राजनैतिकशिक्षा

कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन का उठता मुद्दा!

-डॉ श्रीगोपाल नारसन-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कांग्रेस में यूं तो उच्च स्तर पर असन्तुष्ट 23 बड़े नेताओं का गुट लंबे समय से पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहा है,लेकिन साथ ही उतने ही जोर से बड़ी संख्या में ऐसे कांग्रेस जन भी है जो हर हाल में गांधी परिवार से बाहर पार्टी का नेतृत्व सौंपना नही चाहते।तभी तो हाल ही में कपिल सिब्बल व गुलाम नबी आजाद द्वारा उठाई गई नेतृत्व परिवर्तन की मांग पर मल्लिकार्जुन खड़के व अधीर रंजन ने उन पर जनाधार हीन, आरएसएस व भाजपा के इशारे पर उंक्त वक्तव्य देने का आरोप तक लगा दिया।
कपिल सिब्बल ने हाल ही में पांच राज्यो में हुई कांग्रेस की हार के बाद कहा कि अब वक्त आ गया है कि ‘घर की कांग्रेस’ की जगह ‘सब की कांग्रेस’ हो। इस बार के परिणामों ने उन्हें आश्चर्यचकित नहीं किया क्योंकि उन्हें इसका अंदाजा पहले से था। कांग्रेस सन 2014 से लगातार नीचे की ओर जा रही हैं। कांग्रेस ने राज्य दर राज्य खोया है। जहां कांग्रेस सफल हुई वहां भी कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओ को एक साथ नहीं रख पाई। इस बीच कांग्रेस से कुछ प्रमुख लोगों का पलायन हुआ है। जिनमें नेतृत्व का भरोसा था उनमे अधिकांश कांग्रेस से दूर चले गए।सन 2022 के विधानसभा चुनाव में भी नेतृत्व के करीबी लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया। सन 2014 से अब तक लगभग 177 सांसद, विधायक के साथ-साथ 222 उम्मीदवार कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। किसी अन्य राजनीतिक दल में इस तरह का पलायन नहीं कभी नही हुआ।पांचों राज्यो के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी है तो अब उसपर ठीकरा फोड़ने के लिए सिर तलाश किये जा रहे हैं।हार को लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग हुई। उसमे बात चली कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई और बने लेकिन बात नहीं बन पाई।अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पांचों राज्य जिनमें पार्टी की करारी हार हुई है, यानि उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर राज्यों के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षों से त्याग पत्र ले लिया है ताकी पार्टी इन राज्यों में संगठन को रीऑर्गेनाइज कर सके।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस के कमजोर होने की बात स्वीरकारी है। उन्होंखने कहा कि कांग्रेस कमजोर हो गई है, यह मानता हूं। सत्ता में आना या ना आना बड़ी बात नहीं है, भाजपा के लोग केवल ध्रुवीकरण पर चुनाव जीत रहे हैं।मुद्दे के आधार पर चुनाव नहीं लड़ते हैं, उस तरह से लड़ेंगे तो हार जाएंगे। उन्होंरने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई मुख्य मुद्दा है जिससे भाजपा दूर भागती है।अशोक गहलोत का कहना है कि देश और कांग्रेस का डीएनए एक है। भाजपा की भी एक बार दो सीट आई थी, यह भाजपा के लोग भूल गए क्या? देश एक रहे इसके लिए इंदिरा गांधी और बेअंत सिंह ने जान दी है।ध्रुवीकरण को लेकर भी गहलोत ने भाजपा को कटघरे में खड़ा किया और कहा कि भाजपा के लोग ध्रुवीकरण कर रहे हैं।हिंदुत्व के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। यह लोकतंत्र में ठीक नहीं है। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस सबकाे साथ लेकर चली है, तभी हम लोग यहां तक पहुंचे हैं। ये लोग आग लगाते हैं और हम बुझाते हैं,इसमें मुश्किल होती है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हार से घबराने वाले नेताओं में से नही है उन्होंने माना कि पार्टी को भविष्य की चुनौतियों से पार पाना है। उन्होंने कहा कि रणनीतिक रूप से कहीं पार्टी से चूक हो रही है जो वह बार-बार लोगों का विश्वास जीतने में विफल हो रही है।उनका कहना है कि कांग्रेस और संवैधानिक लोकतंत्र के सेवकों की निगाहें अब भी कांग्रेस पर टिकी हुई हैं।हरीश रावत ने आरोप लगाया कि भाजपा द्वारा गढ़े हुए झूठ का चुनाव में सहारा लिया गया है।क्योंकि हमने कभी भी शुक्रवार की नमाज़ की छुट्टी का कोई आदेश नहीं निकाला और राज्य में भी ऐसा कोई आदेश कभी नहीं निकला है। भाजपा ने इसे झूठ की तरह फैलाया ताकि वोटो का धुर्वीकरण हो सके।भाजपा का दूसरा झूठ मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोलने को लेकर है। मुझसे कभी किसी मुसलमान भाई ने उत्तराखंड तो छोड़िए देश भर के किसी मुसलमान भाई ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी या मुस्लिम कॉलेज खोलने की मांग नहीं की है। मगर यह झूठ प्रचार किया गया और लोगों के मन में जहर घोला गया है,जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है।कांग्रेस में असंतोष व विरोध के वर्तमान हालात और इसमें घूम फिरकर पुन: राहुल गांधी को ही नेतृत्व सौंपने की तैयारी की विडंबना को लेकर ‘दृष्टि बदले कांग्रेस’ लेख के माध्यम से गुलाब सिंह कोठारी ने कांग्रेस के लिए आईना बताया है। उन्होंने यह भी कहा है कि कांग्रेस के लिए यह आत्मचिंतन का समय है। उसे नेतृत्व परिवर्तन के लिए भी सोचना चाहिए। यही कांग्रेस और देश के हित में होगा।इसी प्रकार बैंगलुरू से सज्जन राज मेहता कहते है कि कांग्रेस राजनीतिक दल के रूप में प्रतिष्ठित हमेशा रही है और आगे भी रहेगी। लेकिन ऐसा तब ही होगा जब अगर समय रहते दल के नेताओ की खरी खोटी को सकारात्मक रूप में स्वीकार कर बदलाव की बयार लाने को यह‌ पार्टी उत्सुक हो । भाजपा जिस तरह से लालकृष्ण आडवाणी की जगह नरेन्द्र मोदी को लाई उसी की तर्ज पर कांग्रेस में अनुभवी राजनेता को कमान सौंपी जानी चाहिए| जो गांधी परिवार से तालमेल बनाकर दल और देश दोनों की दशा और दिशा में अहम परिवर्तन ला सके । लेकिन साथ ही यह भी सच है कि न तो कभी सोनिया गांधी ने और न ही राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन से चिपके रहने की जिद्द की।जब जब भी प्रतिकूल परिस्थिति पैदा हुई सोनिया गांधी ने अध्यक्ष का दायित्व छोड़ने की पेशकश की हैं, इस बार की कार्यसमिति की बैठक में भी उन्होंने ऐसा ही किया।राहुल गांधी भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का दायित्व लेने से बार बार मना कर चुके है।ऐसे में राहुल गांधी के ही मुताबिक गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष हो,की इच्छा पूरी होने से रोकने वाले न सोनिया गांधी है और न ही राहुल गांधी बल्कि वे लोग है जो कांग्रेस कार्यसमिति से बाहर तो नेतृत्व परिवर्तन की आवाज उठाते है लेकिन बैठक में वे लोग चुप्पी साध जाते है जिससे लगता है कि उनके पास गांधी परिवार के सिवाय नेतृत्व संभालने का कोई विकल्प नही है,होता तो उसका नाम सामने लाया जाता।तो फिर खाली गाल बजाने से क्या फायदा।स्वयं कपिल सिब्बल व गुलाम नबी आजाद आज नेतृत्व परिवर्तन की मांग तो कर रहे है लेकिन वे उस समय कहा गए थे जब चुनाव हो रहा था,ये नेता तो किसी भी प्रचार सभा मे दिखाई ही नही पड़े।फिर नेतृत्व परिवर्तन की मांग का ही अधिकार उन्हें क्यो मिलना चाहिए!

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