राजनैतिक

राजकोषीय घाटे की चुनौती

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

यकीनन कोविड-19 की चुनौतियों की वजह से नए वर्ष जनवरी 2021 की शुरुआत में भारत का राजस्व घाटा (रेवेन्यू डेफिसिट) और राजकोषीय घाटा (फिजिकल डेफिसिट) ऊंचाई पर बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है। अर्थविशेषज्ञों के मुताबिक कोविड-19 के बीच राजकोषीय घाटे की वृद्धि भारत के लिए आवश्यक थी। इसी के आधार पर चालू वित्तीय वर्ष में विकास दर में भारी गिरावट के परिदृश्य को बदला जा सका है। सात जनवरी को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 की पूरी अवधि के लिए आर्थिक विकास दर के जो अनुमान जारी किए हैं, उनके अनुसार चालू वित्त वर्ष में विकास दर की गिरावट 7.7 फीसदी पर सिमटने की बात कही गई है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी। गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष की राजस्व प्राप्ति और राजस्व व्यय के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं। जबकि वित्तीय वर्ष के राजस्व घाटे के साथ जब सरकार की उधार तथा अन्य देयताएं जोड़ देते हैं तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन अब यह बजट घाटा बढ़कर जीडीपी के 8 से 9 प्रतिशत के बीच रह सकता है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों के बीच देश की अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने एवं गतिशील करने हेतु बीते वर्ष 2020 में नवंबर 2020 तक विभिन्न पूंजीगत व्यय में तेज बढ़ोतरी के कारण चालू वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 8 महीनों यानी अप्रैल से नवंबर में केंद्र का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान के 135 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया है। जबकि यह पिछले साल की समान अवधि के दौरान बजट लक्ष्य का 114.8 प्रतिशत था।

उल्लेखनीय है कि राजकोषीय घाटा तब बढ़ता है, जब सरकार का खर्च राजस्व से ज्यादा हो जाता है। चालू वित्त वर्ष में जहां कोविड-19 के कारण आर्थिक गतिविधियां ठहर जाने के कारण सरकार के राजस्व में बड़ी कमी आई है, वहीं अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार ने खर्च अप्रत्याशित रूप से बढ़ाए हैं। यदि हम पिछले वर्ष 2020 की ओर देखें तो एक ओर देश में कोरोना वायरस के संकट से उद्योग कारोबार की बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर सरकार की आमदनी तेजी से घटी, वहीं दूसरी ओर आर्थिक एवं रोजगार चुनौतियों के बीच कोविड-19 के संकट से चरमराती देश की अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत वर्ष 2020 में सरकार ने एक के बाद एक 29.87 लाख करोड़ की राहतों के ऐलान किए, जिनके कारण सरकार के व्यय तेजी से बढ़ते गए। यदि हम बीते हुए वर्ष 2020 में दी गई इन विभिन्न राहतों की ओर देखें तो पाते हैं कि आत्मनिर्भर भारत अभियान-एक के तहत 1102650 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत 192800 करोड़ रुपए, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 82911 करोड़ रुपए, आत्मनिर्भर भारत अभियान-दो के तहत 73000 करोड़ रुपए, आरबीआई के उपायों से राहत के तहत 1271200 करोड़ रुपए तथा आत्मनिर्भर भारत अभियान-तीन के तहत 2.65 लाख करोड़ की राहत शामिल हैं।

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चालू वित्त वर्ष में एक ओर सरकार की आमदनी में बड़ी कमी आई, वहीं दूसरी ओर व्यय तेजी से बढ़े हैं। पिछले वर्ष 2020 के अप्रैल से नवंबर के बीच केंद्र सरकार के राजस्व और व्यय के बीच का अंतर करीब 10.7 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है, जो वर्ष 2019 की समान अवधि की तुलना में 33 प्रतिशत ज्यादा है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत के टैक्स चार्ट में बदलाव हो गया है। चालू वित्त वर्ष में कोरोना महामारी की वजह से कारपोरेट और व्यक्तिगत आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों में गिरावट दर्ज की गई है। जबकि आयात शुल्क तथा अन्य अप्रत्यक्ष करों में इजाफा हुआ है। वित्त विशेषज्ञों के मुताबिक कुल कर संग्रह में अप्रत्यक्ष करों का योगदान करीब 56 फीसदी तक बढ़ गया है जो कि पिछले एक दशक के दौरान सर्वाधिक है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में सार्वजनिक कर्ज और जीडीपी अनुपात में बढ़ोतरी चुनौतीपूर्ण है। चालू वित्त वर्ष 2020-21 में 30 सितंबर तक केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 56.2 प्रतिशत पर पहुंच गया, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के अंत तक यह 46.5 प्रतिशत था। राजस्व के झटके और जीडीपी में संकुचन की वजह से कर्ज बढ़ा है।

निःसंदेह वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटे की चिंता न करके सरकार के द्वारा देश को कोविड-19 की आर्थिक महात्रासदी से बाहर निकालने के लिए जो रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, वे लाभप्रद हैं। इससे अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। निश्चित रूप से बीते वर्ष 2020 में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करना असंभव कार्य था। दुनिया की सभी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि कोविड-19 के कारण भारत के राजकोषीय घाटे के बजट लक्ष्य से अधिक हो जाना स्वाभाविक था। ऐसे में सुस्ती के दौर से अर्थव्यवस्था को निकालने के लिए बढ़े हुए राजकोषीय घाटे को चिंताजनक नहीं माना जाना चाहिए। राजकोषीय घाटे के आकार में वृद्धि उपयुक्त ही कही जा सकती है। इससे एक ओर आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे नई मांग का निर्माण होगा और उद्योग-कारोबार की गतिशीलता बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर बढ़े हुए सार्वजनिक व्यय और सार्वजनिक निवेश से बुनियादी ढांचे को मजबूती मिलेगी। इस समय जब सरकार कोविड-19 की चुनौतियों के बीच राजकोषीय घाटे की चिंता न करते हुए विकास की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है, तब कई बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किए गए विभिन्न आर्थिक पैकेजों के क्रियान्वयन पर पूरा ध्यान देना होगा। सरकार के द्वारा व्यापक आर्थिक व वित्तीय सुधार कार्यक्रम को तेजी से लागू किए जाने पर ध्यान दिया जाना होगा।

रोजगार अवसरों को बढ़ाया जाना होगा। विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर बढ़ानी होगी। कर अनुपालन और भुगतान को और सरल किया जाना होगा। जीएसटी का क्रियान्वयन सरल बनाया जाना होगा। सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण को कारगर तरीके से नियंत्रित करना होगा। निर्यात और निजी निवेश बढ़ाने के कारगर प्रयास किए जाने होंगे। कारोबार के विभिन्न कदमों को तेज करने के लिए अभी भी दिखाई दे रहे भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना होगा।

ऐसे प्रयासों से ही चालू वित्त वर्ष में किए गए अप्रत्याशित राजस्व व्यय से दिखाई दे रहे भारी राजकोषीय घाटे के बीच विकास की डगर आगे बढ़ाई जा सकेगी। साथ ही आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत को तेजी से बढ़ते राजकोषीय घाटे की चिंताओं से बचाया जा सकेगा।

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