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एल्गार परिषद मामला: न्यायालय ने सुरेंद्र गडलिंग की जमानत अर्जी पर सुनवाई 17 सितंबर तक स्थगित की

नई दिल्ली, 03 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी वकील सुरेंद्र गडलिंग की जमानत याचिका बुधवार को 17 सितंबर तक के लिए टाल दी।

न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू द्वारा समय मांगे जाने के बाद मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।

गडलिंग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने राजू के अनुरोध का विरोध करते हुए याचिका के 2023 से लंबित होने का हवाला दिया।

ग्रोवर ने कहा कि गडलिंग छह साल से ज़्यादा समय से जेल में हैं और इस मामले में उन पर आरोप भी तय नहीं हुए हैं।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने 26 अगस्त को यह सूचित किए जाने के बाद मामले की सुनवाई आज के लिए स्थगित कर दी थी कि न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश ने ज़मानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

इससे पहले, न्यायमूर्ति सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटीश्वर सिंह की पीठ इस याचिका पर सुनवाई करने वाली थी।

गत आठ अगस्त को, ग्रोवर ने अपने मुवक्किल गडलिंग की छह साल से ज़्यादा की कैद का हवाला देते हुए, प्रधान न्यायाधीश गवई के समक्ष मामले की शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया।

ग्रोवर ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय में जमानत याचिका 11 बार स्थगित हो चुकी है।’’

इससे पहले, 27 मार्च को, शीर्ष अदालत ने इस मामले में गडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की ज़मानत पर सुनवाई टाल दी थी।

उसने कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका को भी स्थगित कर दिया था।

राउत को बंबई उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी, लेकिन एनआईए की मांग के बाद इस आदेश पर रोक लगा दी गई थी।

गडलिंग पर माओवादियों को सहायता प्रदान करने और मामले में फरार आरोपियों सहित कई सह-आरोपियों के साथ कथित तौर पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

उन पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था और अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि गडलिंग ने भूमिगत माओवादी विद्रोहियों को सरकारी गतिविधियों और कुछ क्षेत्रों के नक्शों के बारे में गुप्त जानकारी प्रदान की थी।

उन्होंने कथित तौर पर माओवादियों से सुरजागढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने को कहा था और कई स्थानीय लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया था।

गडलिंग 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में भी शामिल हैं।

पुलिस ने दावा किया कि इन भाषणों के कारण अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।

 

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