राजनैतिकशिक्षा

किसानो को आत्मनिर्भर बनाती शिवराज सरकार

-निलय श्रीवास्तव-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

आत्मनिर्भरता को सही मायने में समझना हो तो मध्यप्रदेश आना ही होगा। शिवराजसिंह सरकार ने मध्यप्रदेश को आत्मनिर्भर प्रदेश बनाने की दिशा में जो कदम उठाये हैं, उससे यह बात स्वतः ही प्रमाणित हो जाती है। यकीन न हो तो मध्यप्रदेश के किसानों की खुशहाली को देख लें। किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुआयामी प्रयास किये जा रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान किसानों के दुख-दर्द को भलीभांति समझते हैं। वे स्वयं किसानों से रूबरू होकर उनके हालात जानते हैं। किसानों की चिंता उनके चेहरे से स्पष्ट झलकती है। शिवराज सिंह चैहान स्वयं किसान पुत्र हैं और किसानों की पीढ़ा वे भलीभांति जानते हैं। उन्हें ज्ञात है कि एक तो महंगाई की मार ऊपर से प्राकृतिक आपदा का कहर झेलता किसान किन परिस्थितियों में फसल तैयार करता है।
मध्यप्रदेश में किसानों की समृद्धशाली और उनकों विकास से सीधे जोड़ने के लिये सरकार नित् नये आयाम स्थापित कर रहीं है। इसी श्रृंखला में विगत् माह प्रदेश के राजगढ़ जिले में किसान कल्याण महाकुंभ का आयोजन हुआ था। आपदाओं की कठिनाइयों को दूर करके किसान के जीवन में समृद्धि और खुशहाली लाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री कृषक ब्याज माफी योजना 2023 आरम्भ हुयी जिसके अंतर्गत प्रदेश के 11 लाख किसानों को 2123 करोड़ रूपयों की ब्याज माफी की जायेगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा में 2900 करोड़ और मुख्यमंत्री किसान कल्याण में 1400 करोड़ रूपयों की सहायता भी सरकार देगी। सरकार द्वारा किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन, उन्नत कृषि तरीकों के प्रयोग के साथ-साथ आधुनिक उपकरणों के लिये भी सहयोग दिया गया। उन्नत बीज की उपलब्धता, उर्वरक खाद की उपलब्धता, सही मात्रा में खाद उर्वरक के प्रयोग के लिए मृदा परीक्षण,कीटनाशक का उचित प्रयोग,कृषि यंत्रों की खरीदी के लिये अनुदान तथा रियायती दरों में कृषि ऋण उपलब्ध कराया गया। साथ ही किसानों के लिये सिंचाई की आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिये उन्हें प्रेरित किया गया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने आत्मनिर्भरता को न केवल मध्यप्रदेश के भविष्य निर्माण की दृष्टि से देखा, बल्कि उसे व्यक्तिगत चेतना से आगे ले जाकर समूह चेतना में परिवर्तित करने का उपक्रम भी किया। आज हम देख रहे हैं कि मध्यप्रदेश के किसान शिवराज सरकार की मदद से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार का ध्यान खेती-किसानी को लाभ का धंधा बनाने पर केन्द्रित है और इस दिशा में गम्भीर प्रयास किये जा रहे हैं। खाद एवं बीज किसानों को समय पर उपलब्ध कराया जा रहा है। खेतों को समय पर पानी मिले,इसकी भी व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। खेती, किसान और गांवों के अधिकाधिक विकास की आवश्यकता को देखते हुए मध्यप्रदेश में सिंचाई क्षमताएं बढ़ाने के लिये विशेष कार्य हुए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र में पिछले वर्षो के दौरान कई गुना इजाफा हुआ है। राज्य में कृषि की हालत में काफी बदलाव हुए हैं और सरकार द्वारा किसानों के हित में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। साथ में खेतों की जरूरत के अनुरूप बिजली वितरण को भी सुदृढ़ किया जा रहा है। राज्य के विकास को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कारण खेती ही होता है। प्रसंगवश याद आता है कि कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ वर्ष पहले कहा था कि आने वाला समय उसी का है जिसके पास पर्याप्त अनाज का भंडारण होगा। कृषि बाहुल्य मध्यप्रदेश से काफी उम्मीदें हैं। आशा व्यक्त की जा सकती है कि देश के पिछड़े राज्यों की कृषि व्यवस्था को मजबूत और सुदृढ़ बनाने में यदि कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है तो वह मध्यप्रदेश है। मध्यप्रदेश में किसानों के कल्याण तथा उन्हें सम्बल देने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं उसका अनुसरण देश के दूसरे राज्य भी कर रहे हैं। लेकिन अभी भी कुछ ऐसी योजनाओं की जरूरत है जो किसान के लिये सहारा बने । प्रदेश का सौभाग्य है कि शिवराज सिंह चैहान और सरकार किसानों की चिंता करती है। मध्यप्रदेश में किसानों के लिए अनेक योजनायें क्रियान्वित हैं।
हमारे प्रदेश की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। वहाँ किसान जिन समस्याओं से जूझता है उसके परिणाम तब सामने आते हैं जब उसके द्वारा आत्महत्या करने की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। पिछले वर्षो में खेती के लिये कर्ज के अनेक कानून बने थे, इसके बावजूद किसान चारों ओर से परेशान है। प्राकृतिक आपदाओं ने उसकी कमर तोड़ दी, वहीं उसे कुर्की की चिंता भी सताती है। छोटे और सीमांत किसान की हालत बड़ी ही दयनीय है। कुर्की से बचने के लिये तथा सामाजिक सम्मान की रक्षा करने के लिये वह दुनिया से विदाई लेने में ही भलाई समझते हैं। वे जानते हैं कि विषम परिस्थितियों में उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं है। न बैंक, न सरकार और न ही समाज। अपनी लड़ाई खुद लड़ते हुए मेहनत पर निर्भर रहकर जितना मिले उतने में खुश रहने वाले किसान के लिये यदि सरकार अपने खजाने खोल दे तो अपनी मेहनत के बलबूते पर वह कृषि क्षेत्र में विश्व स्तर पर चल रही प्रतिस्पर्धा में भारत को उचित स्थान दिला सकता है। मध्यप्रदेश के किसानों को यदि सहारा देना है तो सबसे अहम हो गया है कि हमारे खाद्यान्न बाजार को नई जरूरतों के लिए तैयार होना चाहिए। प्रकृति की मार तथा वैश्वीकरण की चुनौतियों ने हमारी कमर तोड़ दी है। प्रति व्यक्ति कृषि भूमि उपलब्धता में लगातार कमी हो रही है। भूमि के लिहाज से मध्यप्रदेश समृद्ध है लेकिन हमें प्राकृतिक अभिशापों जैसे सूखा और बाढ़ के दीर्घकालीन व्यावहारिक उपायों पर विचार करना जरूरी है। हमारा खाद्यान्न बाजार भविष्य में सूखे और बाढ़ से प्रभावित न हो,इसके लिए कुछ पुख्ता उपाय करना होंगे। बड़ी नदियों को जोडने की योजना पर शीघ्रतापूर्वक काम शुरू करना चाहिए। विविध खेती प्रथा को भी बढ़ाना होगा।

 

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