अपने यूपी ने ही बैसाखियाँ थामने को मजबूर किया….!
-ओमप्रकाश मेहता-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
आज से एक दशक पहले गुजरात के वरिष्ठत्तम नेता कितनी गहरी पीड़ा और राजनीतिक उम्मीदों के साथ अपना प्रदेश छोड़कर उत्तर प्रदेश गए थे और बाबा विश्वनाथ की नगरी को नमन कर देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर आसीन हुए थे, पिछले एक दशक में मोदी ने उत्तरप्रदेश को वह सब दिया, जो अब तक गुजरात भी हासिल नही कर पाया, मोदी ने पूरी उम्मीद के साथ उत्तरप्रदेश को अपना ‘राजनीतिक संरक्षक’ स्वीकार किया और वहीं के होकर रह जाने का संकल्प भी लिया, किंतु पिछले पचहत्तर साल से देश का ‘राजनीतिक राज्य’ का दर्जा प्राप्त उत्तरप्रदेश ने एक दशक में ही मोदी को सबक सिखा दिया, लोकसभा की सर्वाधिक सीटों वाला यह राज्य देश की राजनीति में अब तक ‘सिरमौर’ इसीलिए बना रहा क्योंकि यह राज्य देश की सत्ता का मुख्य केन्द्र रहा और नेहरू से मोदी तक के प्रधानमंत्री इसी राज्य ने देश को हासिल कराये। किंतु अब 2024 में इस राज्य ने देश की राजनीति को यह सबक भी सिखा दिया कि यह प्रदेश ‘कुर्सी’ देता है तो फिर उसे छीनने या उसे हिलाने का भी माद्दा रखता है। इसका उदाहरण पिछले तीन लोकसभा चुनाव है, 2014 में यदि इस प्रदेश ने गुजरात से आयातीत राजनेता को चुनाव जिताकर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दी और उन्हें प्रदेश की 80 में से 71 सीटें कुर्सी के ‘दहेज’ में दे दी, वही पांच साल बाद 2019 में थोड़ी चेतावनीपूर्ण नाराजी व्यक्त कर सीटों की संख्या भी घटाकर 62 कर दी और जब मोदी जी ने इस चेतावनीपूर्ण शिक्षा पर ध्यान नही दिया तो इस बार 2024 में अपने प्रदेश की कुल सीटों में से आधी भी भाजपा को नही दी और साथ ही समाजवादी पार्टी को गले लगा कर यह चेतावनी भी दे दी कि अब भी नही संभले तो 2029 में समाजवादी पार्टी ही सिरमौर होगी, आज इसी का नतीजा है कि मोदी जी को तीसरी बार अपनी सत्ता कायम रखने के लिए बैसाखियों का सहारा लेना पड़ रहा है।
वैसे यदि हम धार्मिक दृष्टिकोण को सामने रखकर भी गंभीर चिंतन करें तो भगवान ‘राम-कृष्ण’ जैसे अवतारों ने भी अवतरण के लिए उत्तरप्रदेश का ही चयन किया, अर्थात् अतीत में आध्यात्म भूमि रही उत्तरप्रदेश की धरती आज देश की राजनीतिक पुण्य धरती बनी हुई है और इसीलिए राम-कृष्ण की लीलाओं वाली यह धरती आज राजनीतिक लीलाओं का केन्द्र बनी हुई है। ….और इसीलिए धार्मिकता इस धरती से रूठने लगी है, जिसका आजा उदाहरण अयोध्या से भाजपा की पराजय है, यदि अब भी राजनेताओं ने इस बारे में संज्ञान नही लिया तो इस धरती के धार्मिक अवतरणों का ‘श्राप’ राजनीति की नैय्या को सरयू व गंगा जैसी पवित्र नदियों में डुबो देगा।
….अब यदि यह कहा जाए या पूछा जाए कि मोदी जी को अपनी तीसरी सीढ़ी पर बैसाखियों का सहारा क्यों लेना पड़ रहा है? तो इसका एकमात्र उत्तर हमारे धार्मिक अवतरणों का श्राप है, जहां भगवान राम को अयोध्या का अधिपति बनाकर उन्हें भुला दिया गया, यही स्थिति द्वारका-मथुरा-वृन्दावन की है।
खैर…. यह तो आध्यात्मिक चिंतन हो गया, अब यदि राजनीतिक चिंतन किया जाए तो देश को सत्ता सौंपने वाले उत्तरप्रदेश में भाजपा की हार और समाजवादी पार्टी को ‘नवजीवन’ प्रदान करने के अनेक कारण है, जिनमें पिछले एक दशक में उत्तरप्रदेश की हर तरीके से उपेक्षा भी है। वहां के मोदी सहित शीर्ष राजनेताओं में ‘गरूर’ का आधिवय पार्टी के राजनीतिक भविष्य को गहरी अंधेरी खाई मेें ले जा रहा है और इसी कारण वहां भाजपा के विकल्प को विशेष महत्व दिया जाने लगा है, पर…. दुःख अभी भी हर किसी को इस बात का अवश्य है कि अपने जन्मस्थान से ही कांग्रेस अपनी जड़े छोड़ती जा रही है।