राजनैतिकशिक्षा

राजनीति का गिरता स्तर

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कर्नाटक विधान परिषद के उप सभापति और जनता दल (सैक्युलर) के वरिष्ठ नेता एसएस धर्मगौड़ा ने रेलगाड़ी के नीचे आकर पिछले दिनों आत्महत्या कर ली। उनको विधान परिषद के अंदर ही सोनिया कांग्रेस के सदस्यों ने उप सभापति के आसन से घसीट कर उतारा और वहां से उन्हें धक्के देते हुए हाल के बीचोंबीच ले आए। वहां उनकी मार-कुटाई की। आम तौर पर कहा जाता है कि राजनीति में रहने वाले लोग मोटी चमड़ी के होते हैं। या फिर राजनीति में रहते-रहते चमड़ी खुद ही मोटी हो जाती है। लेकिन चैंसठ साल के धर्मगौड़ा शायद इतने साल बाद भी चमड़ी मोटी नहीं कर पाए। वे संवेदनशील प्राणी थे। इतना अपमान सह नहीं पाए। गुमसुम हो गए। इस घटना के कुछ दिन बाद उनकी लाश रेल की पटरी पर पाई गई। घर वालों का कहना है कि वे इस अपमान को झेल नहीं पाए। जनता दल (सैक्युलर) पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा की पार्टी है। देवगौड़ा भी विपक्षी एकता के लिए जितना संभव हो सके, उतना प्रयास करते रहते हैं। इन प्रयासों के भीतर देवगौड़ा धर्मगौड़ा को केवल श्रद्धांजलि दे सकते हैं। वह कायदे से उन्होंने दे दी है। धर्मगौड़ा के अनेक गुण भी उन्होंने गिना दिए हैं। हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला, इस प्रकार की बातें करने से विपक्षी एकता में दरारें पड़ने का खतरा पैदा हो जाता है। इसलिए देवगौड़ा की श्रद्धांजलि यहीं पर रुक गई है। विधानसभाओं में हाथापाई प्रायः होती रहती है।

पिछले कुछ दशकों से इन घटनाओं में तेजी भी आई है। लेकिन प्रतिक्रिया में आत्महत्या तक मामला शायद पहली बार पहुंचा है। यह ठीक है कि विधानसभा या संसद में कोई सदस्य क्या बोलता है, उसका संज्ञान सदन से बाहर कोई कानूनी कार्यवाही में नहीं लिया जा सकता, लेकिन सदस्य क्या करता है, उस पर तो कार्यवाही की जानी चाहिए। धर्मगौड़ा के रेल की पटरी पर पड़े शव को देखकर यही लगता है। मान लीजिए कोई एक सदस्य सदन के भीतर किसी दूसरे सदस्य की गला घोंट कर हत्या कर देता है, तो क्या उस पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए? धर्मगौड़ा के साथ सदन के अंदर जिन लोगों ने जो किया, उसकी पूरी फुटेज उपलब्ध है।

क्या वह फुटेज धर्मगौड़ा को रेल की पटरी की ओर जाने के लिए विवश कर रही है! कहा जाता है कि धर्मगौड़ा आत्महत्या से पूर्व कुछ लिख कर भी छोड़ गए हैं। उसकी भी जांच होनी चाहिए। ऐसी ही दूसरी घटना पंजाब में हुई है। वहां एक साथ पूरे प्रदेश में दूरसंचार के लिए स्थापित हजारों टावर तोड़ दिए गए। यह काम रात में नहीं किया गया, बल्कि दिन के उजाले में किया गया। इतना ही नहीं, टावरों को तोड़ते हुए अपने फोटो भी लोगों ने गौरव से दिखाए। पंजाब में सोनिया कांग्रेस की सरकार है। वहां कैप्टन अमरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री हैं। कहा जाता है कि यह तोड़फोड़ करने वाले उनकी पार्टी के ही कार्यकर्ता हैं, इसलिए पुलिस ने एक्शन लेने की बात तो दूर, बल्कि इस बात का ध्यान रखा कि उन्हें यह कार्य करने से कोई रोक न सके। जब सारा काम सही सलामत निपटा लिया गया तो पुलिस ने कुछ इक्का-दुक्का स्थानों पर एफ आईआर भी दर्ज कर ली। वैसे केवल रिकार्ड के लिए, कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार इस तोड़फोड़ को भी एक बड़े आंदोलन का हिस्सा बता रही है। गांव का आम किसान इस प्रकार का काम न करता है और न ही कर सकता है। जो गिरोह इस काम में लगा है, उसके पीछे कौन है और उसका उद्देश्य क्या है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। लेकिन शायद पंजाब सरकार को लगता हो कि भविष्य में इससे भी वोटों की बारिश हो सकती है।

यह राजनीति करने का नया स्तर है। तीसरी घटना भी पंजाब की ही है। हरजीत सिंह ग्रेवाल पंजाब भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। वे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव भी रह चुके हैं। पंजाब में कुछ संगठन कुछ कृषि बिलों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और उसके लिए उन्होंने पिछले एक महीने से आंदोलन चला रखा है। लोकतंत्र में यह अधिकार उनको प्राप्त है। लेकिन जरूरी नहीं कि सभी उनके इस आंदोलन का समर्थन ही करें या इसमें हिस्सेदारी निभाएं। भाजपा और कुछ अन्य संगठन इस आंदोलन के साथ नहीं हैं। कृषि अधिनियमों को लेकर उनका दृष्टिकोण अलग है। लेकिन प्रदेश हित में हरजीत सिंह ग्रेवाल प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरीके से सरकार और विरोध कर रहे संगठनों के बीच आपस में समझौता हो सके और मामला निपट जाए। जाहिर है इससे पंजाब में उन लोगों को कष्ट होता जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी तरीके से आंदोलनकारियों और सरकार में समझौता नहीं होने देना चाहते। कांग्रेस को यह आंदोलन चलते रहने से लाभ है। पिछले दिनों कुछ लोगों ने बरनाला में हरजीत सिंह ग्रेवाल का सामाजिक बहिष्कार करने का आह्वान ही नहीं किया, बल्कि यह भी कहा जो भी ग्रेवाल की जमीन किराए पर लेकर हल चलाएगा, उसको भी देख लिया जाएगा।

यह सीधा-सीधा आपराधिक श्रेणी का व्यवहार ही नहीं, बल्कि प्रदेश में अराजकता फैलाने का सुनियोजित षड्यंत्र है। लेकिन पंजाब की कांग्रेस सरकार इसे भी आंदोलन का ही हिस्सा बता रही है। कांग्रेस देश में अराजकता की जिस राजनीति को हवा दे रही है, वह निश्चय ही देश के लिए आत्मघाती है। सोनिया-राहुल इस दिशा में चलें तो समझ में आता है, लेकिन कैप्टन अमरेंद्र सिंह का व्यवहार निश्चय ही निराश करने वाला है। आज जरूरत इस बात की है कि राजनीति के गिरते स्तर पर चिंतन-मनन करके कुछ सकारात्मक किया जाए। इसके लिए सभी दलों को पार्टी हित छोड़कर एक हो जाना चाहिए। तभी हम इस गिरते स्तर को रोक पाएंगे।

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