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क्या चाहते हैं खम्मम में जुटे विपक्षी दल

-राज कुमार सिंह-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब पूर्ण होने को है। ऐसे में पांच विपक्षी दलों के नेताओं के तेलंगाना में एकजुट होने से विपक्षी एकता पर जवाब मिलने से ज्यादा सवाल उठ खड़े हुए हैं। बेशक यह अप्रत्याशित नहीं था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव लंबे समय से क्षेत्रीय दलों का संघीय मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हैं। अपने क्षेत्रीय दल तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारत राष्ट्र समिति का नाम देकर वह अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी स्पष्ट कर चुके हैं।

खम्मम का संदेश
18 जनवरी को तेलंगाना के खम्मम में हुई रैली में तीन राज्यों के मुख्यमंत्री (अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान और पिनाराई विजयन) सहित पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सीपीआई नेता डी. राजा भी शामिल हुए। तमाम वर्गों की समस्याओं पर चिंता जताते हुए रैली में बताया गया कि तेलंगाना की कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी नीतियां उनका सुनियोजित समाधान पेश करती हैं। आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती खम्मम में जुटे पांच विपक्षी नेताओं के मोदी और बीजेपी विरोध पर तो संदेह नहीं, पर उनकी क्षमता पर जरूर है।

ये जिन राज्यों के क्षत्रप हैं, वहां से देश की 543 सदस्यीय लोकसभा में 120 सांसद आते हैं। इन दलों के पास मात्र 19 सांसद हैं। इसके मुकाबले कांग्रेस के पास इस बुरे वक्त में भी, 53 सांसद हैं, जिसे अलग-थलग करने का संकेत खम्मम रैली से गया है।

बेशक इनमें से कोई भी नेता रैली में कांग्रेस के विरुद्ध नहीं बोला, पर जब-तब आते रहे उनके बयान और अब तक के व्यवहार से साफ है कि उनके निशाने पर कांग्रेस भी है, जिसके तेवर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आगे बढ़ने के साथ-साथ बदलते नजर आ रहे हैं।
भारत जोड़ो यात्रा से जनमानस में राहुल की छवि में बदलाव और हताश कांग्रेस में नए उत्साह के संचार से विरोधी भी इनकार नहीं कर रहे। इससे बीजेपी का चिंतित होना स्वाभाविक है, पर विपक्षी नेता भी कम आशंकित नहीं हैं।
बात तेलंगाना की करें तो केसीआर ने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस से ही शुरू किया था। पृथक तेलंगाना के लिए लंबे संघर्ष से वह इस राज्य के स्वाभाविक नेता बने।
लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए बिसात बिछा रहे केसीआर की पार्टी टीआरएस ने पिछले चुनाव में 120 सदस्यीय विधानसभा (एक सदस्य मनोनीत होता है) में 88 सीटें जीती थीं। दलबदल और उप चुनाव के जरिए बाद में यह आंकड़ा 100 पार कर गया।
प्रेक्षकों का मानना है कि पिछला प्रदर्शन दोहराना तो कठिन है, पर सरकार बनाने में कोई मुश्किल नहीं होगी, क्योंकि हाशिए पर पड़ी कांग्रेस और बीजेपी ज्यादा चुनौती नहीं पेश कर पाएंगी।
फिर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से लगभग 200 किमी दूर जिस खम्मम को विपक्षी रैली के लिए चुना गया, उसकी अपनी भी राजनीति है। खम्मम कभी वामपंथी गढ़ रहा, बाद में कांग्रेस को वहां अच्छी चुनावी सफलता मिली।
पिछले चुनाव में टीआरएस वहां की 10 विधानसभा सीटों में से मात्र एक जीत पाई थी। यह अलग बात है कि बाद में कांगेस के 6 और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के 2 विधायक टीआरएस में शामिल हो गए।
खम्मम रैली से केसीआर ने आंध्र प्रदेश की राजनीति में आने के अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं। महज 17 लोकसभा सीटों वाले तेलंगाना के बल पर केसीआर राष्ट्रीय राजनीति में लंबी छलांग नहीं लगा सकते। इनमें से भी टीआरएस के पास सिर्फ 9 हैं।
बीआरएस के जरिए राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं पाल लेना आसान है, पर उन्हें पूरा करने के लिए पैरों तले जमीन चाहिए, जो तेलंगाना के बाहर आंध्र में अपेक्षाकृत आसानी से मिल सकती है। ऐसे में कांग्रेस की मजबूती उन्हें कैसे गवारा हो सकती है?

उत्तर पर पकड़
उत्तर प्रदेश लोकसभा में 80 सांसद भेजता है। अखिलेश एक बार और मुलायम सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, पर बीजेपी ने अब वहां जैसी पकड़ बना ली है, उसमें एसपी-बीएसपी जैसे दलों की सत्ता वापसी बहुत मुश्किल है। एसपी-बीएसपी, दोनों ने ही जनाधार कांग्रेस से छीना है। इसलिए उन्हें शायद बीजेपी से भी ज्यादा कांग्रेस की मजबूती अपने लिए खतरा लगती है। यही वजह है कि अखिलेश इतनी दूर खम्मम तो चले गए, पर उत्तर प्रदेश में ही भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया। लोकसभा में एसपी के मात्र 5 सांसद हैं। कांग्रेस के परंपरागत जनाधार पर अपनी राजनीतिक इमारत खड़ी करने वाले दलों में नया नाम आप का है। आप ने कांग्रेस से पहले दिल्ली की सत्ता छीनी और फिर पंजाब की। गुजरात में कांग्रेस की ऐतिहासिक दुर्गति में भी आप का योगदान रहा। जाहिर है, वह कांग्रेस का विपक्षी एकता की धुरी बनना बर्दाश्त नहीं कर सकती। पर अजीब विडंबना है कि दो राज्यों में सरकार है, पर लोकसभा में उसकी उपस्थिति शून्य है।

महत्वाकांक्षाओं की मोर्चाबंदी
राष्ट्रीय ही नहीं, क्षेत्रीय राजनीति में भी वामपंथ के लगातार सिकुड़ते जाने के लिए उसकी दिशाहीनता ज्यादा जिम्मेदार रही है। पश्चिम बंगाल में पिछला विधानसभा चुनाव वम दल ममता बनर्जी के विरुद्ध कांग्रेस के साथ मिल कर लड़े। अगले महीने होने वाले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भी उसी प्रयोग की संभावना है, पर केरल में कांग्रेस नीत यूडीएफ से मुकाबले के चलते केसीआर की कांग्रेस विरोधी मोर्चाबंदी का भी मोह नहीं छोड़ पाते। मराठा दिग्गज शरद पवार राहुल की प्रशंसा कर चुके हैं तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साफ कह चुके हैं कि कांग्रेस के बगैर बीजेपी विरोधी मोर्चा निरर्थक है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंध्र के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी इस मुद्दे पर अकसर मौन ही रहते है। उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने पत्ते खोलने की जल्दी में नहीं लगतीं। ऐसे में खम्मम रैली विपक्षी एकता की कवायद कम, महत्वाकांक्षाओं की मोर्चाबंदी ज्यादा नजर आती है।

 

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