राजनैतिकशिक्षा

वो दरवाज़ा जहां से भारत में मुग़लों के भविष्य का अंत लिखा गया।

-: सक्षम भारत :-
नई दिल्ली l तीन सौ से ज़्यादा साल तक हिंदुस्तान पर हुकूमत करने वाली सल्तनत उसी दरवाज़े पर सिमट कर रह गई। एक हज़ार पांच सौ 26 में पानीपत की जंग से शुरू हुई मुग़ल बादशाहत एक हज़ार आठ सौ 57 की गदर में आकर टूटने लगी। और 22 सितंबर एक हज़ार आठ सौ 57 को दिल्ली की सरज़मीं पर उस दरवाज़े पर जहाँ तीन शहज़ादों को बेइज़्ज़त कर के गोलियों से उड़ा दिया गया वहीं तय हो गया कि अब इस मुल्क पर मुग़लों की बादशाहत नहीं चलेगी। वो दरवाज़ा आज भी खड़ा है लेकिन नाम बदलकर खूनी दरवाज़ा हो गया है। क्योंकि वहीं बहा था मुग़लों की सल्तनत का आख़िरी ख़ून। आइए आज बताते हैं आपको शुरू से लेकर लास्ट तक क्या हुआ था भारत में मुगल शासन की शुरुआत 1526 में हुई थी जो कि 1857 में जाकर समाप्त हुआ। शासन की शुरुआत बाबर द्वारा पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराकर की गई थी। वहीं ब्रिटिश ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-2 को रंगून भेजकर भारत में मुगल सल्तनत खत्म कर दी। हालांकि इससे पहले ही ब्रिटिश ने भारत के एक दरवाजे पर मुगलों के भविष्य का अंत कर दिया था। कौन-सा है यह दरवाजा जानने के लिए यह लेख पढ़ें।भारत में मुगलों ने करीब 331 सालों तक शासन किया है। मुगल साम्राज्य की स्थापना एक हज़ार पांच सौ 26 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराकर बाबर द्वारा की गई थी जिसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद शासक बदलते गए और भारत में मुगल साम्राज्य अपने पैर पसारता चला गया हालांकि इतिहास की तारीख में वह दिन भी आया जब भारत में हमेशा-हमेशा के लिए मुगल शासन समाप्त हो गया और सत्ता अंग्रेजी हुकूमत के हाथों में पहुंच गई। अंग्रेजों ने मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर-2 को दिल्ली से हिरासत में लेकर रंगून भेज दिया जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिर पल बिताए। हालांकि इससे पहले ही ब्रिटिश ने भारत के एक दरवाजे पर मुगलों के भविष्य का अंत कर दिया था। कौन-सा है वह दरवाजा जानने के लिए यह लेख पढ़ें। एक हज़ार आठ सौ 57 की क्रांति से जुड़ी है घटना यह बात तब की है जब एक हज़ार आठ सौ 57 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। इस दौरान मेरठ से विद्रोहियों की टुकड़ी दिल्ली पहुंच गई थी। उस समय दिल्ली की गद्दी पर मुगल शासक बहादुर शाह जफर-2 थे। ऐसे में क्रांतिकारियों ने मुगल शासक को अपना सम्राट माना और क्रांति का नेतृत्व करने का आग्रह किया। मिर्जा मुगल को दी गई जिम्मेदारी बहादुर शाह जफर-2 ने अपने बड़े बेटे मिर्जा मुगल को विद्रोह का नेतृत्व करने का जिम्मेदारी दी और उन्हें कमांडर इन चीफ बनाया गया। इस दौरान उन्होंने कई अग्रेंजों को मारा। हालांकि दिल्ली में हो रही लूटपाट से मुगल सम्राट नाराज थे। ऐसे में उन्होंने बाद में इसकी कमान बरेली से दिल्ली पहुंचे बख्त खान के हाथ में दे दी।जब विलियम हडसन ने भिजवाई चिट्ठी ब्रिटिश 20 सितंबर एक हज़ार आठ सौ 57 तक दिल्ली में कब्जा कर चुके थे। ऐसे में वह लाल किला पहुंचे लेकिन यहां मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-2 अपने परिवार के साथ निकलकर हुमायूं के मकबरे में पहुंच गए थे। उस समय ब्रिटिश कमांडर विलियम हडसन को इस बात की सूचना खुफिया सूत्रों से मिली जिसके बाद मुगल सम्राट को आत्मसमर्पण के लिए चिट्ठी भिजवाई गई। हालांकि मुगल सम्राट ने इससे इंकार कर दिया। 22 सितंबर एक हज़ार आठ सौ 57 को हुआ अंत ब्रिटिश कमांडर हडसन 22 सितंबर को 100 भारतीय सैनिकों के साथ हुमायूं के मकबरे पहुंचे और उन्होंने मुगल शासक बहादुर शाह जफर को आत्मसमर्पण करने पर जान से न मारने का आश्वासन दिया। इसके बाद उनके जफर के बेटे मिर्जा मुगल मिर्जा खिज्र सुल्तान व पोता मिर्जा अबू बक्र भी दिल्ली के लिए चले। तीनों राजकुमारों की टुकड़ी के साथ हडसन चल रहे थे। लेकिन जैसे ही काफिला दिल्ली के पास पहुंचा तो हडसन ने तीनों को कपड़े उतारने के लिए कहा।ब्रिटिश ने राजकुमारों से कीमती आभूषण व कपड़े ले लिए और हडसन ने अपनी रिवॉल्वर से तीनों को मौके पर ही गोली मार दी। इसके बाद तीनों के शवों को बैलगाड़ी में डालकर वही छोड़ दिया जिससे दिल्ली शहर में लोगों में दहशत हो जाए कि दिल्ली में अब ब्रिटिश राज हो गया। इस जगह को आज खूनी दरवाजा भी कहते हैं जो कि फिरोजशाह कोटला किले के ठीक सामने है। यह दिल्ली गेट के नजदीक है। वहीं बहादुर शाह जफर को रंगून भेज दिया गया जहां उन्होंने अकेले रहते हुए 7 नवंबर एक हज़ार आठ सौ बासठ को दुनिया को अलविदा कह दिया। “ख़ूनी दरवाज़े पर तीन शहज़ादों का ख़ून बहाकर अंग्रेज़ों ने मुग़ल सल्तनत का हमेशा-हमेशा के लिए अंत कर दिया। बहादुर शाह ज़फ़र को गद्दी से उतारकर रंगून भेज दिया गया और हिंदुस्तान में शुरू हो गया अंग्रेज़ी राज। लेकिन सवाल आज भी वही है क्या बहादुर शाह ज़फ़र ने आख़िरी दम तक मुल्क के लिए लड़ाई लड़ी या फिर वो कमज़ोर बादशाह साबित हुए आपकी नज़र में बहादुर शाह ज़फ़र एक सच्चे देशभक्त थे या गद्दार अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखिए

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