राजनैतिकशिक्षा

भारत के प्रजातंत्र में व्यक्तिवाद का जोर

-विजय कुमार जैन-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

दुनिया में सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश कहे जाने बाले हमारे देश भारत में राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र लगभग समाप्त हो गया है।अधिकांश राजनैतिक दल व्यक्ति विशेष की निजी सम्पत्ति हो गये हैं। राजनैतिक दलों पर व्यक्ति अथवा उनके पूरे परिवार का पूरी तरह से कब्जा या एकाधिकार है।
आजादी के बाद जब भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार किया और देश का संविधान बना। उस समय संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि भारत में प्रजातंत्र के नाम पर व्यक्तिवाद हावी हो जायेगा। देश के सबसे बड़े एवम् सबसे पुराने राजनैतिक दल काँग्रेस पर नेहरू गाँधी परिवार सोनिया गांधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी का एकाधिकार है। समाजवादी पार्टी पर मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव का, वहुजन समाज पार्टी पर मायावती का, राष्ट्रीय जनता दल पर लालू प्रसाद यादव, रावड़ी देवी,तेजस्वी यादव का, लोक जन शक्ति पार्टी पर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का, द्रमुक पर करुणा निधि के परिवार का, तृणमूल काँग्रेस पर ममता बनर्जी का, राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी पर शरद पवाँर या उनके भतीजे अजित पवाँर का, बीजू जनता दल पर नवीन पटनायक का उनके परिवार का, शिवसैना पर उद्धव ठाकरे एवं उनके परिवार का कब्जा है।
भारत में बामपंथी दल अथवा भारतीय जनता पार्टी अभी तक व्यक्तिवाद की राजनीति से अलग माने जाते थे। अपने आप को भाजपा केडर बेस पार्टी कहती थी। यह जोरशोर से कहा जाता था, भाजपा में परिवारवाद व बंशवाद नहीं है। इस अभिशाप से भाजपा मुक्त है। ताल ठोककर कहा जाता था भाजपा में छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है। जब से नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं भाजपा में व्यक्ति वाद इतने जोर से हावी हुआ है कि सर्वोच्च नेता भी पीछे धकेल दिये गये है। भारतीय जनता पार्टी को देश में लोकप्रिय बनाने बाले पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा को घर बैठा दिया है।
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के साथ अमित शाह को दिल्ली बुलाकर पहले भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया फिर भारत का गृह मंत्री बनाया।
आज भाजपा की स्थिति यह है गुजरात के दोनों नेताओं का कब्जा है।एक और स्थिति बनी है जो वर्षों से भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी कहते थे तथा स्वयं को धर्म निरपेक्ष कहकर देश के रक्षक बनते थे, ऐसे अनेक नेता निरंतर भाजपा के पाले में जा रहे हैं यह क्रम जारी है। सन 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले उत्तर प्रदेश में 80 में से 32 भाजपा उम्मीदवार दूसरे दलों आये हुए थे। गत वर्ष मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में दल बदल कराकर भाजपा की सरकार बनायी गयी।
राजनैतिक दलों में व्यक्तिवाद हावी होने से आन्तरिक लोकतंत्र समाप्त हो गया है। भारतीय लोकतंत्र में एक और विसंगति आई है जातिवाद हावी हो गया है। अब स्थिति यह है हर छोटे बड़े चुनाव में उम्मीदवार का चयन जाति के आधार पर किया जाता है। भारत में क्षेत्रीय दलों में अध्यक्ष एक ही व्यक्ति जीवन पर्यन्त रहता है। कुछ राजनैतिक दलों में अध्यक्ष के चुनाव की औपचारिकता मात्र की जाती है। भारत में संविधान की समीक्षा के लिये आयोग बनाया था। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वेंकट चलैया ने राजनैतिक दलों में व्यापक सुधार लाये जाने के बारे में अनेक सुझाव दिये है। जिनमें प्रमुख है चुनाव कराना, पार्टी कोष का सार्वजनिक रूप से आँडिट कराना, संवैधानिक मूल्यों के प्रति पार्टी द्वारा निष्ठा जताना आदि हैं।
काँग्रेस की बात करें तो सन 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी नेअमेठी से चुनाव हारने एवं लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर काँग्रेस अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया था। पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से काँग्रेस की अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं। सोनिया गाँधी अस्वस्थ हैं। इस कारण पार्टी का काम प्रभावित हो रहा है। कहा जा रहा है पुनः अध्यक्ष का दायित्व स्वीकार करने राहुल गाँधी को तैयार किया जा रहा है। काँग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व नेहरू गाँधी परिवार के आसपास घूम रहा है। भाजपा के सोशल मीडिया द्वारा कदम कदम पर राहुल को पप्पू सहित अनेक नाम देकर बदनाम किया जाता है।
यहाँ यह उल्लेख करना चाहते हैं जन चर्चा है मायावती ने बसपा में अपने उत्तराधिकारी के बारे में बंद लिफाफे में घोषणा कर दी है। देश में बड़े स्तर पर राजनैतिक दलों द्वारा दल बदल कराने से पार्टी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं में असन्तोष बढ़ रहा है। पार्टी कार्यकर्ता दबी जबान से अपनी पीड़ा व्यक्त कर कहते हैं हमने जीवन भर जिनका विरोध किया कभी काले झण्डे दिखाये,आज उन्हीं के लिये वोट माँग रहे हैं। प्रजातंत्र में कहा है जनता का जनता के लिये जनता द्वारा शासन होता है। मगर भारत के राजनैतिक दलों में व्यक्तिवाद,वंशवाद,परिवारवाद का बढ़ता जहर लोकतंत्र के लिये खतरा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *