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*बुध्दगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी(BTMC) के मामले में संशोधन याचिका सुप्रीम कोर्ट में पेश, अगली सुनवाई 27 नवंबर 2025 को होगी।

नई दिल्ली |(ए, के,चौधरी) बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत में “महाराष्ट्र राज्य इकाई कानूनी प्रकोष्ठ” में मुख्य सलाहकार , 7वीं राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद कुशीनगर-2019 में “प्रियदर्शी अशोक अवार्ड” से सम्मानित बौद्ध प्रवक्ता आयुष्मान शैलेश नारनवरे एडवोकेट मुंबई हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट जो मुख्य याचिका “सिविल रिट पिटीशन संख्या: 380/212 भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मामले में दाखिल याचिका के मुख्य अधिवक्ता है। उनके साथ “एडवोकेट आन रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट” श्रेय दंभारे जी (AOR) अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
बुद्धगया महाबोधि महाविहार मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश सूर्यकांत एवं न्यायाधीश जोयमाल्या बागची के समक्ष कोर्ट नंबर -2 में हुई। 91 वर्षीय मुख्य याचिकाकर्ता भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई के अधिवक्ता शैलेश नारनवरे एवं एडवोकेट श्रेय रवि दंभारे सुप्रीम कोर्ट रूम की अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर इस ऐतिहासिक मामले में सभी तथ्यों के साथ संशोधन याचिका माननीय अदालत में पेश की। जिसे माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं माननीय मूर्ति जोयमाल्या बागची ने स्वीकार करते हुए इस मामले की आगामी सुनवाई 27 नवंबर 25 निश्चित कर दी।
विश्व बौद्ध जगत की जानकारी में लाना है कि सुप्रीम कोर्ट में महाबोधि महाविहार बुद्धगया मामले की सुनवाई के अंदर लगभग 24 हस्तक्षेप याचिकाएं (Intervention Application) एवं 6 रिट पिटिशन अलग-अलग लोगों द्वारा दाखिल की गई है। इन याचिकाओं के याचिकाकर्ता बौद्ध संगठनों को देश में कोई जानता , पहचानता नहीं है, यह केवल अपने को चमकाने, फोटो वीडियो बनाने, सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने, देश में चंदा वसूली अभियान चलाने, माननीय अदालत का समय बर्बाद करने तथा बुध्दगया मामले को उलझाने पर अमादा है।
जबकि सिविल रिट पिटीशन संख्या: 380/2012 में दाखिल संशोधन याचिका में एडवोकेट शैलेश नारनवरे एवं एडवोकेट श्रेय रवि दंभारे जी ने कहा है कि वर्ष 2012 BTMC Act की धारा -3 को चुनौती दी गई थी जिसमें चार हिंदू चार बौद्ध सदस्यों के साथ गया जिले के कलेक्टर की अध्यक्षता में बनी कमेटी को समाप्त कर पूर्ण प्रबंधन बौद्धों का होना चाहिए।
संशोधन याचिका में स्पष्ट कहा गया है कि बोधगया टेंपल मैनेजमेंट एक्ट 9 जून 1949 को प्रभाव में आया जबकि भारतीय संविधान सभा ने देश के संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया था। इसलिए BTMC Act -1949 को गैरकानूनी घोषित किया जाए।
अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा वर्ष 1878 में महाबोधि महाविहार की खुदाई से प्राप्त अवशेषों, सबूतों को ध्यान में रखते हुए महाबोधि महाविहार प्रांगण के अंदर अन्य धर्मो द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण,घालमेल को रोका जाए, हटाया जाए। राम मंदिर अयोध्या मामले में आस्था के आधार पर दिए गए फैसले के अनुसार मुसलमानों को अलग जगह दी गई है। इसी तरह महाबोधि महाविहार प्रांगण से महंत के लोगों को अलग विस्थापित किया जाए।
क्योंकि महाबोधि महाविहार बुद्धगया विश्व के बौद्धों की आस्था एवं श्रद्धा का मुख्य केंद्र है और इसका ऐतिहासिक प्रमाण 260 ईसा पूर्व भारत के महान सम्राट प्रियदर्शी अशोक ने महाबोधि महाविहार का निर्माण कराया था, इसलिए सभी साक्ष्यों, तर्कों, सबूतों के आधार पर महाबोधि महाविहार का पूर्ण प्रबंधन बौद्धों को मिलेगा।

अभय रत्न बौद्ध
राष्ट्रीय समन्वयक एवं संगठक
*राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद बुद्धगया एवं
*बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति भारत।
मुख्यालय: महाबोधि मेडिटेशन सेंटर, बुध्दगया ,जिला- गया जी (बिहार)

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