राजनैतिकशिक्षा

नए रोजगार की ओर

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

निर्णायक होने के कई मजमून हिमाचल का पीछा कर रहे हैं और इन्हीं के इर्द गिर्द तमाम मुख्यमंत्रियों का आकलन होता रहा है। इसी फेहरिस्त में आने वाले पांच साल मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के हर फैसले का मूल्यांकन करेंगे। हिमाचल सरकार के तौर तरीके और पहली मंत्रिमंडलीय बैठक ने यह स्थापित कर दिया कि बात पैसे की भी हो, तो जिरह और जमीन बदली जा सकती है। ओपीएस मुद्दे पर वचनबद्धता निभाना बेशक चुनावी वादा था, लेकिन इस के ऊपर सरकार का रवैया और वित्तीय प्रबंधन का तरीका निश्चित तौर पर निर्णायक भूमिका में परिचय दे गया और अगर मुख्यमंत्री इस मामले से जुड़ी तमाम आपित्तयों और शंकाओं से लांघ गए, तो वह अपने कत्र्तव्यों, दृष्टिकोण और कार्रवाइयों में उत्सुकता का आभास कराते रहेंगे। अब तक मंत्रियों का चयन, विभागों का वितरण और मंत्रिमंडल के फैसलों का आगाज सुखविंदर सिंह को अलग श्रृंखला बनाते हुए देख रहा है। जाहिर है कांग्रेस की गारंटियां सरकार के गले से बंधी हुई हैं और ये खर्चीली तथा वित्तीय प्रबंधन की अति कठोर तपस्या से जुड़ी हुई हैं। दूसरी ओर राज्य की अपेक्षाएं, हिमाचल की प्राथमिकताएं और व्यवस्था परिवर्तन की धाराएं जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री को कडक़ और निर्णायक फैसले लेते हुए देखना चाहती हैं।

सरकार के अगले कदमों में तीन सौ यूनिट तक मुफ्त बिजली की आपूर्ति, एक लाख रोजगार के अवसर पैदा करने और अपने पहले बजट के अनुमानों में आत्मनिर्भरता, आशा, विकास और वित्तीय कुशलता भरने का संकल्प देखा जाएगा। यह दीगर है कि सरकार हर फैसले के पैरामीटर में समय सीमा निर्धारित कर रही है और इसीलिए अगले एक महीने में महिला पेंशन व रोजगार पर फैसला लेने वाली है। ऐसे में हिमाचल और युवाओं के भविष्य की दृष्टि से रोजगार सृजन पर आने वाली रिपोर्ट तथा इससे संबंधित फैसले का इंतजार स्वाभाविक है। यह इसलिए भी कि अब तक रोजगार के मायने सरकारी नौकरी रहे हैं और कमोबेश हर सरकार ने युवाओं को किसी न किसी बहाने इसी दिशा की ओर प्रेरित किया। इतना ही नहीं प्रदेश का अब तक का शैक्षणिक माहौल भी एक तरह से सरकारी नौकरी को ही इसका अभिप्राय बनाता रहा है। ऐसे में रोजगार की रफ्तार को समझने के लिए युवा महत्त्वाकांक्षा और स्वरोजगार की संभावना को फिर से लिखने की जरूरत है। हिमाचल में एक लाख से कहीं अधिक रोजगार व्यापार, उद्योग, पर्यटन, परिवहन, स्वरोजगार, लोककलाओं, ग्रामीण व शहरी आर्थिकी से आ सकता है, बशर्ते ढांचागत परिवर्तन व नवाचार में सरकार आगे बढ़े। इस दिशा में युवाओं के लिए पूर्व घोषित स्टार्ट अप फंड से काफी आशा रहेगी। पर्यटन को ही लें, तो सरकार हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक पर्यटन गांव विकसित करते हुए कई होम स्टे, गिफ्ट सेंटर, जल पान गृह, मनोरंजन तथा अन्य गतिविधियों पर केंद्रित स्वरोजगार पैदा कर सकती है।

ये पर्यटन गांव बिना किसी अतिरिक्त बजट के विधायक निधि, पर्यटन योजनाओं, ग्रामीण व शहरी विकास, जलशक्ति, पीडब्ल्यूडी, वन, भाषा-संस्कृति, मत्स्य पालन तथा प्रमुख धार्मिक स्थलों की आय व सहयोग से विकसित हो सकते हैं। ये हाई-वे, धार्मिक ईको, साहसिक खेलों, हाट बाजार तथा मनोरंजन गतिविधियों को आगे बढ़ाता हुआ ऐसा ढांचा होगा, जहां पूरे प्रदेश में कम से कम पच्चीस हजार लोगों को रोजगार के अवसर दिए जा सकेंगे। इसी तरह पीडब्ल्यूडी, ग्रामीण विकास व परिवहन विभाग अगर हर कस्बे में बस स्टॉप कम व्यापारिक केंद्र विकसित करें तो कम से कम पच्चीस हजार नए व्यापारिक केंद्र स्थापित हो सकते हैं। प्रदेश में शहरीकरण से उपजे रोजगार का मूल्यांकन हो, तो ऐसी अधोसंरचना निर्मित हो सकती है, जो कम से कम 25000 युवाओं को पहले ही चरण में भविष्य का रास्ता दिखाएगी। अगर हिमाचल के पचास शहरों में आधुनिक बाजार, पार्किंग स्थल तथा निवेश केंद्र विकसित किए जाएं, तो इन व्यापारिक व पर्यटन सुविधा परिसरों में बेरोजगार पढ़े लिखे युवाओं को स्वरोजगार का अवसर मिलेगा।

प्रदेश में विकास के नए आयाम, नए मार्गों व फोरलेन, हवाई अड्डों तथा विभिन्न परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों के लिए पुनर्वास एवं निवेश केंद्र अगर पूरे प्रदेश में विकसित किए जाएं और औद्योगिक, एग्रो एवं फ्रूट प्रोसेसिंग तथा परिवहन क्षेत्रों में नीति तथा प्रोत्साहन पारदर्शी हो, तो इस दिशा में युवा निवेशक को आगे बढ़ाया जा सकता है। ये युवा निवेशक आईटी पार्क व नए स्टार्टअप से रोजगार की दुनिया बदल सकते हैं, बशर्ते सरकार शिक्षा का ढर्रा पूरी तरह बदल दे। प्रदेश के कुछ कालेजों को व्यावसायिक दक्षता के उत्कृष्ट केंद्रों में बदल देना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर पौंग बांध के किनारे स्थित नगरोटा सूरियां के कालेज को कालेज ऑफ फिशरीज बना दिया जाए, तो वहां रोजगार की पढ़ाई से सैकड़ों बच्चे अपना भविष्य संवार सकते हैं। इस तरह हम उपर्युक्त उद्देश्यों में और 25000 युवाओं को जोड़ सकते हैं। इसके अलावा सरकार अपने खर्चे घटाते हुए युवा निवेशकों के साथ वित्तीय साझापन व सहयोग तय करे, तो सरकारी वाहन सुविधा इनसे निजी तौर पर उपलब्ध करवाई जा सकती है। प्रदेश के रेस्ट हाउसों का संचालन युवा करें और इस तरह की अनेक सुविधाएं जब इनके हाथ आएंगी तो हर सरकारी प्रांगण में रोजगार खिल उठेगा। भविष्य में हर गांव से शहर तक कर्मचारियों की आवासीय सुविधा को युवा निवेश के साथ जोड़ दिया जाए, तो शैक्षणिक अनुभव के अनुसार पढ़े लिखे युवा आवासीय इकाइयां खड़ी करके, सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले आवासीय भत्ते के दम पर ही खुद की पगार पैदा कर लेंगे। अंत में सरकार हिमाचल में अब तक के निजी निवेश में पैदा हुए रोजगार को सम्मानित करते हुए भविष्य के निवेश को दिशा निर्देशित करे, तो हजारों युवा रोजगार कार्यालय के बजाय निजी संस्थानों में समाहित होंगे, वरना ओपीएस जैसे आकर्षण में तो सरकारी नौकरी की सरलता कौन नहीं चाहेगा।

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