राजनैतिकशिक्षा

कांग्रेस के सुधार प्रयासों की तरफ बढ़ते कदम पर चुनौतियां बरकरार

-रहीम खान-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारतीय राजनीति में पांच दशक तक केन्द्र और राज्य की राजनीति में एकतरफा हुकुमत करने वाली कांग्रेस पार्टी वर्ष 2014 के बाद राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रही है। इसके एक नहीं अनेक कारण है। जब कांग्रेस सत्ता में थी तब लोगों में जमकर मक्खन, मलाई चाटा और खाया और जब संघर्ष का दौर आया तो यह अवसरवादी चेहरे कांग्रेस छो़ड़कर दूसरे दलों में शामिल हो गये। कांग्रेस के साथ यह कहावत पूरी तरह से खरी उतरती है कि घर का भेदी लंका ढाये। कांग्रेस की प्रगति एवं संघर्ष दोनों में गांधी परिवार का जो योगदान है उसको उपेक्षित नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिये भरपूर प्रयास किया है पर सफलतायें उसको उस तरह से प्राप्त नहीं हो पाई जैसी मेहनत रही है। इन सब के बावजूद कांग्रेस में सुधार के प्रयास निरंतर गतिशील है, उसके बावजूद उसकी जो राजनीतिक चुनौतियां है वह अपने जगह कायम है। सत्ता में रहते संगठन को जमीन स्तर से मजबूत नहीं कर पाने के कारण उसे अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं केन्द्रीय और राज्य के नेतृत्व में आपसी समन्वय के कारण भी अनेक प्रकार की राजनीतिक विषमताओं से कांग्रेस को गुजरना पड़ रहा है।
यूं जो देश में अनेक राजनीतिक दल है, किंतु लोकतंत्र के नाम पर अनेक दलों में खाना पूर्ति की जाती है खानापूर्ति की जाती है कांग्रेस में भी कुछ इसी तरह की स्थितियां देखी गई पर हाल ही में सम्पन्न कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव में पूरी तरह से लोकतांत्रिक नियमों का पालन किया गया है। विधिवत रूप से अध्यक्ष का चुनाव हुआ, जहां पर 9 बार के विधायक एवं लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य रहे वरिष्ठ दलित नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने चुनाव में विजयश्री प्राप्त कर एक नया इतिहास बनाया। 1885 से 2022 के बीच में कांग्रेस में 97 अध्यक्ष रहे जिसमें से 29 बार अध्यक्ष गांधी परिवार से थे और 68 बार गैर गांधी परिवार के लोक अध्यक्ष रहे। मोतीलाल नेहरू 1919 एवं 1928 में जवाहरलाल नेहरू 1930, 1936, 1937 में, इंदिरा गांधी 1959, 1978, 1983 में राजीव गांधी 1985 से 1991 तक, राहुल गांधी 2017 से 2019 तक, एवं सोनिया गांधी 1998 से लेकर 2022 तक के मध्य अलग-अलग भाग में वह 20 वर्षो से ज्यादा समय तक अध्यक्ष रही। उनके कार्यकाल में कांग्रेस लगातार 10 वर्षो तक केन्द्र में सरकार बनाने में सफल भी हुई। वहीं बाद के कार्यकाल में कांग्रेस को अपेक्षाओं के अनुरूप सफलता अर्जित नहीं हो पाई। राहुल गांधी अध्यक्ष बने पर लोकसभा चुनाव 2019 में विफलताओं के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दिया। भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी कहे या बुर्जुग पार्टी के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष खडगे के कंधों पर पार्टी की विरासत और लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मिली है वहीं एक कार्यकर्ता भी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकती है यह धारण एक संगठन को मजबूत बनाने के क्षेत्र में सार्थक कदम कही जायेगी। 1970 से 1971 तक जगजीवन राम पहले कांग्रेस के दलित अध्यक्ष थे उसके बाद इसी वर्ग से खडगे सामने आये है। इनके अध्यक्ष बनने से कांग्रेस पर परिवारवाद और एक ही परिवार की पार्टी का जो आरोप लगता था वह स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। नये अध्यक्ष खडगे की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह किस तरह से इस पद के साथ न्याय कर पायेगें। किस तरह से संगठन को वह नई मजबूती दे पायेगें। ये बात भी जिज्ञासा का विषय है। अभी से उनके नेतृत्व को लेकर टीकाटिप्पणी करना उचित नहीं है हालांकि इस पद के प्रबल दावेदार दिग्विजय सिंह थे पर आंतरिक राजनीतिक समीकरणों के चलते उन्हें इस लडाई से हटना पडा। हालांकि खडगे के अध्यक्ष बनने से संपूर्ण दलित समाज कांग्रेस से जुड़ जायेगा ऐसा नहीं कहा जा सकता पर उन्हें सामने लाकर कांग्रेस ने भाजपा के राष्ट्रपति दलित महिला के कार्ड को काऊंटर करने का प्रयास किया है। देखना यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी परिवार के होने के बाद वह पार्टी के लिये क्या कुछ नया कर पाता है। अध्यक्ष कोई भी रहे कांग्रेस के भीतर गांधी परिवार का अपना जो महत्व है वह यथावत रहेगां।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी का आम जनता के साथ जो संवाद होना चाहिये वह पूरी तरह से टूट गया था, जिसे कायम करने के लिये अनेक तरह के प्रयास किये गये परन्तु उसमें वह सफल नहीं हो पाये, ऐसी विषम परिस्थितियों में पदयात्रा जो आम आदमी से सीधे जुडने या संवाद का बड़ा माध्यम है उस पर अमल करने का कांग्रेस की पहल कारगर साबित होते हुए दिख रही है। 2017 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा के माध्यम से हजारो किलोमीटर की पदयात्रा करके केवल अपनी ही छबि नहीं सुधारी बल्कि कांग्रेस को भी उन्होंने लाभ दिया। उसी का परिणाम था कि 2018 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस लौटी थी। ये दिगर बात है कि पार्टी के भीतर नेताओं की आपसी वर्चस्व की लड़ाई में उन्हें पांच साल की सत्ता को पन्द्रह माह में गंवाना पडा। दिग्विजय सिंह के मार्गदर्शन में ही जमीनी संवाद को मजबूत करने के लिये 07 सितम्बर 2002 से कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई कांग्रेस की भारत जोड़ा पदयात्रा इन पंक्तियों के लिखे जाते तक तामिलनाडू, केरल, कर्नाटक एवं आन्ध्रप्रदेश में पहुंच चुकी है। 1000 किलोमीटर से अधिक यह पदयात्रा अपना रास्ता पार कर चुकी है। इस यात्रा ने वास्तविक रूप से राहुल गांधी की छबि जिस तरह से करोड़ो रूपये खर्च करके भाजपा ने बिगड दी थी उसमें व्यापक सुधार हुआ है उनको देखने समझने का आम जनता में दृष्टिकोण बदला है। उनसे जिस प्रकार बच्चे, किशोर, वयस्क वर्ग के पुरूष महिला अपनापन दिखाते हुए मुलाकात कर रहे है मध्यम वर्ग व गरीब वर्ग से जुड़े लोग जिस तरह से उन पर अपना प्रेम लुटा रहे है उसमें एक नई तरह की छबि जनता में राहुल की बनाई है। हालांकि इस यात्रा को बदनाम करने के लिये भाजपा द्वारा जितने सारे हथकंडे अपनाये जा रहे है वह कहीं भी कारगार साबित होते नहीं दिख रहे है। क्योंकि भाजपा के नेताओं ने यात्रा की है वह रथयात्रा थी पदयात्रा नहीं थी। आम जनता से संवाद को मजबूत करने के दृष्टिकोण से कांग्रेस से कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यह यात्रा तीन उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़ रही है जिसको जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है। बल्कि यू कहे कि कांग्रेस को इस यात्रा ने नई संजीवनी दी है इसमें कोई अतिश्योति नहीं है। इससे कितना लाभ मिलेगा यह अलग बात है राहुल गांधी जो कोरोना काल हो या उत्तरप्रदेश के भिन्न हुए अत्याचार हर जगह उन्होने भाजपा सरकार से लोहा लेने में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी। 1000 से अधिक किलोमीटर पैदल चलना सहज और सरल कार्य नहीं है।
बहरहाल राजनीतिक संक्रमण काल से निकलने के लिये कांग्रेस की यह पदयात्रा पार्टी के लिये मील का पत्थर साबित होगी ऐसा माना जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ संगठन की कमान गैर गांधी परिवार के हाथ में होने के बाद संगठन में भी व्यापक स्तर पर सुधार होगा और 2024 का लोकसभा इलेक्शन कांग्रेस पूरे आत्मविश्वास और योजनाबद्ध रूप से लड़ेगी ऐसा अनुमान है। कांग्रेस के सुधार प्रयासों के अंतर्गत जो कुछ किया जा रहा है। उसका राजनीतिक लाभ कितना होगा उसका उत्तर भविष्य के गर्भ में है पर कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हो रहा है यही उसके लिये वरदान का विषय है। आने वाले में हिमाचल प्रदेश गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राजस्थान इत्यादि राज्यों के चुनाव में कांग्रेस किस तरह से भाजपा की चुनौतियों को मात देगी यह बात भी जिज्ञासा का विषय है।

 

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