राजनैतिकशिक्षा

वैश्विक शांति को प्रभावित करते युद्ध

-अनुज आचार्य-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

विगत 24 फरवरी 2022 से रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध और इसी साल 7 मई को भारत-पाकिस्तान के बीच सीमित सैन्य संघर्ष के बाद अब इजरायल और ईरान के बीच युद्ध के कारण पश्चिम एशिया में परिस्थितियां गंभीर और जटिल बनी हुई हैं। इस समय दोनों देशों के बीच तनाव चरम सीमा पर है और दोनों देशों की सेनाएं प्रत्यक्ष सैन्य आक्रमणों में उलझी हुई हैं। 12 और 13 जून 2025 को अलसुबह इजरायल ने ईरान के परमाणु सुविधाओं और सैन्य ठिकानों नतांज स्थित एटॉमिक फैसिलिटी सेंटर, इस्फहान, तेहरान और तबरीज पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू किए, जिसे ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ नाम दिया गया था। इन हमलों का उद्देश्य ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को नष्ट करना और उसकी परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को रोकना था। इजरायल ने हमलों से पहले अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ मिलकर आईडीएफ ने ईरान में ड्रोन और अन्य हथियारों को पहुंचाया। इसके अलावा हथियार प्रणालियों से लदे वाहनों को भी ईरान लाया गया। इसने ईरान की हवाई सुरक्षा को नष्ट कर दिया तथा इससे इजरायली विमानों को ईरान पर हवाई प्रभुत्व कायम करने में मदद मिली।

प्रत्युत्तर में 13 जून 2025 की शाम को ईरान ने भी इजरायल पर 150 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों और 100 से ज्यादा ड्रोनों के साथ जवाबी हमला किया। ये हमले इजरायल के प्रमुख शहरों जैसे येरुशलम, तेल अबीब और रिशोन लेजियन को निशाना बनाकर किए गए, जिससे नागरिक क्षेत्रों में संपत्ति के नुकसान और इजरायली नागरिकों के हताहत होने की खबरें हैं। भले ही दोनों देशों के बीच जमीनी सीमा रेखा नहीं है, तथापि दोनों देशों के बीच लंबे समय से तनाव बना हुआ है। खासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम के पूर्णता की ओर बढऩे से इजरायल की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई थीं। इस युद्ध से अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है, लेकिन अभी तक कोई ठोस मध्यस्थता या युद्धविराम की पेशकश सामने नहीं आई है। दूसरी तरफ अमरीकी सेना ईरान की ओर से इजरायल पर जवाबी कार्रवाई में दागी गई मिसाइलों को रोकने में मदद कर रही है। वर्तमान में इजरायल-फिलिस्तीन, ईरान-सऊदी और यूक्रेन-रूस युद्ध जैसे मुद्दे पहले से ही विश्व मंच पर तनाव बढ़ा रहे हैं। जहां तक वर्तमान ईरान-इजराइल युद्ध की बात है तो ईरान और इजराइल के बीच संभावित या वास्तविक युद्ध न केवल पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व), बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर सकता है। यह संघर्ष धार्मिक, राजनीतिक, भू-रणनीतिक और आर्थिक आयामों से जुड़ा हुआ है और इससे वैश्विक तेल और गैस आपूर्ति पर संकट मंडरा सकता है। दूसरे, ईरान दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादकों में है और होरमुज जलडमरूमध्य से वैश्विक तेल का 20 फीसदी गुजरता है। युद्ध की स्थिति में ईरान इस रास्ते को बंद कर सकता है जिससे वैश्विक तेल कीमतों में भारी उछाल आ सकता है। इससे अमरीका, यूरोप, भारत जैसे देशों में ईंधन महंगा होगा और महंगाई बढ़ेगी। इस लड़ाई के परमाणु युद्ध में तबदील होने का खतरा भी है क्योंकि इजराइल के पास घोषित परमाणु हथियार हैं, जबकि ईरान पर परमाणु हथियार बनाने के आरोप हैं। यदि संघर्ष परमाणु हथियारों तक पहुंचता है, तो यह मानव सभ्यता के लिए विनाशकारी हो सकता है। इन दिनों विश्व युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं, क्योंकि अमरीका इजराइल का प्रमुख सहयोगी है। चीन और रूस, ईरान के रणनीतिक साझेदार हैं।

यदि ये महाशक्तियां प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में शामिल होती हैं, तो यह टकराव तीसरे विश्व युद्ध का रूप ले सकता है। यह युद्ध शिया (ईरान) और यहूदी (इजराइल) के बीच है, परंतु इसका प्रभाव मुस्लिम देशों में सुन्नी-शिया संघर्ष को भडक़ा सकता है। युद्ध के कारण लाखों लोग शरणार्थी बन सकते हैं जो यूरोप, तुर्की और एशियाई देशों की ओर पलायन करेंगे। इससे स्थानीय संसाधनों पर दबाव और सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है। युद्ध की स्थिति में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित होगी और व्यापार व निवेश में गिरावट आएगी, जिसका विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था, जैसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों पर खासा असर पड़ेगा। ईरान-इजरायल के बीच इस लड़ाई के गंभीर होने की स्थिति में खाड़ी क्षेत्र में काम करने वाले 90 लाख से एक करोड़ भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं पैदा हो सकती हैं। इन भारतीयों ने पिछले साल ही करीब 45 अरब डॉलर की राशि भारत भेजी है जो देश की इकोनमी में अहम भूमिका निभाती है। इन दिनों ईरान और इजराइल दोनों ही साइबर युद्ध में भी सक्रिय हैं। चूंकि बैंकिंग, संचार और ऊर्जा क्षेत्रों पर साइबर हमले हो सकते हैं जो वैश्विक स्तर पर प्रभावी होंगे।

पिछले कई दशकों से संयुक्त राष्ट्र संघ में कोई सुधार नहीं हुए हैं और यदि यह युद्ध बढ़ता है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाती है तो अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की साख पर भी गंभीर सवाल उठेंगे। ईरान-इजराइल युद्ध सिर्फ क्षेत्रीय संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक संकट में भी बदल सकता है। ऐसे में कूटनीति, संवाद और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। देखा जाए तो कोई भी युद्ध वैश्विक शांति के लिए एक गंभीर खतरा है, जिससे संघर्षरत देश तो प्रभावित होते ही हैं, बल्कि दुनिया भर में अस्थिरता और अनिश्चितता पैदा होती है। युद्धों के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है, आर्थिक संकट आते हैं और सामाजिक ताना-बाना बिखर जाता है। इसके अलावा युद्धों से विस्थापन, शरणार्थी संकट, पर्यावरण ह्रास और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। लिहाजा वैश्विक संस्थाओं और बड़े राष्ट्रों को मिल-बैठकर युद्ध जैसी विभीषिकाओं से बचने के उपाय ढूंढने होंगे, तभी मानवीय कल्याण एवं विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

 

 

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