संसद सत्र, विपक्षियों पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई
-सनत कुमार जैन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण 13 मार्च से शुरू हो रहा है। हिंडन वर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह और प्रधानमंत्री को लेकर संसद के पहले चरण में विपक्षी द्वारा काफी हंगामा किया गया था। विपक्षी दलों ने एकजुट होकर जेपीसी गठन की मांग की थी। संसद सत्र के दूसरे चरण के पहले सुनियोजित रणनीति के तहत सत्तापक्ष ने, विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं को भ्रष्टाचार के मुद्दे में घेरकर, संसद सत्र के दूसरे चरण में, विपक्ष का मुकाबला करने की रणनीति के तौर पर यह कार्रवाई देखी जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, ईडी और सीबीआई जो कार्यवाही कर रही है,उसमें विपक्ष को निशाने पर रखा जा रहा है। संसद में अडानी वाले मामले के प्रचार प्रसार को रोकना भी सत्ता पक्ष का मकसद हो सकता है। संसद के अंदर सत्ता पक्ष, विपक्षी दलों को कटघरे में खड़ा करने की रणनीति के तहत, ईडी और सीबीआई की कार्रवाई सरकार की मदद करेगी। वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, कि 2024 के लोकसभा तथा 2023 के विधानसभा चुनाव की पूर्व तैयारी के रूप में इसे देखा जा रहा है। हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की तरह अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आम जनता के बीच नए ध्रुवीकरण के लिए जांच एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है। इसका फायदा चुनावों में होगा।
सत्ता पक्ष के पास नरेंद्र मोदी हैं। जिनके बारे में आम जनता के बीच में यह छवि बनी हुई है, कि वह ईमानदार राजनेता है। वह एक हिंदू राजनेता हैं। उनका कोई परिवार नहीं है। वह किसके लिए भ्रष्टाचार करेंगे। अतः उनके रहते हुए आम जनता के मन में यह छवि बनी रहेगी। जनता के बीच मोदी के रहते भाजपा में कोई भ्रष्टाचार नहीं हो सकता है। यह विश्वास बना रहेगा।
वहीं विपक्षी दलों के लगभग लगभग सारे राजनेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई और ईडी ने अपने निशाने पर ले रखा है। इन सब के ऊपर मुकदमे दर्ज कराकर, इन्हें न्यायालय से जमानत लेने की बाध्यता, विपक्षी राजनेताओं के लिए सत्तापक्ष द्वारा तैयार की गई है। नेशनल हेराल्ड के मामले में जिस तरह से भाजपा नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जमानत पर होना बताते हैं, उसी तरह 2024 के चुनाव में विपक्षी दलों के नेताओं को दागी बताते हुए जमानत पर होने, उन्हें दोषी साबित करना, चुनावी रणनीति का हिस्सा होगा। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव 2024 के लिए हिंदू-मुस्लिम की तरह भ्रष्टाचार के रूप में अब भाजपा के पास दो-धारी तलवार होगी। जो विपक्ष को कमजोर और नेस्त नाबूत करने का काम करेगी। भाजपा वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए, विपक्षी राजनीतिक दलों को आर्थिक रूप से कमजोर करने की रणनीति पर भी काम कर रही है। राजनेताओं के घरों, उनके परिवारजनों तथा उनकी मदद करने वाले लोगों को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की तैयारी के रूप में इसे देखा जा रहा है। विपक्ष पूरा बिखरा हुआ है। भाजपा सुनियोजित रणनीति बनाकर चुनाव मैदान में उतरती है। वैसी महारत स्थिति भारत के किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है।
कैग के मुखिया जब विनोद राय थे। उन्होंने अनुमान के आधार पर 2जी घोटाला, कोल घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, में कल्पनाओं के आधार पर भ्रष्टाचार करने ओर सरकार को नुकसान होने की रिपोर्ट जारी की थी। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है, कि ना तो 2G घोटाला अदालत में साबित हो पाया। ना ही कोल घोटाले में कोई गड़बड़ी पाई गई। कामनवेल्थ घोटाला भी आया गया हो गया। विनोद राय जरूर सेवानिवृत्ति के बाद एक बड़े-बड़े के बाद एक पद पाते चले गए। कैग रिपोर्ट को आधार बनाकर भाजपा ने, कांग्रेस को सबसे बड़ी भ्रष्टाचारी पार्टी बना दिया। कैग की रिपोर्ट होने के कारण जनता ने भी उस पर विश्वास कर लिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। वह सत्ता से बेदखल हो गई। साथ ही भ्रष्टाचारी पार्टी होने का तगमा भी कांग्र्र्रेस पर चिपक गया। यही रणनीति अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनाई जा रही है। जहां पर गैर भाजपाई राजनीतिक दलों को जिनका भाजपा के साथ गठबंधन नहीं है, उन्हें भ्रष्टाचारी पार्टी और भ्रष्ट नेता बताकर जमानत पर होने की बात कहकर, आम जनता के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण की तरह आम जनता के मन में भ्रष्टाचार को लेकर नये ध्रुवीकरण बनाने की रणनीति पर भाजपा काम कर रही है। इसमें सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है। अदालतों से जब तक निर्दोष साबित ना हो जाए, तब तक वह अपराधी के रूप में बने रहेंगे। भाजपा की यह सफल रणनीति पिछले कई वर्षों से देखने को मिल रही है। अब देखना यह है,कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्तापक्ष को सफलता मिलती है या विपक्ष को इसकी सहानुभूति चुनाव में मिल सकती है। इसको लेकर भी तरह-तरह की राय राजनीतिक विशेषज्ञ व्यक्त कर रहे हैं।