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सीबीआई और सरकार के रिश्तों में एक निश्चित दूरी होनी चाहिए: विनोद राय

नई दिल्ली, 08 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय ने कहा कि सीबीआई को सरकार से एक निश्चित दूरी बनाकर चलने के लिए तुरंत सशक्त करने की जरूरत है। राय का मानना है कि सीबीआई भले ही डराए धमकाए नहीं लेकिन जांच के लिए कठपुतली बनती दिख रही है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस छवि को सुधारे और इस बात को सुनिश्चित करे कि उसे इस बात के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराया जाए कि इन संस्थानों की विश्वसनीयता उसके कार्यकाल के दौरान निचले स्तर पर चली गई। पूर्व कैग मानते हैं कि सतर्क लोक लेखा समिति (पीएसी) की नियमित बैठक कार्यपालिका के कामकाज की लगातार निगरानी के लिए प्रभावी हथियार है और किसी ढिलाई अथवा दुरुपयोग का संकेत मिलने पर यह उसे रेखांकित करेगी। पूर्व आईएएस अधिकारी ने अपनी नई किताब ‘‘ रीथिंकिंग गुड गवर्नेंस: होल्डिंग टू अकाउंट इंडियाज पब्लिक इंस्टीट्यूशन्स’’ में इस बात पर जोर दिया है कि मजबूत और गतिशील लोकतंत्र के आधारस्तंभ के रूप में काम करने के लिये कैसे ये संस्थाएं महत्वपूर्ण हैं। राय ने सुझाव दिया कि सीबीआई में अभियोजकों की भूमिका की नए सिरे से समीक्षा करने की जरूरत है क्योंकि एजेंसी का चर्चित मामलों में सजा दिलाने का रिकॉर्ड उत्साहजनक नहीं रहा है। रूपा द्वारा प्रकाशित अपनी किताब में उन्होंने लिखा कि अक्सर निदेशक अभियोजन की भूमिका गौण होती है और वे उसी राजनीतिक निष्ठा के दलदल में फंस जाते हैं, जो संगठन के निदेशक को भ्रमित करता है। खासतौर पर तब जब निदेशक लॉबी करके नियुक्ति पाते हैं और फिर शुरुआत ही ‘मैं आपका ऋणी हूं’ से करते हैं। राय ने कहा कि संस्था में ‘वफादार’ को प्राथमिकता देने से एजेंसी में नियुक्त होने वाले अधिकारियों की पेशेवर क्षमता में लगातार गिरावट आ रही है। इसका नतीजा यह है कि अभियोजन ज्यादातर गलत साबित हो रहे हैं। पूर्व कैग के मुताबिक किसी भी लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभों को बनाने वाली जवाबदेही संस्थाएं अपनी संरचनात्मक ताकत खोती हुई प्रतीत होती हैं। संभवतः ऐसा इसलिए हो रहा है कि निर्णायक सरकार इसे देख नहीं रही है या देखकर भी इस चेतावनी संकेतों पर कार्रवाई नहीं कर रही है।

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