरोधी ताकतों को कच्चा माल मुहैया करवा रही है।