भारतीय इतिहास का अनूठा किसान आंदोलन
-निर्मल रानी-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
भारतीय किसानों द्वारा नए कृषि अध्यादेशों को केंद्र सरकार द्वारा वापस लिए जाने की मांग को लेकर चलाया जाने वाला आंदोलन कंपकपाती ठण्ड व शीत ऋतु की बारिश झेलता हुआ लगभग दो महीने पूरे कर चुका है। इस दौरान जहां लगभग 60 किसान इस आंदोलन में भाग लेते हुए दिल्ली की सीमा पर ‘शहीद’ हो गए वहीं दो आंदोलनकारियों द्वारा कृषक समाज की चिंता व बेचैनी देख आत्म हत्या भी कर ली गयी। आत्म हत्या करने वालों में करनाल के एक प्रमुख संत बाबा राम सिंह भी शामिल थे।आश्चर्य की बात है कि जैसे जैसे आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है और केंद्र सरकार द्वारा किसान संगठनों के साथ सात दौर की बात चीत की ‘फर्ज अदायगी’ के बावजूद सरकार किसानों की कृषि अध्यादेशों को वापस करने की मांग की अनदेखी करती जा रही है वैसे वैसे किसानों में जोश व उत्साह का और अधिक संचार होता जा रहा है। इसका कारण यही है कि यह किसान आंदोलन अब न सिर्फ राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन का रूप ले चुका है बल्कि भारत सहित पूरे विश्व का भारतीय समाज भी इस आंदोलन को नैतिक रूप से अपना समर्थन दे रहा है।
देश ने इससे पहले भी अनेक बड़े आंदोलन देखे हैं परन्तु आज के आधुनिक दौर में चलने वाला यह आंदोलन तथा इसे संचालित करने की आधुनिक शैली ऐसी है जिसे देखकर सत्ता के गलियारों में भी ‘रश्क’ किया जा रहा है। आंदोलनकारियों के खान-पान,उनके रहन सहन,उनकी दिनचर्या व सुख सुविधाओं को लेकर तरह तरह के सवाल खड़े किये गए हैं। कभी उनकी फंडिंग पर सवाल उठा तो कभी किसानों को खालिस्तानी बताया गया। और भी अनेक लांछन लगाकर आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की गयी। परन्तु अन्नदाता है कि सरकार,उसके तंत्र व बिकाऊ मीडिया के हर आरोपों का माकूल जवाब तो दे ही रहा है साथ ही आंदोलन में उसकी जरूरत की सभी सुविधाओं में भी दिन प्रतिदिन इजाफा होता जा रहा है। उदाहरण के तौर पर जब ‘गोदी मीडिया’ के द्वारा कुछ भाजपाई नेताओं व इनके आई टी सेल द्वारा इसे खालिस्तानी आंदोलन से जोड़ा गया तो आंदोलनकारियों ने जगह जगह एक पोस्टर लगाए जिसपर खेतों में कंधे पर फावड़ा लेकर एक किसान खड़ा है और मोटे अक्षरों में लिखा है -’पंजाब के किसान खालिस्तान नहीं मांग रहे बल्कि इस देश को अंबानीस्थान/अडानीस्थान बनने से बचा रहे हैं’। फंडिंग के सवाल पर किसानों का कहना है कि इसकी फंडिंग तो लगभग 570 वर्ष पूर्व गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रूपये देकर की गयी थी। यह उसी ‘सच्चे सौदे’ की बुनियाद है जो आज तक चल रही और रहती दुनिया तक यह बरकत कायम रहेगी।
दिल्ली के चारों ओर दर्जनों लंगर केंद्र संचालित हो रहे हैं। इनमें कई लंगर स्थलों पर मशीनों द्वारा रोटियाँ बनाई जा रही हैं। अनेक जगह ऐसे उपकरण लगे हैं जो भाप से खाना बनाते हैं। अनेकानेक देसी गीजर लगे हैं जो आंदोलनकारियों को सर्दी में गर्म पानी उपलब्ध करा रहे हैं। कई जगहों पर कपड़ा धोने के केंद्र बने हैं जहाँ अनेक वाशिंग मशीनें लगी हुई हैं। सैकड़ों जगहों पर दिन रात अलाव जलाकर शीत ऋतू से मोर्चा लेने की कोशिश की जा रही है। अनेक वॉलन्टीरस अपने हाथों में वाकी टाकी लेकर व्यवस्था को नियंत्रित करते देखे जा सकते हैं। आंदोलनकारियों द्वारा कहीं कहीं अपने अतिथि शुभचिंतकों व पत्रकारों को पगड़ियां भी भेंट की जाती हैं। जहाँ तक लंगर वितरण करने प्रश्न है तो यहां लंगर खिलाने वाले किसान व वालेंटियर्स किसी का परिचय पूछे बिना सबको लंगर खिलाते हैं।आंदोलन स्थल के आसपास के गरीब बस्तियों के लोग,राहगीर,ड्यूटी पुलिस,पत्रकार या कोई भी अन्य व्यक्ति चाय-नाश्ते से लेकर दोपहर या रात का भोजन प्रसाद ग्रहण कर सकता है। यहाँ यह बात भी काबिल-ए गौर है कि इन्हीं किसानों द्वारा भारत सरकार के साथ विज्ञान भवन में होने होने वाली बैठकों में हर बार पांच सितारा होटल का ‘सरकारी खाना’ खाने से इनकार किया जाता रहा है तथा किसानों द्वारा स्वयं अपना या गुरद्वारे से आए लंगर का प्रशाद विज्ञान भवन में जमीन पर बैठ कर लंगर के अंदाज में ही खाया गया है। आंदोलन स्थल पर आंदोलनकारियों के लिए बाकाएदा स्टोर खोले गए हैं जहाँ रोजमर्रा की जरुरत की हर चीज उपलब्ध कराई जा रही है। लंगर व अन्य सेवा कार्यों में लगे वालंटियर्स का कहना है कि जनसहयोग का यह आलम है कि उनके पास भण्डारण में हर समय खपत से अधिक खाद्य व अन्य जरूरी सामग्री मौजूद रहती है।
खेती किसानी से जुड़े अनेक निहंग सिख इस आंदोलन में अपने बेशकीमती घोड़ों व बाज को भी साथ लाए हैं। इन निहंगों द्वारा यहाँ अपने गतका कौशल का भी कभी कभी प्रदर्शन किया जाता है। आंदोलन स्थल पर कोई जिम अर्थात व्यायाम शाला की सेवा दे कर आंदोलनकारियों को संघर्ष हेतु चुस्त दुरुस्त रखने की कोशिश कर रहा है तो कई जगहों पर मेडिकल कैंप भी लगाए गए हैं जहां अस्वस्थ लोगों का उपचार किया जा रहा है। अनेक बड़े तंबुओं में साफ सुथरे गर्म बिस्तर उपलब्ध हैं तो जरूरतमंद आंदोलनकारियों को कंबल लोई जैकेट आदि भी दिया जाता है। किसानों में आपसी एकता बनाए रखने के लिए तथा किसी प्रकार के षड़यंत्र से बचने के लिए कई जगह निर्देशावली लगाई गयी हैं जिनमें मुख्यतः लिखा हुआ है कि -’यह सहज व शांति का आंदोलन है। शांति,एकता व प्यार से रहें। फितूर पैदा करने वाले लोगों से सावधान रहें। सियासत और सियासी लोगों की चाल से बचकर रहना है। लंगर प्रशाद अपने विश्वसनीय लंगर से ही खाने की कोशिश करें। आपसी मिलाप और एकता से रहें। परमेश्वर पर विश्वास रखें।’ आंदोलनकारी यह भी जानते हैं कि मुख्यधारा का कहा जाने वाला मीडिया तंत्र चूँकि उनकी समस्याओं को देश को बताने व समझाने के बजाए पूंजिपतियों व सरकारी पक्ष की बात कर रहा है साथ-साथ आंदोलनकारियों को लांछित भी कर रहा है। इसीलिए न केवल किसानों ने अपना आई टी सेल स्थापित किया है बल्कि अपने कई यू ट्यूब चैनल भी चलाए हैं। और तो और ‘ट्रॉली टाइम्स’ नामक एक समाचार पत्र भी आंदोलन स्थल से प्रकाशित हो रहा जो आंदोलन की रोजाना की गतिविधियों व ताजा स्थिति की जानकारी दे रहा है।
कहा जा सकता है कि अपने पवित्र व आदर्श गुरुओं से प्राप्त संस्कारों का ही नतीजा है कि सरकार व मीडिया की लाख कोशिशों के बावजूद तथा केंद्र सरकार द्वारा किसानों को ‘थकाओ और भगाओ’की नीति अपनाने के बावजूद किसान पूरी मजबूती व एकता के साथ न केवल डेट हुए हैं बल्कि उनके हौसले भी पूरी तरह बुलंद हैं। सरकार से पूरी मजबूती के साथ संघर्ष के लिए तैयार किसानों का यह आंदोलन निःसंदेह भारतीय इतिहास का एक अनूठा आंदोलन साबित होने जा रहा है।