सड़क और संसद दोनों सूनी रखने की चाल
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बुधवार को सदन में नारेबाजी कर रहे और पोस्टर दिखा रहे विपक्षी सांसदों को फटकार लगाते हुए कहा कि सड़क जैसा व्यवहार आप सदन में नहीं कर सकते। माननीय हो, माननीय बने रहो। आपको यहां जनता की आवाज उठाने, उसकी पीड़ा, चिंताओं के बारे में विमर्श करने के लिए भेजा गया है, आप ये सब मत करिए। इसके बाद ओम बिड़ला ने सदन को दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दिया। जिस अंदाज में ओम बिड़ला ने विपक्ष को डांटा-फटकारा, यह अनोखा नहीं है। वे पहले भी सदन के भीतर मर्यादित आचरण बनाए रखने की नसीहत दे चुके हैं। ये और बात है कि उनकी नसीहत केवल विपक्ष के लिए रहती है। सत्ता पक्ष के लोगों पर वे ऐसी सख्ती नहीं दिखाते। अन्यथा किसी सांसद को धर्म के नाम पर अपशब्द कहना या संसद में खड़े होकर चुनावी भाषण देना या किसी पूर्व प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना, ये सारे कारनामे जो भाजपा ने किए हैं, वे नहीं हो पाते।
बहरहाल, विपक्ष भी अब जानता है कि सरकार सदन को चलने नहीं देना चाहती, क्योंकि उसे फिर कई ऐसे सवालों का सामना करना पड़ेगा, जिनके जवाब उसके पास नहीं है। सरकार केवल एक ही सूरत में सदन को चलाएगी, जब विपक्ष चुपचाप बैठ कर उसका एकालाप सुने। जो हाल इस वक्त के पत्रकारों का हो गया है, जिन्हें इस बात से भी आपत्ति नहीं होती कि प्रधानमंत्री मीडिया से संवाद करेंगे ऐसा क्यों कहा जाता है, जबकि श्री मोदी अपने से काफी दूर पत्रकारों को खड़ा कर अपना बयान सुनाकर चले जाते हैं। पत्रकार सामने रहें और देश का नेता बोले तो लोकतंत्र के बने रहने का भरम बना रहता है। वर्ना जो कुछ श्री मोदी हर सत्र की शुरुआत में आकर कहते हैं, वह प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान के जरिए भी मीडिया संस्थानों तक पहुंचाया जा सकता है।
लोकतंत्र का भरम बनाए रखने में लोकसभा अध्यक्ष भी पूरा सहयोग कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने विपक्ष को याद दिलाया है कि जनता ने आपको किसलिए संसद में चुन कर भेजा है। हालांकि जो नियम विपक्ष पर लागू होता है, वह सत्ता पक्ष पर भी लागू होता है। जनता के सवालों को सदन में अगर सरकार उठाने दे तो फिर यह गतिरोध बनेगा ही नहीं। विपक्ष के लोगों को अपने स्थान से उठकर सामने आने और नारेबाजी करने पर मजबूर ही इसलिए होना पड़ता है कि उनकी बातों को सरकार सुन नहीं रही है। सरकार ने यह तय कर लिया कि प्रधानमंत्री जब विदेश से लौटेंगे तब ऑपरेशन सिंदूर या पहलगाम मुद्दे पर जवाब देंगे। लेकिन प्रधानमंत्री तो संसद शुरु होने के तीसरे दिन विदेश रवाना हुए हैं, जब जीएसटी लागू करने के लिए या वक्फ संशोधन अधिनियम को पारित करने के लिए आधी रात तक संसद चलाई जा सकती है, तो फिर देश की सुरक्षा और सम्मान से जुड़े इतने गंभीर मुद्दे पर बात करने के लिए इंतजार क्यों करवाया जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है।
ऑपरेशन सिंदूर पर बुधवार को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने फिर से प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोला है। पत्रकारों से चर्चा में राहुल गांधी ने कहा कि एक तरफ श्री मोदी कहते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर अभी चल रहा है, दूसरी तरफ वे विजय की बात भी करते हैं, ऐसा कैसे हो सकता है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से युद्धविराम के दावे भी रुक नहीं रहे हैं। हाल ही में ट्रंप ने 25वीं बार यही दावा किया है कि व्यापार की धमकी देकर उन्होंने भारत और पाक के बीच युद्ध रुकवाया है। तीन महीनों में 25 बार एक ही बात का दावा करने की इस रफ्तार को देखें तो जल्द ही ट्रंप इस दावे का शतक बना लेंगे। क्या तब जाकर प्रधानमंत्री इस पर अपना पक्ष सामने रखेंगे और कहेंगे कि मैं कृष्ण की तरह शिशुपाल की सौ गलतियां पूरा होने का इंतजार कर रहा था।
बहरहाल, नरेन्द्र मोदी व्यक्तिगत तौर पर यह हिम्मत न दिखा पाएं कि वे अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रपति के बयान पर कोई पलटवार करें, लेकिन भारत का प्रधानमंत्री होने के नाते तो उन्हें इस बेहूदे दावे का जवाब देने में कोई देर नहीं करनी चाहिए। इस देश की दुनिया में अलग साख है और प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को इसकी गरिमा का अहसास होना चाहिए। यह समझ से परे है कि श्री मोदी सत्ता के 11वें साल में भी क्यों इस गरिमा से वंचित हैं। वे अमेरिका की तरफ से किए जा रहे इस अपमान पर एक बार सख्ती से जवाब देकर तो देखें, उन्हें खुद समझ आएगा कि भारत का प्रधानमंत्री होने के मायने क्या हैं।
लेकिन नरेन्द्र मोदी ने न विदेश में भारत की साख को बनाए रखा है, न वे देश में लोकतंत्र पर हो रहे प्रहार पर फिक्र कर रहे हैं। इसलिए विपक्ष को ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम के साथ-साथ बिहार में हो रहे मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ भी संसद में आवाज उठानी पड़ रही है। बुधवार को विपक्ष के सांसदों ने फिर से इसे लेकर प्रदर्शन किया और कई ने तो बाकायदा काले कपड़े भी पहने। विपक्ष चाहता है कि सरकार इस मुद्दे पर भी चर्चा करे क्योंकि यह सीधे-सीधे मताधिकार पर चोट करने की प्रक्रिया है। जब वोट देने का अधिकार ही लोगों से छिन जाएगा, तब लोकतंत्र कहां तक और कब तक बचा रह पाएगा, यह एक गंभीर सवाल है। क्रोनोलॉजी की भाषा में कहें तो लोग वोट नहीं दे पाएंगे, अपनी पसंद से जनप्रतिनिधि नहीं चुन पाएंगे, जिसकी सत्ता होगी, उसके लोग सदन में पहुंचेंगे और फिर उन्हीं लोगों की सुविधा के लिए कानून बनाएंगे, जिनसे सरकार को फायदा होता है और सरकार जिनको फायदा पहुंचाती है। इसमें लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास की बुनियादी सुविधाएं, संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकार सब खत्म हो जाएंगे। यानी मामला केवल एक राज्य में हो रही एसआईआर का नहीं है, इसके पीछे बड़ा खेल है जिसे उजागर करने में विपक्ष लगा है। लेकिन ओम बिड़ला समझा रहे हैं कि विपक्ष सड़क की तरह आचरण न करे। यानी भाजपा चाहती है कि उसके राज में सड़कें भी सूनी रहे और संसद भी।