राजनैतिकशिक्षा

चित्त हुए ‘चाणक्य’

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

महाराष्ट्र के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले शरद पवार को चित्त कर दिया गया। उनके सगे भतीजे एवं ‘राजनीतिक चंद्रगुप्त’ अजित पवार ने न केवल उनकी पार्टी एनसीपी का अपहरण कर लिया, बल्कि पाला बदल कर भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार का भाग्य है कि वह 5वीं बार उपमुख्यमंत्री बने हैं। इस प्रकरण में इतिहास ने खुद को दोहराया है। शरद पवार ने अपने ‘राजनीतिक गुरु’ वसंत दादा पाटिल को गच्चा देकर बगावत की थी और जनता पार्टी के समर्थन से, 38 साल की युवा आयु में ही, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन बैठे थे। 1999 में उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से बगावत की थी और ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ (एनसीपी) का गठन किया था। आज अजित पवार उसी पार्टी और चुनाव चिह्न पर दावा कर रहा है। उनके साथ पार्टी के कुल 54 विधायकों में से 40-44 के समर्थन का भी दावा किया जा रहा है।

फिलहाल अजित के साथ 8 एनसीपी विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ग्रहण की है, लेकिन शिवसेना के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे वाले गुट की तरह एनसीपी के बागी विधायकों के संवैधानिक पालाबदल का फैसला स्पीकर राहुल नार्वेकर को करना है। महाराष्ट्र की राजनीति और सत्ता में तब तक अस्थिरता और अनिश्चितता रहेगी। वैसे शरद पवार ने घोषणा की है कि वह अदालत नहीं जाएंगे। जिन्होंने बगावत की और डकैती डाली है, उनके खिलाफ समूचे महाराष्ट्र में घूम कर नया जनमत, नया नेतृत्व तैयार करेंगे। पवार में राजनीतिक माद्दा अब भी शेष है। इस प्रकरण का सबसे गंभीर आश्चर्य यह रहा है कि ‘चाणक्य’ को चित्त कर दिया गया। उन्हें तो राष्ट्रीय राजनीति में कई बार प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना गया है। वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे और केंद्रीय मंत्री भी बने। अब करीब 83 साल की वयोवृद्ध उम्र में वह कितना सक्रिय रह पाएंगे और कितना जनमत जुटा पाएंगे, यह बहुत बड़ा सवाल है। अजित ने एनसीपी का अचानक अपहरण इसलिए नहीं किया कि शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले और निकटस्थ सांसद प्रफुल्ल पटेल को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए थे।

दरअसल अजित पार्टी में हाशिए पर महसूस कर रहे थे, लिहाजा करीब तीन माह पहले राजधानी दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से उन्होंने मुलाकात की थी और भाजपा के साथ काम करने की मंशा जताई थी। बीते दिनों अमित शाह से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने भी मुलाकात की थी और शरद पवार का तख्तापलट करने की पटकथा को अंतिम रूप दिया था। हालांकि 23 नवम्बर, 2019 की सुबह भी अजित पवार ने मुख्यमंत्री फड़णवीस के साथ ‘डिप्टी’ की शपथ ली थी, लेकिन वह सिर्फ 78 घंटे का गठबंधन रहा और शरद पवार अपनी रणनीति में कामयाब रहे, लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रणनीति तय की गई है। विधानसभा चुनाव उसके बाद ही होने हैं। पालाबदल एनसीपी के तौर पर हुआ है, लिहाजा अजित के नेतृत्व वाली पार्टी एनडीए का घटक-दल माना गया है। पार्टी के नेताओं और पदाधिकारियों की बैठक 5 जुलाई को बुलाई गई है। उसी दिन शरद पवार ने भी बैठक बुलाई है। गौरतलब यह होगा कि शरद पवार कितने विधायकों को वापस पार्टी में ले पाते हैं या अजित भाजपा के साथ ही लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में उतरते हैं, इसी से भविष्य की राजनीति तय होगी। वैसे इस बार एनसीपी में पवार के बेहद करीबी रहे नेताओं ने पाला बदल कर मोदी-शाह की भाजपा के साथ लगने का फैसला किया है। चूंकि कई बड़े एनसीपी नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय और अन्य जांच एजेंसियों की कार्रवाई चल रही है, लिहाजा ऐसे नेता भाजपा की ही डोर थामे रखना चाहते हैं। भाजपा-एनडीए को चुनावी फायदा लग रहा है, लेकिन चुनाव ही सत्यापित करेंगे कि असल जनमत किसके पक्ष में है।

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