राजनैतिकशिक्षा

जवाबदेही तय हो अधिकारियों की

-सनत कुमार जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

राजस्थान में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त निदेशक के कार्यालय की अलमारी में 2.31 करोड रुपए की नगदी तथा 1 किलो सोना जांच एजेंसियों ने जप्त किया है। ऐसे सैकड़ों मामले हर महीने हर राज्य में देखने को मिलते हैं। यह मामला इसलिए अलग हैं, कि भ्रष्टाचार की कमाई में इतनी बड़ी नगदी और सोना अधिकारी ने कार्यालय में ही रखा था। भारत में जिस तरह के नियम कायदे कानून सरकारें बनाती हैं। उन नियम कायदे और कानूनों को आधार बनाकर राजनेता, सरकारी कर्मचारी और अधिकारी किस तरह से भ्रष्ट कमाई करते हैं। इसके हजारों उदाहरण सामने हैं। जांच एजेंसियों के छापे में आये दिन उजागर होते रहते हैं। लेकिन अब तो हद हो गई कि कार्यालय की अलमारी में रिश्वत और भ्रष्टाचार का धन रखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल, हो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान हो, या अन्य राज्य हों, सभी स्थानों में राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां छापे में करोड़ों रुपए की संपत्ति बरामद होती है। पटवारी जैसे छोटे से पद में काम करने वाले के यहां छापे में करोड़ों रुपए की संपत्ति मिल रही है। मध्य प्रदेश में पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन की एक संविदा सब इंजीनियर के पास से करोड़ों रुपए की संपत्ति जप्त हुई है। उसका वेतन मात्र 30000 रुपये प्रतिमाह है। इससे समझा जा सकता है कि शासन व्यवस्था में जो राजनेता, अधिकारी और कर्मचारी काम करते हैं। वह किस तरह से भ्रष्टाचार के जरिए पैसे कमा रहे हैं।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए, राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र से 100 पैसे जाते हैं। वह राज्यों में जाकर 15 पैसे ही जनता के पास पहुंच पाते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने राजीव गांधी के इस कथन को कांग्रेस के भ्रष्टाचार से जोड़ दिया। जबकि उनका स्पष्ट रूप से कहना था, कि सरकारी योजनाओं का जो पैसा राज्य सरकारों के माध्यम से जनता और विभिन्न योजनाओं के लिए भेजा जाता है। उसका मात्र 15 फ़ीसदी तक जनता तक पहुंच पाता है। राजीव गांधी ने यह सच्चाई बताई थी। विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों की भी सरकारें थी। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस को ही भ्रष्टाचारी पार्टी बता दिया। 30 साल बाद भी भ्रष्टाचार की वही स्थिति है। जो 90 के दशक में थी। भ्रष्टाचार की गंगोत्री में मंत्री, विधायक, सांसद, सरकारी, अधिकारी और कर्मचारी, गोता लगाकर करोड़पति और अरबपति बन जाते हैं। तरह-तरह की जांच एजेंसियां बन गई। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे किए। लेकिन भ्रष्टाचार कम होने के स्थान पर बढ़ता ही जा रहा है। अब तो हद हो गई है, कि सरकारी तंत्र कर्ज लेकर विकास के नाम पर कर्ज राशि से भी भ्रष्टाचार कर रही है। जिसके कारण नागरिकों पर दोहरा आर्थिक भार पड़ रहा है। भारी टैक्स और शुल्क के रूप में आम नागरिक जो पैसा सरकारी कोष में जमा करते हैं। उसकी बहुत बड़ी राशि ब्याज और किस्त के रूप में सरकारों को अदा करनी पड़ रही है। सरकार अपने खर्च पूरे नहीं कर पा रही है। केंद्र, राज्य सरकारों, नगरीय निकायों और आम आदमी पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की तर्ज पर सभी वर्ग, कर्ज लेकर कथरी ओढ़कर घी पीने का काम कर रहे हैं।
रिश्वत लेने वाले और भ्रष्टाचार करने वाले जब पकड़े जाते हैं। तो वह रिश्वत देकर छूट भी जाते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को बड़ा पसंद करती हैं। पकड़े जाने के बाद भी उन पर कार्यवाही करने से परहेज करती हैं। उन्हें कुछ समय के लिए निलंबित करके फिर से महत्वपूर्ण पदों पर तैनात कर दिया जाता है। क्योंकि वह अच्छे से मास्टर होते हैं। भ्रष्टाचार करने की विशेषज्ञ होते हैं। नेताओं और बड़े अधिकारियों को ऐसे ही अधिकारियों और कर्मचारियों की जरूरत होती है। राजस्थान में भी ऐसा ही हुआ। कार्यालय के अंदर करोड़ों रुपए की नकदी और सोना जप्त हुआ। सरकार ने संयुक्त निदेशक को निलंबित कर दिया। निलंबन के दौरान यह अधिकारी अपने बचने के लिए सारे इंतजाम करेगा, जो उसने कमाया है, उसकी बंदरबांट होगी। कुछ समय के बाद पुनः अच्छे पद पर तैनाती हो जाएगी। कुछ समय के बाद दोषमुक्त होकर मलाईदार पद पर पुन: आसीन हो जाएगा। दुगनी गति से फिर कमाई शुरु कर देगा। भ्रष्टाचार के मामले में जो अधिकारी कर्मचारी पकड़े जाते हैं। उनकी कई वर्षों तक जांच चलती है। यदि मुकदमा न्यायालय तक चला भी गया, तो सेवानिवृत्ति होने या मरने के बाद ही उसका फैसला आता है। कई बार तो सरकारें कोर्ट से मुकदमा ही वापस ले लेती है। बड़े-बड़े भ्रष्ट अधिकारी, जनप्रतिनिधि और सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेने और भ्रष्टाचार करने में जरा भी नहीं डरते हैं। उन्हें मालूम है कि यदि पकड़े भी गए, तो रिश्वत देकर छूटने का रास्ता भी वह जानते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें जिस तरह के नियम कायदे कानून बनाती हैं। उनमें अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। वह मनमानी करते हुए अपने तरीके से रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार करके करोड़ों रुपए की कमाई करते हैं। जब तक सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और राजनेताओं की जिम्मेदारी उनके लिये गए निर्णयों के आधार पर तय नहीं की जाएगी। तब तक भ्रष्टाचार रुकने वाला नहीं है। मनमाने तरीके से नियम कायदे कानून बनाते समय उसमें इतने बट, किंतु परंतु डाल देते हैं, जिससे राजनेता और अधिकारी अपने आपको बचा लें, यही सरकारी नियम कायदे और भ्रष्टाचार का मूल स्त्रोत है।

 

 

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