राजनैतिकशिक्षा

लालू-शरद साथ

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

बिहार की राजनीति में एक बार फिर से बड़ा उलटफेर हुआ है। 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर अलग पार्टी बनाने वाले शरद यादव अब लालू यादव के साथ आ गए हैं। रविवार को उन्होंने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय कर दिया। शरद यादव ने राजद में विलय की घोषणा पहले ही कर दी थी। उन्होंने बुधवार को ट्वीट करके यह स्पष्ट कर दिया था। लालू के साथ शरद यादव के साथ आने के कई मायने हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शरद यादव फिर से सक्रिय राजनीति में आने को आतुर हैं। एलजेडी का आरजेडी में विलय होने के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव उनको राज्यसभा भेज सकते हैं। इस साल जुलाई में बिहार में राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं। दो सीटें भाजपा, एक सीट जदयू के पास जाएगी। जबकि दो सीटें आरजेडी के पास आएगी। आरजेडी शरद यादव को राज्यसभा भेज सकती है। उनकी बेटी सुभाषिनी यादव जो 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस से चुनाव लड़ी थीं, उनको आरजेडी संगठन में जिम्मेदारी दी जा सकती है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार को चुनौती देना इतना आसान नहीं है लेकिन शरद यादव और लालू यादव के साथ आने से राज्य का यादव मतदाता पूरी तरह उनके साथ जा सकता है जिसका चुनावों में असर भी देखने को मिलेगा। वैसे भी इस वक्त नीतीश कुमार को विपक्ष लगातार घेर रहा है। ऐसे में दोनों दलों के विलय से इनकी ताकत में निश्चित तौर पर थोड़ी बढ़ेगी लेकिन यह नीतीश के सामने चुनौती बन सकती है यह तो भविष्य ही बता सकता है। जुलाई, 1997 में जनता दल के अध्यक्ष पद को लेकर लालू यादव और शरद यादव में ठन गई। उस समय जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष शरद यादव हुआ करते थे। लालू प्रसाद यादव ने अध्यक्ष पद को लेकर शरद यादव को चुनौती दे दी। इस चुनाव के लिए लालू प्रसाद यादव ने अपने सहयोगी रघुवंश प्रसाद सिंह को निर्वाचन अधिकारी बनाया था, शरद यादव इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने रघुवंश प्रसाद सिंह को हटाकर मधु दंडवते को निर्वाचन अधिकारी बना दिया। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए शरद यादव ने पार्टी की कार्यकारिणी में अपने समर्थकों की संख्या इतनी कर ली थी कि लालू प्रसाद यादव को अंदाजा हो गया था कि अगर वे चुनाव लड़ेंगे तो उनकी हार होगी। इसलिए लालू ने अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाने का फैसला लिया। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 1997 में जनता दल छोड़ दिया था और इसके नेतृत्व के साथ अपने मतभेदों के कारण अपनी पार्टी बनाई थी क्योंकि चारा घोटाले के खिलाफ जांच में तेजी आई थी, जिसमें वह मुख्य आरोपी थे। शरद यादव को तब जनता दल के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा गया था और बाद में वह नीतीश कुमार के साथ 2005 में बिहार में राजद के 15 साल के शासन को समाप्त करने के अभियान में शामिल हो गए थे। 74 वर्षीय शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल की स्थापना की थी। हालांकि, इसके बाद से ही उनका राजनीतिक पतन भी शुरू हो गया। जदयू से अलग होने के बाद से उन्होंने अकेले चुनाव नहीं लड़ा। खुद पार्टी प्रमुख शरद यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, शरद की बेटी सुहासिनी यादव ने भी राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। बताया जा रहा है कि अब शरद यादव को लालू राज्यसभा पहुंचा सकते हैं। दरअसल बिहार में इसी जुलाई में राज्यसभा की पांच सीटें खाली होंगी। इनमें दो सीटें भाजपा की और एक सीट जेडीयू के पास जाएगी। जबकि बाकी दो सीटें दो सीटें आरजेडी के पास आएंगी। ऐसे में माना जा रहा है कि शरद यादव को आरजेडी राज्यसभा भेज सकती है।

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