राजनैतिकशिक्षा

तंत्र ने थोपे बेहाल गण पर टैक्स

-डा. रवीन्द्र अरजरिया-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कोरोना की मार से बेहाल गण की जिन्दगी अभी चल भी नहीं पाई है कि तभी तंत्र ने अनेक टैक्सों सहित बैकों के पुराने वकाये का तकाजा करना शुरू कर दिया है। यह तकाजा केवल तकाजे तक ही सीमित होता तो भी गनीमत थी परन्तु इस तकाजे ने धमकी भरे लहजे अपनाने शुरू कर दिये हैं। कोरोना काल के पहले जिन मकानों के गृहकर की राशि तीन अंकों में हुआ करती थी वह राशि अब चार अंकों तक पहुंच गई है। ऐसे में अब शहरवासियों को स्वयं के मकान में रहने का टैक्स सैकडों रुपये माह की दर से भुगतान करना पडेगा। गृहकर नागरिकों से पेयजल सुविधा, सुव्यवस्थित सडक-रास्तों की सुविधा, साफ-सफाई की सुविधा, पार्को की सुविधा, स्ट्रीट लाइट की सुविधा सहित अनेक निर्धारित सुविधाओं के एवज में वसूले जाने का प्राविधान है। देश में शायद ही ऐसा कोई आदर्श शहर होगा जहां पानी का अकाल, उखडे रास्ते और सडकें, बिजली के खम्भों पर बंद पडी लाइटें, टूटे फूटे पार्क, हफ्तों न उठने वाला कूडे का ढेर आदि मौजूद न हो। नगरपालिकाओं के सरकारी वाहनों का निजी उपयोग न होता हो। अनेक स्थानों की नगरपालिकाओं में प्रशासक बैठा दिया गया है। प्रशासक ने राजस्व जुटाने के लिए ईमानदार करदाताओं पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। परिणामस्वरूप टैक्स वसूली अभियान के तहत अब निवासियों को धमकाना भी शुरू कर दिया गया है। ऐसा ही हाल बैंकों ने भी अख्तियार कर चार कदम आगे तक का रास्ता तय कर लिया है। बैंकों ने कोरोना काल से चैपट हो चुके धंधा करने वाले कर्जदारों को नोटिस पर नोटिस पहुंचाना ही नहीं शुरू किया बल्कि आर सी काटने की भी शुरूआत कर दी है। ऐसे में रोटी-रोटी को मोहताज धंधेवाले अब बैंक की कर्जा वसूली से जल्दी ही अपनी छत भी बैंकों की नीलामी के तहत खो देंगे। इस तरह की बेलगाम व्यवस्था के विरोध में उठने वाले स्वरों की कौन कहे जब किसानों की विश्वव्यापी चीख सुनकर भी तंत्र स्वयं के अहम को पाले बैठा है। ऐसे ही फरमान परिवहन विभाग ने भी जारी कर दिये हैं जिनके तहत सिक्यूरिटी नम्बर प्लेट, प्रदूषण प्रमाण पत्र, वाहनों के पंजीयन सहित अनेक नये नियमों के साथ भारी भरकम धनराशि का जुर्माना वसूलने की नीति सामने आई है। पिछले दिनों तो रायगढ में एक बाइस सवार पर लाख से अधिक का जुर्माना कर दिया गया था। इस तरह के अनेक उदाहरण सामने हैं। कोरोना के नाम पर तो सरकारी अमले ने जिस तरह से सुरक्षा उपकरणों और संसाधनों को उपलब्ध करने के आंकडे बनाये हैं वे अविश्वसनीय ही नहीं बल्कि अकल्पनीय भी हैं। सेन्टेनाइजर, मास्क, पीपीई किट सहित करोडों की खरीदी वाले बिलों को जारी करने वाले संस्थानों के विगत वित्तीय आंकडे स्वयं सच्चाई को बयान कर रहे हैं परन्तु उन्हें सुनने वाले भी तो लालफीताशाही और खद्दधारियों तक ही सीमित हैं। वास्तविकता तो यह है कि प्रशासनिक आंकडों पर स्वयं की पीठ थपथपाने वाली सरकारें, धरातली सच्चाई जानने के बाद भी मौन धारण करने के लिए मजबूर हैं। इस पूरे घटनाक्रम में कहीं जनप्रतिनिधियों के व्यक्तिगत हित मौजूद रहे तो कही किसी प्रशासनिक अधिकारी के अपने लोगों लाभ। समाज के अंतिम छोर पर खुले आसमान के नीचे बैठा भूखे पेट वाला व्यक्ति तो आज भी स्वयं को गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की सूची में शामिल करवाने के लिए दफ्तर-दफ्तर भटक रहा है। ऐसे राष्ट्र का तंत्र शायद ईमानदार और राष्ट्रभक्तिों की लाशों पर ही साइवर युग का सिरमौर बनने सपना सजा रहा होगा। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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