राजनैतिकशिक्षा

सवाल अस्तित्व का….?: क्या काँग्रेस का ‘राष्ट्रीय दर्जा’ छीन जाएगा….?

-ओमप्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय दल अखिल भारतीय कांग्रेस पर इन दिनों ‘‘लोकप्रियता का ग्रहण’’ लगा हुआ है, आज से करीब एक सौ चालीस साल पहले सर ए.ओ. ह्यूम ने इसकी स्थापना की थी, जिसका मूल मकसद भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराने का था। बाद में पं. जवाहर लाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल आदि ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में इसकी कमान संभाली और इस दल ने अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रीय चेतना जागृत की और अन्ततः अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। देश की आजादी के बाद महात्मा गांधी ने पं. जवाहर नेहरू को परामर्श दिया था कि कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो चुका है, इसलिए इसका अब विघटन कर देना चाहिए, किंतु पं. नेहरू ने गांधी जी का परामर्श स्वीकार नहीं किया और इस पार्टी को सत्ता का मुख्य सूत्र बना दिया और इसी पार्टी के झण्डे के तले करीब सत्रह साल इस देश पर राज किया और बाद में नेहरू जी की बेटी इंदिरा जी ने पार्टी और सत्ता की विरासत संभाली और उन्होंने भी करीब अठारह साल देश पर राज किया, किंतु इंदिरा जी के अवसान के बाद यद्यपि उनके बेटे राजीव गांधी ने इंदिरा जी की विरासत संभाली, किंतु उनकी हत्या के बाद नेहरू खानदान व कांग्रेस दोनों पर अँगुलियाँ उठाई जाने लगी, क्योंकि इंदिरा जी द्वारा लगाए गए आपातकाल और संजय गांधी के कुछ कृत्यों के कारण कांग्रेस व नेहरू खानदान दोनों को आरोपों के कटघरें में खड़ा होना पड़ा था, किंतु फिर भी अपनी सवा सौ वर्षिय साख के कारण कांग्रेस नेहरू खानदान की विदेशी बहू सोनिया जी के नेतृत्व में भी 2004 से लगातार दस साल तक डाॅ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार चलाई और उसके बाद से देश के सबसे पुराने दल की विघटन प्रक्रिया प्रारंभ हो गई और इसी का परिणाम है कि पांच दशकों तक इस देश पर अपना परचम फहराकर पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब आधा दर्जन राज्यों तक ही सिमट कर रह गइ है।
…..यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमारे देश में मुख्यतः सिर्फ दो राजनीतिक दलों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, को ‘‘राष्ट्रीय राजनीतिक दल’’ का दर्जा प्राप्त है। जहां तक भाजपा का सवाल है, वह वर्ष 1980 के पहले तक ‘भारतीय जनसंघ’ थी। सन् 1980 में इसका ‘भारतीय जनता पार्टी’ के रूप में पुर्नजन्म हुआ, इसके प्रणेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लालकृष्ण आडवानी, डाॅ. मुरली मनोहर जोशी थे, अटल जी ही इस नए दल के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे। इस पार्टी को भी जन्म लेने के बाद संक्रमण के दौर से गुजरना पड़ा। कभी संसद में सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा, तो कभी प्रधानमंत्री अटल जी को संसद में इस्तीफें की घोषणा करनी पड़ी। दल को करीब एक दशक तक संयास की स्थिति से गुजरना पड़ा, इसी बीच नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के रूप में एक ‘धूमकेतु’ उदित हुआ, जो गुजरात में एक दशक तक अपनी नेतृत्व क्षमता साबित कर चुका था। उन्हें दिल्ली लाया गया और 2014 में उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताकर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और इस दैविव्यमान नक्षत्र के प्रकाश में देश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन गई और पिछले सात सालों में मोदी ने कांग्रेस को न सिर्फ हाशिये पर खड़ा होने और फिर ‘वेन्टिलेटर’ पर जाने को मजबूर कर दिया।
यद्यपि सबसे पुराने इस राजनीतिक दल की इस दुरावस्था के लिए अकेले मोदी जी का राजनीतिक शौर्य ही जिम्मेदार नहीं है, स्वयं कांग्रेस नेतृत्व की भी इसमें अहम् भूमिका है, कांग्रेस नेतृत्व ने शायद सोचा होगा कि जिस तरह मोदी जी ने अपने वरिष्ठ नेताओं अड़वानी, डाॅ. मुरली मनोहर जोशी जी आदि को ‘पूजाघर’ में स्थापित कर सत्ता गौरव प्राप्त किया वैसा ही कांग्रेस भी गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ नेताओं की ‘मूरत’ स्थापित कर गौरव हासिल कर लेगी, किंतु कांग्रेस नेतृत्व द्वारा भाजपा की कि गई नकल काफी भारी पड़ रही है, आज कांग्रेस का न राष्ट्रीय स्तर पर संगठन मजबूत है, न राज्यों के स्तर पर। राज्यस्तरीय नेता अपने आपकों राष्ट्रीय नेता मानकर कुछ भी उलट-पुलट बयान देने लगे, जिससे पार्टी की रही-सही साख भी खत्म होने लगी और अब यह राष्ट्रीय दल पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों तक ही सिमटकर रह गये…। किंतु इस दल की इस दुरावस्था की चिंता किसी भी नेता की पैशानी पर नजर नहीं आ रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जो सत्ता में होता है, उसका भी राजन्ीतिक स्तर पर क्षरण तो होता ही है, वहीं मोदी जी को अलोकप्रियता दर्शाकर शुरू हो गया है, अभी लोकसभा चुनाव में तीन साल बाकी है, इन तीन सालों में करीब डेढ़ दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होना है, तब किसकी क्या स्थिति होती है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु यह सही है कि कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा छिन जाने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *