राजनैतिकशिक्षा

फेक न्यूज़ सोशल मीडिया पर वायरल करना गंभीर अपराध

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के पलायन, दो मजदूरों की तमिलनाडु में हत्या, विधानसभा में बिहारी मजदूरों की हत्या और हमले को लेकर विपक्ष का वाकआउट करना, बिहार और तमिलनाडु सरकार के बीच में विवाद पैदा करने की कोशिश, इसके साथ ही फेक न्यूज़ के माध्यम से हजारों लाखों लोगों को उद्वेलित कर कानून व्यवस्था की स्थिति को खराब करने का जो मामला सामने आया है, उसके बाद केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस तरह की फेक न्यूज़ को रोकने के लिए तुरंत कड़े कानून बनाए जाने की जरूरत है। सोशल मीडिया में जब इस तरह से फेक न्यूज़ को फैलाई जाती है, उससे दंगे भड़कते हैं। सैकड़ों हजारों लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं। इसके बाद भी सरकारों द्वारा इस संबंध में कोई कड़ाई नहीं किए जाने से यह घटनाएं बार-बार हो रही हैं। सु्प्रीम कोर्ट भी इस संबंध में कई बार अपनी ‎चिंता जता चुका है। ले‎किन अभी तक केन्द्र सरकार ने कोई कानून तैयार नहीं ‎किया। फेक न्यूज से ‎निपटने के ‎लिये केन्द्र सरकार ने जो प्रस्ताव तैयार ‎किया है, उसमें सूचना प्रसारण जैसी संस्था को फेक न्यूज की ‎जिम्मेदारी एजेन्सी बनाने का प्रस्ताव सरकार के इरादों को उजागर करता है। फेक न्यूज को सोशल मी‎डिया में काट-छांटकर जो तथ्य प्रसा‎रित ‎किये जात हैं, उसके ‎लिये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे कड़े प्रावधान लागू करने की आवश्यकता है अन्यथा इस पर रोक लगा पाना संभव नहीं होगा।
तमिलनाडु में जिन बिहारी मजदूरों की हत्या की बात को लेकर ‎बिहारी मजदूरों के पलायन की बात कही गई थी। उसका सच सामने आया तो हर कोई हैरत में पड़ गया। तिरुपुर की एक कॉलोनी तिरुमलाई में एक 10 कमरों की चाल बनी हुई थी। इसी चाल के एक कमरे में रामानी इंपैक्स में टेलर का काम करने वाला पवन अपने छोटे भाई नीरज के साथ रहता था। उसके बगल वाले कमरे में झारखंड का रहने वाला उपेंद्र धारी रहता था। जो ड्राइवर का काम करता था। पड़ोसी और चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर तमिलनाडु पुलिस में जो मामला दर्ज है, उसमें पवन की हत्या उसके पड़ोसी उपेंद्र धारी ने आपसी ‎विवाद में की थी। हत्या करने के बाद वह ट्रेन से झारखंड के लिए भाग रहा था। तमिलनाडु पुलिस ने संज्ञान लिया, मोबाइल से उसकी लोकेशन चेन्नई में मिली चेन्नई से धनबाद की ओर जा रहा था पुलिस ने जीआरपी धनबाद से संपर्क कर उपेंद्र के मोबाइल नंबर और फोटो भेजे। ट्रेन के जनरल डब्बे में उपेंद्र मिला, जहां उसे गिरफ्तार किया गया। ऐसा ही दूसरा मामला फांसी पर लटके पाए गए सिकंदरा बाजार के मोनू यादव का था। उसके भाई तुलसी कुमार को स्थानीय लोगों ने बताया था कि दरवाजा अंदर से बंद था, उसने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। उसका भाई तुलसी विहार से पहुंचा था। उसने इस मामले में गलत जानकारी देकर भाई की हत्या और बिहारियों के पलायन करने से जोड़ दिया। उसके बाद इसका राजनीतिक फायदे के लिए एक पुराने वीडियो को जोड़कर झूठी खबर को सोशल मीडिया के जरिए बड़ी तेजी के साथ फैलाया गया। इसको लेकर पटना और तमिलनाडु दोनों ही जगह पर कानून व्यवस्था की बिगाड़ने का प्रयास किया गया। सारे देश में ‎बिहा‎रियों के उत्पीड़न को लेकर नई तरीके का नैरेटिव बनाने की कोशिश की गई।
सही मायने में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ के माध्यम से सनसनी फैलाकर दंगा और कानून-व्यवस्था की स्थिति संघीय ढांचे को नष्ट करने जैसे हालात पैदा करना घोर अपराध माना जाना चाहिए। इस अपराध के लिए तुरंत कठोर कार्रवाई करना चाहिए। जो लोग इस तरह से फेक न्यूज़ चलाते हैं, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा मान कर उनको कड़े से कड़े दंड दिए जाने की आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया में जिस तरीके की फेक न्यूज़ चलाई जा रही हैं, उसका इस्तेमाल राजनीतिक और व्यापारिक हितों के लिए हो रहा है। ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। फेक न्यूज़ फैलाने वालों के लिए कड़े कानून बनाने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह लोग शांति व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएंगे1 ‎बिना ‎किसी भेदभाव के कड़ी कार्यवाही होने से इन घटनाओं से बचा जा सकता है।

 

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