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अमेरिका में घट रहा है यूक्रेन युद्ध का समर्थन

-हर्ष वी पंत-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

साल 2022 शुरू होने से पहले ही यूक्रेन को लेकर बहस शुरू हो चुकी थी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन यूक्रेन के इर्दगिर्द अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ाते जा रहे थे। माहौल में थोड़ी घबराहट जरूर थी, लेकिन शायद ही कोई यह मान रहा था कि युद्ध शुरू हो जाएगा। मगर युद्ध सचमुच शुरू हो गया, जिसने विश्व और यूरोप की भू-राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। 24 फरवरी की उस काली तारीख के बाद से अब तक, विभिन्न अनुमानों के मुताबिक दोनों तरफ के एक-एक लाख से ज्यादा सैनिक हताहत हो चुके हैं और करीब 40,000 नागरिक भी मारे गए हैं। युद्ध के कारण 78 लाख से अधिक यूक्रेनी नागरिक कई यूरोपीय देशों में शरणार्थी बन चुके हैं।

निर्णायक मोड़

हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने गर्व से कहा कि यूक्रेन जिंदा है और कभी समर्पण नहीं करेगा। उन्होंने अमेरिका को भरोसा दिलाया कि यूक्रेन को उससे जो मदद मिल रही है, वह भविष्य की सुरक्षा के लिए किया जा रहा निवेश है। जेलेंस्की ने यह भी दावा किया कि अगले साल इस लड़ाई में ‘निर्णायक मोड़’ आएगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति अच्छी तरह जानते हैं कि अगले कुछ महीने बेहद नाजुक हैं और इसकी कई वजहें हैं।

-अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन के साथ अंत तक खड़े रहने का वादा जरूर किया है, 2 अरब डॉलर का राहत पैकेज भी घोषित किया है, इसके अलावा 45 अरब डॉलर की सहायता का प्रस्ताव पाइपलाइन में भी है, लेकिन इस युद्ध पर बढ़ते अमेरिकी खर्च को लेकर रिपब्लिकंस के एक हिस्से में बेचैनी बढ़ती जा रही है।

-हाल में हुए सर्वेक्षणों में महज 50 फीसदी रिपब्लिकन वोटरों ने यूक्रेन को दी जा रही सहायता का समर्थन किया। पिछले मार्च में हुए सर्वेक्षण में समर्थकों का अनुपात 80 फीसदी था।

-ऐसे भी अमेरिका में युद्ध से लोग तंग आ रहे हैं। करीब एक तिहाई अमेरिकी अब यूक्रेन को सहायता जारी रखने के पक्ष में नहीं हैं और करीब आधे ऐसे हैं जो चाहते हैं कि यूक्रेन जल्द से जल्द शांति कायम कर ले।

-रूस भी मानकर चल रहा है कि कड़ाके की ठंड न केवल यूक्रेन युद्ध के प्रति जनसमर्थन को कम करेगी बल्कि उसके साथ खड़े रहने के यूरोपीय देशों के संकल्प की भी परीक्षा लेगी।

रूस का आरोप है कि अमेरिका, यूक्रेन में एक छद्म युद्ध लड़ रहा है। हाल ही में अमेरिका ने यूक्रेन को पैट्रियट मिसाइल देने की बात कही है। उसने इसे यूक्रेन के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बर्बर रूसी हमले से बचाव का साधन बताया है, लेकिन पैट्रियट मिसाइल की यूक्रेन को डिलिवरी से रूस के इस आरोप को आधार मिलेगा कि अमेरिका, यूक्रेन में छद्म युद्ध लड़ रहा है। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा भी है कि ‘शांति स्थापित करने में न तो अमेरिका की कोई दिलचस्पी है और न ही यूक्रेन की। वे बस युद्ध को जारी रखना चाहते हैं।’

बदलता ग्लोबल लैंडस्केप

यूक्रेन में चल रहा युद्ध जल्द समाप्त हो या न हो, इतना जरूर है कि यह ग्लोबल लैंडस्केप को कई तरह से बदल चुका है। वैश्विक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को इसने तेज कर दिया है। पश्चिम और रूस के बीच चलने वाली पांरपरिक प्रतिद्वंद्विता अब अमेरिका-चीन विवाद में भी झलक रही है क्योंकि चीन और रूस की धुरी इस बीच काफी मजबूत हो गई है। यूरोप महाशक्तियों की राजनीति के तर्क को औपचारिक तौर पर स्वीकार कर चुका है और अब भू-राजनीति के तर्क को भी स्वीकार करने को तैयार है। अब जब यूरोप अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाते हुए अपनी सैन्य क्षमता में इजाफा कर रहा है, उसका चीन के साथ अपने संबंधों के समीकरण पर दोबारा विचार करना स्वाभाविक है। भले ही पूतिन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद खड़ी की गई यूरोपीय संरचना की नींव को हिला दिया हो, अब यह महसूस किया जा रहा है कि दीर्घकालिक खतरा तो ज्यादा हिंद प्रशांत क्षेत्र से ही है, जहां शी चिनफिंग घात लगाए मौके का इंतजार कर रहे हैं।

नए फ्रेमवर्क की जरूरत

इस युद्ध ने दुनिया के सामने कई तरह की नई चुनौतियां पेश की हैं और पारंपरिक सोच के कई अहम पहलुओं की ओर ध्यान खींचा है।

-युद्ध के दौरान यह स्पष्ट हो गया है कि इस विस्फोटक दौर की जरूरतों से निपटने के लिए नए संस्थान और नए फ्रेमवर्क खड़े करने होंगे।

-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उभरी बहुपक्षीय व्यवस्था अब बुरी तरह से हांफ रही है और जैसे-जैसे ध्रुवीकरण तेज होगा, यह पुरानी व्यवस्था के अवशेष में बदलती जाएगी।

-नए बहुपक्षीय या कुछ देशों के संगठन की दिशा में बढ़ते कदम दरअसल मौजूदा दौर की इसी जरूरत को पूरा करने की कोशिशों का हिस्सा हैं। इस लिहाज से समान सोच वाले देशों का छोटा ग्रुप भी वैश्विक और क्षेत्रीय समस्याओं को हल करने में ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।

-यूक्रेन पर रूसी हमले ने भविष्य में सेनाओं के युद्ध लड़ने के तरीकों को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।

-यूक्रेन युद्ध ने जंग में नई टेक्नॉलजी की भूमिका को साबित किया है। इसे लेकर जिस तरह से रूस और यूक्रेन के बीच साइबर संघर्ष चल रहा है, ऐसी उदाहरण भी पहले कम ही मिलते हैं।

-डिजिटल इन्फॉर्मेशन की लड़ाई में यूक्रेन और पश्चिम भारी पड़े क्योंकि रूस सूचनाओं के प्रवाह पर अपना दखल रखने की स्थिति में नहीं था।

भारत से जुड़े सवाल

कुल मिलाकर, इतना तय है कि यूक्रेन पर रूसी हमला आने वाले वर्षों में वैश्विक राजनीति को कई तरह से प्रभावित करेगा। खासकर भारत के लिहाज से देखा जाए तो इस युद्ध ने उसके भी विदेश और सुरक्षा नीति संबंधी विकल्पों और 21वीं सदी में युद्ध लड़ने के लिए सेना को तैयार करने के तरीकों से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।

 

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