कांवड़ यात्रा में ‘पहलगाम’
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
कांवड़-यात्रा 11 जुलाई से आरंभ हो रही है। इन सालों में जो सांप्रदायिक तनाव दिखा है, नफरत महसूस की है, कमोबेश 10 साल पहले ऐसा माहौल नहीं था। हालांकि हिंदू-मुसलमान भारतीय राजनीति का शाश्वत भाव रहा है, लेकिन कांवड़-यात्रा के दौरान मुसलमान भी शिव-भक्तों की खूब सेवा करते दिखाई दिए हैं। शिविर लगाए जाते रहे हैं, भोजन परोसा जाता है, मीठा पानी पिलाया जाता है, शिव-भक्तों के जख्मों की प्राथमिक चिकित्सा भी की जाती रही है। फिर ऐसा क्या हो गया कि हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं की तुलना पहलगाम के हत्यारे आतंकियों से करने की नौबत आ गई? उप्र और उत्तराखंड सरकारों ने आदेश जारी किए हैं कि कांवड़-यात्रा के मार्ग के ढाबे, होटल, रेस्तरां, दुकानदार, खोमचेवाले स्पष्ट नामपट्टिका लगाएंगे। लाइसेंस नंबर भी दिखाएं और पहचान-पत्र रखें। यानी स्पष्ट होना चाहिए कि ढाबे, होटल का मालिक हिंदू है अथवा मुस्लिम है! यह व्यवस्था बीते साल भी लागू की गई थी, ताकि कांवडिय़ों की आस्था और श्रद्धा खंडित न हो। हरिद्वार और ऋषिकेश तक की अक्सर नंगे पांव की यह यात्रा हिंदुओं का बड़ा धार्मिक आयोजन है। जुलाई, 2024 में सर्वोच्च अदालत ने अंतरिम आदेश के साथ सरकार के निर्देशों पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत का फैसला था कि नामपट्टिका लगाना जरूरी नहीं है। अलबत्ता यह साफ-साफ लिखा जाना चाहिए कि ढाबे में शाकाहार या मांसाहार क्या उपलब्ध है? कांवड़-यात्री अपने पर्व के अनुसार, शाकाहार वाला ढाबा चुन सकेगा। लेकिन अदालत के फैसले को ठेंगा दिखाते हुए उप्र और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने इस साल फिर आदेश जारी कर दिए। उसकी आड़ में हिंदू संगठनों के कुछ स्वयंभू हुड़दंगी राष्ट्रीय राजमार्ग-58 पर स्थित एक ढाबे की जांच के लिए आ धमके। दलीलें दी गईं कि वह ढाबा मुस्लिम का था, लेकिन बोर्ड पर लिखा था-‘पंडित का शुद्ध वैष्णो ढाबा। ’ यानी पहचान छिपाने का अपराध किया गया था। आरोप हैं कि हुड़दंगियों ने ढाबे के कर्मचारियों की पैंट उतरवा कर यह जांचने की कोशिश की कि वे हिंदू हैं या मुस्लिम हैं! विवाद यहीं से भडक़ा। समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एसटी हसन ने कहा कि इन और पहलगाम के आतंकियों में क्या फर्क है? दोनों तरह के आतंकियों ने धर्म की आड़ में कुकर्म किया।
फर्क सिर्फ इतना है कि पहलगाम के आतंकियों ने धर्म पूछ कर गोली मार दी और हिंदू पर्यटकों की हत्याएं कीं। कांवडिय़ों के पैरोकारों ने पैंट ही उतरवाई थी। उस ढाबे पर यह घटना हुई अथवा उसे ‘सांप्रदायिक मोड़’ दे दिया गया, यह जांच पुलिस कर रही है। प्राथमिकी में 6 आरोपितों के नाम हैं। सभी हिंदूवादी संगठनों के बताए जा रहे हैं। इस घटना में एक स्वयंभू बाबा भी कूद पड़े हैं, जो उसी इलाके में योग-साधना सिखाते हैं। उन्होंने धमकी दी है कि यदि कोई केस बनाया गया, तो देश भर में आंदोलन छेड़ दिया जाएगा। बाबा ने पैंट उतारने की घटना को फर्जी करार दिया है। यहां बेहद गंभीर सवाल यह है कि क्या राज्य सरकारों की कानून-व्यवस्था बेलगाम और हिंदू दबंगइयों के हाथ है? उप्र देश का सबसे बड़ा राज्य है और राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी झटका लगा था। उसके बाद भाजपा नेता ऑफ दि रिकॉर्ड कहते रहे हैं कि हम ऐसा हिंदू-मुसलमान करेंगे कि सब देखते रह जाएंगे। क्या वही राजनीति सामने आ रही है? बहरहाल पुलिस विशेषज्ञों का मानना है कि इलाके के ढाबों, होटलों और खोमचेवालों के नाम, पिता का नाम, मोबाइल, पता आदि का संपूर्ण डाटा ‘बीट कांस्टेबल’ के पास होता है। तो फिर जांच के लिए छापामारी करने को हिंदू दबंगइयों को किसने निर्देश दिए थे? हरी झंडी दिखाई थी? यह हरकत आपराधिक और दंडनीय है, लेकिन माना जाता है कि ये कथित हिंदू हुड़दंगी एक निश्चित राजनीतिक संरक्षण में पलते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे असामाजिक तत्त्वों को ‘आस्तीन के सांप’ करार दिया था। उप्र और उत्तराखंड में कांवड़-यात्राएं आयोजित की जाएंगी, जबकि कश्मीर में ‘अमरनाथ यात्रा’ शुरू हो चुकी है। उस यात्रा के दौरान प्रबंध करने वाले सभी मुसलमान होते हैं। वहां हिंदू-मुसलमान के बीच धार्मिक समभाव, सौहार्द क्यों है?