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करीब आ रहे भारत-ऑस्ट्रेलिया; चीन से तनाव बढ़ने के कारण नाटकीय रूप से बदली है स्थिति

-प्रिया चाको-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत-ऑस्ट्रेलिया रिश्ते के बारे में लंबे समय तक माना जाता रहा कि स्वाभाविक दोस्ती के बावजूद आपसी रिश्ते उपेक्षित हैं। दोस्ती को स्वाभाविक इसलिए माना गया कि इनका औपनिवेशिक इतिहास एक ही होने के कारण इनके लोकतांत्रिक मूल्य व सांस्कृतिक लक्ष्य कमोबेश एक ही हैं। इसके बावजूद साझा रिश्ते उपेक्षित रहे, क्योंकि शीतयुद्ध के दौरान भारत को उसकी विदेश नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन की ओर ले गई, जबकि ऑस्ट्रेलिया के अमेरिका से मजबूत रिश्ते रहे।

यह कहना सही नहीं कि ‘तीन सी-यानी करी, क्रिकेट और कॉमनवेल्थ’ भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों के आधार हैं। सच तो यह है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया पहले ब्रिटिश साम्राज्य का, फिर अमेरिकी जीवन मूल्यों का वाहक रहा। भारत न केवल पदानुक्रम से विकसित इन राजनीतिक और आर्थिक विश्व व्यवस्था का विरोधी व आलोचक रहा, बल्कि यह जवाहरलाल नेहरू द्वारा निर्देशित भारतीय संस्कृति के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रचार-प्रसार में भरोसा करता रहा। ऑस्ट्रेलिया शीतयुद्ध के बाद अमेरिका से जुड़ा रहा, जबकि भारत की विदेश नीति उसकी रणनीतिक जरूरतों से चालित रही।

भारत ने हालांकि 1990 के दशक में उदार अर्थनीति अपनाई, लेकिन इसका आर्थिक विकास मुख्यत: सेवा क्षेत्र के प्रसार पर आधारित रहा, जबकि ऑस्ट्रेलिया की अर्थनीति खासकर चीन को संसाधनों और शैक्षिक सेवाओं के निर्यात पर केंद्रित रही। ऐसे में, भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच बेहतर रिश्ते स्थापित करने के लिए आर्थिक कारण कम थे।

पिछले पांच साल में अलबत्ता चीन से तनाव बढ़ने के कारण स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है। चीन से ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते वर्ष 2017 में बिगड़ने शुरू हुए। ऑस्ट्रेलिया और खासकर प्रशांत क्षेत्र में, जिसे कैनबरा अपना प्रभाव क्षेत्र मानता है, चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से ऑस्ट्रेलिया न सिर्फ बहुत परेशान हुआ, बल्कि नीति-नियंताओं को इससे खतरा भी महसूस हुआ। नतीजतन चीनी दखल को रोकने और चीनी निवेश पर अंकुश लगाने के लिए आनन-फानन में वहां ऐसे सख्त सुरक्षा कानून बने, जिससे नागरिक अधिकारों का भी हनन हुआ।

यही नहीं, ऐसे में, ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका के साथ रिश्ते और मजबूत तो किए ही, उसे जापान और भारत जैसे देशों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की आवश्यकता भी महसूस हुई। ऑस्ट्रेलिया की बेरुखी देखकर चीन ने कैनबरा की पूर्ववर्ती लिबरल-नेशनल गठबंधन सरकार पर रणनीतिक प्रतिबंध जैसी स्थिति आयद की, कुछ ऑस्ट्रेलियाई कृषि उत्पादों और दूसरी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया तथा अपने छात्रों को ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने जाने के प्रति हतोत्साहित करने की नीति अपनाई। ऐसे में, ऑस्ट्रेलिया को भी अपनी वस्तुओं के लिए चीन से इतर बाजार ढूंढने की जरूरत महसूस हुई।

वर्ष 2020 में चीन से भारत के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि वर्ष 1975 के बाद पहली बार सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक भिड़ंत हुई, जिसमें मौतें भी हुईं। वर्ष 2021 और 2022 में भी दोनों के बीच झड़प हुई और कई दौर की वार्ताओं से भी हल नहीं निकला। नतीजतन भारत ने जहां उपभोक्ता वस्तुओं और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए आवश्यक उपादानों के चीन से आयात कम या खत्म करने के लिए स्थानीय उद्योगों को आर्थिक प्रोत्साहन देना शुरू किया, वहीं चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क थोपने तथा प्रतिबंध लगाने, कुछ चीनी तकनीकों को अपने यहां प्रतिबंधित करने और चीनी निवेश पर भी प्रतिबंध लगाने का फैसला किया।

ऐसे में, वर्ष 2020 में भारत-ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते बेहतर और मजबूत होने शुरू हुए। उसी साल दोनों देशों ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की, और ऑस्ट्रेलिया आखिरकार मालाबार सैन्याभ्यास में शामिल हुआ, जिसकी इस साल वह मेजबानी कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया पहले से ही भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने का आकांक्षी था, अब भारत भी इस क्षेत्र में पहल कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया के मंत्रियों के भारत दौरे को देखते हुए पिछले साल भारतीय मंत्री भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गए। अब क्वाड दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों का मंच बना है।

हालांकि पहले क्वाड के मंच से भी चीन का उल्लेख करने से भारत बचता था, लेकिन 2021 से वह दक्षिण और पूर्व चीन सागर में चीन की आक्रामक गतिविधियों का उल्लेख करता है। ऑस्ट्रेलिया ने भारत को अपना साझेदार मानते हुए सेमी कंडक्टर्स की आपूर्ति करने का भरोसा दिया है, तो मेडिकल उपकरणों और टीकों के क्षेत्र में दोनों देशों ने मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।

दोनों देशों में नागरिकों की आवाजाही भी बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया में प्रवासन और अध्ययन के लिए हर साल पहुंचने वाले विदेशियों में भारत का स्थान दूसरा है। इसी तरह डीकेन यूनिवर्सिटी भारत में अपना कैंपस खोलने वाली पहली विदेशी यूनिवर्सिटी होने वाली है। छात्रों, शोधार्थियों, स्नातकों और कारोबारियों-उद्योगपतियों की अबाध आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए दोनों देश एक समझौते पर दस्तखत करने जा रहे हैं।

दोतरफा रिश्तों में हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं। उन्नत हथियारों के लिए रूस पर भारतीय निर्भरता को देखते हुए इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के लिए संभावना उतनी नहीं है, क्योंकि मास्को और कैनबरा के बीच भरोसे का रिश्ता भी नहीं है। ध्यान रखना चाहिए कि यूक्रेन पर हमले के कारण रूस वैश्विक आलोचना के केंद्र में है, लेकिन भारत ने उसके साथ पहले जैसे रिश्ते बना रखे हैं। फिर भारत द्वारा ऑस्ट्रेलियाई कृषि उत्पादों के लिए अपना बाजार न खोलने तथा ऑस्ट्रेलिया का भारतीय श्रमिकों के प्रति उदार नीति न अपनाने के कारण भी कुछ बाधाएं बरकरार हैं।

इसके बावजूद शीर्ष स्तर पर दोतरफा रिश्ते मजबूत और संभावनाओं से भरपूर हैं। हाल ही में नरेंद्र मोदी के कैनबरा दौरे पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने जहां भारत की आंतरिक स्थिति पर टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया, वहीं ऑस्ट्रेलिया में हिंदू मंदिरों पर हुए हमलों के संदर्भ में मोदी ने कहा कि इस बारे में उन्हें ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री से यह भरोसा मिला है कि भारत-विरोधी गतिविधियों से सख्ती से निपटा जाएगा। इन सबसे यह संकेत मिलता है कि आगामी दिनों में दोतरफा संबंध नई ऊंचाइयों पर पहुंचेंगे।

 

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