खाकी वर्दी पहनना फूलों की सेज नहीं
-राजेंद्र मोहन शर्मा-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
पुलिस विभाग में वर्दी पथ-प्रदर्शक की सौम्य भूमिका निभाती है तथा वर्दीधारी के अस्तित्व की प्रतीति के सत्य को आंतरिक गहराई तक हृदयंगम करती है। अनीति एवं अव्यवस्था की चुनौती के समक्ष सतत संघर्ष व बलिदान ऐसी परिष्कृत चेतना का उत्थान करती है। पुलिस बल के लिए वर्दी ऐसा तोरणद्वार है जिसके माध्यम से वर्दीधारी समाज में अनाचार बढ़ने तथा सज्जनता के घटने की स्थिति में अपने प्रदत्त दायित्वों के दक्षतापूर्ण निर्वहन में प्रवेश पाते हैं। आम आदमी के मानसपटल पर वर्दी पहली ही झलक में व्यक्ति के विभाग, व्यवसाय, पद, आचार तथा अस्तित्व का अनायास ही परिचय करवा देती है। वर्दी, अनुशासन, परस्पर सहकार, समन्वय, तत्परता व समयबद्धता जैसे अनिवार्य तत्वों को अंकित करती है तथा पुलिसकर्मी पर आंतरिक सुरक्षा तथा सुचारू कानून व्यवस्था की संवेदनशील जिम्मेदारी सौंपती है जिसे प्रत्येक कर्मचारी को अपनी जान की बाजी लगाकर भी अपने कर्त्तव्यपालन को करना होता है। वर्दी शौर्य, पौरुष तथा विवेकरूपी मानव प्रेम की वह त्रिवेणी है जो निर्धारित कानूनों का दुरुपयोग करने वाले सत्ताधारी, पूंजीपति माफिया तथा सामाजिक व आर्थिक-राजनीतिक बाहुबलियों तथा उनके चेले-चपाटों के समक्ष यदा कदा बौना महसूस करते हुए पुलिस प्रशासन को उनके मूलभूत उद्देश्य के प्रति सचेत व जागरूक करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्दी को देखकर एक तरफ तो खूंखार अपराधी को डर लगता है, वहां दूसरी तरफ कमजोर, पीडि़त व बेसहारा व्यक्ति वर्दी से संरक्षण, सुरक्षा एवं शरणस्थली तलाशता है।
निःसंदेह पुलिस का मुख्य कार्य अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है तथा दुष्टों पर शिकंजा कसना है। लेकिन जब उस अपराधी ने खद्दर का सफेद कवच पहन रखा हो या फिर वह स्वयं सत्ताधारी बन कर अपने जायज-नाजायज आदेशों की पालना के लिए बाध्य करता हो तो ऐसे विकट समय में वर्दी रूपी आत्म तत्व ही पुलिस कर्मी के कर्त्तव्य धर्म की पालना हेतु एक सच्चा सृजन सैनिक बन कर अपने कर्त्तव्य निर्वहन करने के लिए प्रेरित करता है। वर्दी से ऐसा तन-मन का बल मिलता है मानो किसी डायनमों से संग्रहित व संरक्षित किया गया हो। ये संचित शक्ति ही वह वर्दी रूपी मेरूदंड है जिसकी भिती पर यह पुलिस का विशाल भवन खड़ा है। वर्दी का खाकी वर्ण ऐसा साधुबीज है जो पुलिस संस्था को अन्य सरकारी संस्थाओं से भिन्न और विशिष्ट बनाता है। खाकी वर्ण का अंतरंग महत्व एक महत्वपूर्ण गरिमा को संजोए हुए है। खाकी वर्ण पुलिस तंत्र को अपने कर्त्तव्य के लिए खाक तक में मिल जाने की उदात्त भावना की अपेक्षा को अंकित करता है। खाकी वर्दी पहनना फूलों की सेज नहीं है। इस पुलिस पथ पर हर पग पर चुभने वाले ढेरों कांटे कदम-कदम पर बिछे हैं। पुलिसकर्मी को नंगी तलवार पर चलना पड़ता है जो दोनों तरफ से काटती है। इसलिए हर पुलिसकर्मी को सदैव चैकन्ना व सतर्क रहना चाहिए। जाने एवं अनजाने में कोई भी ऐसा कुकृत्य न करें जिससे वर्दी की गरिमा खाक में मिल जाए।
एक पुलिस कर्मी की गलती समस्त पुलिस समाज को बदनाम कर देती है और लोग कह उठते हैं, ‘खाकी कुत्ते मारो जूते’। पुलिस कर्मियों को सदैव याद रखना चाहिए कि केवल अधिकार के दम पर अपराधों को नहीं रोका जा सकता। इसी तरह धनाढ्य लोगों या फिर राजनीतिज्ञों के आगे अपने स्वार्थ के लिए घुटने टेक देना पुलिस की गरिमा को कलंकित करता है। पुलिसकर्मी को नहीं भूलना चाहिए कि जिन्होंने अपनी आत्मा को बेच दिया हो वे ही खरीददारों द्वारा खरीदे जाने के लिए खोजे जाते हैं, लेकिन सिंह खरीदे नहीं जाते क्योंकि वो बिकाऊ नहीं होते। खाकी वर्दी तो उच्चाकांक्षा से अपने अंदर छिपे हीरे को खोजने, तराशने तथा हर चुनौती का सामना करने की प्रेरणा देती है। पुलिस कर्मी को अर्जुन के समान सृजन सैनिक बनकर आतताइयों और दुराचारियों का मुकाबला करना चाहिए। पुलिस वर्दी का असली बल वर्दीधारी की जमीर होती है तथा यह इसलिए भी है कि जब पुलिसकर्मी अपने कार्यान्वयन हेतु जनता के बीच जाता है तो कानून प्रदत्त उसकी शक्तियों के साथ-साथ उसका व्यक्तिगत व्यवहार एवं चरित्र चिंतन उसके कार्यों के माध्यम से झलकता है और वह झलक राष्ट्र में अपनी अमिट छाप छोड़ती है। पुलिस कर्मी का बाहरी लिबास और जो भी विशेष परिधान अर्थात वर्दी, खाकी रंग वाली, स्वच्छ, धुली हुई, खिली खिली, इस्त्री की हुई, चुस्त-दुरुस्त, स्मार्ट वर्दी वाले बांके बलिष्ठ जवान में गजब का अकर्षण तो पैदा करती ही है, मगर इसके साथ-साथ वर्दी की आंतरिक पवित्रता रूपी शुचिता, जमीर को अपने आचार एवं व्यवहार में लाकर वर्दी की बहुमुखी गरिमा को लोगों के सामने भी प्रकट करती है।
जब जवान का शरीर, वस्त्र, चित्त, मन और आत्मा आध्यात्मिक संवेदना से युक्त होकर अपनी कर्मस्थली पर उतरती है तो उसकी वर्दी राष्ट्र एवं मानव मात्र की उज्ज्वल सुरक्षात्मक आशा का प्रतीक बनती है। मगर कुछ पुलिस कर्मी अपनी वर्दी को आम लिबास की तरह ही पहन लेते हैं तथा उनको देख कर अपराधी व शातिर लोग और भी सक्रिय हो जाते हैं। स्थिति तो उस समय हास्यप्रद व आश्चर्यजनक हो जाती है जब कुछ पुलिस कर्मी शराब के नशे में धुत्त होकर सड़कों पर गिरे पड़े मिलते हैं तथा कुत्ते उनके चेहरे व मुंह को चाट रहे होते हैं। ऐसे में संपूर्ण विभाग सवालों के घेरे में आ जाता है तथा पुलिस का चेहरा दागदार हो जाता है। एक पुलिस अधिकारी की ऐसी लापरवाही समस्त पुलिसबल की बदनामी का कारण बन जाती है। वर्दी के टर्नआउट द्वारा यह पहचाना जा सकता है कि वर्दीधारी अपने कार्य में कितना संयमित, अनुशासित और तत्पर है। अतः प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी का टर्नआउट उच्च स्तर का होना चाहिए। इससे जवान का मनोबल बढ़ता है, साथ ही साथ पुलिस विभाग की जनता में छवि सुधारने में भी सहयोग प्राप्त होता है। वर्दी पहनकर कुछ अहंकार आना भी स्वाभाविक है। कुछ पुलिस कर्मचारी तो सहज ही मान लेते हैं कि उनकी साख बहुत है, उनके अधिकार क्षेत्र असीमित हैं तथा वे अभद्र व्यवहार करने से पीछे नहीं रहते। ऐसे व्यवहार से वो अपनी चमकदार वर्दी को दागदार बना लेते हैं जिसके धब्बे मिटाने से भी नहीं मिटते। पुलिस जनों को दसवीं पातशाही गुरू गोबिंद सिंह जी की इस वाणी से प्रेरित होकर अपने कार्य का निर्वहन करना चाहिए: ‘देह शिवा वर मोहे, शुभ कर्मन ते कबहुं न टरों न डरो अदि सौं, जब जाय लड़ौ, निश्चय कर अपनी जीत करौ।’