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‘प्रोजेक्ट चीता’ की आलोचना को नए पत्र में वैज्ञानिक रूप से निराधार बताकर खारिज किया गया

नई दिल्ली, 10 जून (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। ‘प्रोजेक्ट चीता’ के संबंध में सोमवार को प्रकाशित एक नए पत्र में इस परियोजना की आलोचना को ”वैचारिक रूप से पक्षपाती, वैज्ञानिक रूप से निराधार और गलत सूचना पर आधारित” बताया गया है।

इस परियोजना का उद्देश्य देश में विलुप्त हो चुके चीतों को 70 साल से अधिक समय बाद भारत में फिर से लाना है।

‘फ्रंटियर्स इन कंजर्वेशन साइंस’ में प्रकाशित इस पत्र का शीर्षक है- ‘बयानबाजी से परे: भारत के ‘प्रोजेक्ट चीता’ पर मिथकों और गलत सूचनाओं का खंडन’। इस पत्र में पशु कल्याण, वैज्ञानिक वैधता और सामुदायिक प्रभाव संबंधी चिंताओं पर बात की गई है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव जी एस भारद्वाज सहित पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि ”रचनात्मक आलोचना आवश्यक है”, लेकिन ‘प्रोजेक्ट चीता’ के बारे में विमर्श ”आत्म-संदर्भित तर्कों, साहित्य के चुनिंदा इस्तेमाल और नकारात्मक परिणामों पर असंगत जोर” पर केंद्रित रहा है।

इसमें कहा गया है कि आलोचकों ने नैतिक चिंताओं और पशु चिकित्सा हस्तक्षेप समेत प्रमुख पहलुओं को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है जबकि परियोजना की समय के अनुसार ढलने वाली प्रबंधन रणनीतियों और मापी जा सकने वाली प्रगति को नजरअंदाज किया गया।

पत्र में कहा गया है कि कुनो (मध्य प्रदेश) में चीतों को न तो कृत्रिम ढांचों में रखा जाता है और न ही वे भोजन के लिए मानवीय हस्तक्षेप पर निर्भर हैं। इसके बजाय, उन्हें शुरुआत में बड़े प्राकृतिक बाड़ों (बोमा) में रखा गया। मांसाहारी जानवरों को किसी स्थान पर लाने के लिए शुरुआत में उन्हें बोमा में रखने का तरीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।

कुछ आलोचकों ने कुनो में चीतों के जन्म को ”कैद में प्रजनन” बताया है लेकिन पत्र ने इस दावे को दृढ़ता से खारिज कर दिया।

इस पत्र में कहा गया है कि ”नियंत्रित वातावरण में भी चीतों को प्रजनन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।”

इसमें बताया गया है कि पश्चिमी चिड़ियाघरों को चीतों के सफल प्रजनन के मामले में चार दशक से अधिक समय लग गया।

पत्र में कहा गया कि इसके विपरीत, ”सच्चाई यह है कि कुनो में स्थानांतरित चीतों ने 2.5 साल में करीब 25 शावकों को जन्म दिया है…यह दर्शाता है कि ये जानवर तनाव-मुक्त और लगभग प्राकृतिक वातावरण में हैं।”

इसमें कहा गया कि कि कुनो में पैदा हुए शावकों का पालन-पोषण बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के उनकी माताएं कर रही हैं।

चीतों की मृत्यु से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देते हुए एनटीसीए ने कहा कि मृत्यु दर किसी भी स्थानांतरण प्रयास का एक स्वाभाविक और अपेक्षित हिस्सा है।

पत्र में कहा गया है, ”कुनो में चीता मृत्यु दर अनुमानित 50 प्रतिशत की सीमा से काफी नीचे है।”

उन्होंने इस धारणा का भी खंडन किया कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ जल्दबाजी में या बिना किसी वैज्ञानिक आधार के शुरू किया गया था।

‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत 20 अफ्रीकी चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया गया है। सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लाया गया था। तब से, भारत में 26 चीता शावकों का जन्म हुआ है, जिनमें से 19 जीवित हैं। ग्यारह शावक जंगल में आजाद घूम रहे हैं जबकि बाकी कुनो के बाड़ों में हैं।

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