उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन पर यूएन की पहल का सह नेतृत्व कर रहे भारत, स्वीडन
संयुक्त राष्ट्र, 22 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। भारत और स्वीडन उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई सम्मेलन के तहत उद्योगों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की एक पहल का सह-नेतृत्व कर रहे हैं। यह 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्रों से मजबूत प्रतिबद्धताएं लेगा। जलवायु कार्रवाई सम्मेलन की मेजबानी संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस कर रहे हैं। पेरिस समझौते को लागू करने के कार्य में तेजी लाने के इरादे के साथ जलवायु कार्रवाई सम्मेलन में नौ अंतरनिर्भर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसका नेतृत्व कुल 19 देश करेंगे और इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन सहयोग करेंगे। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने यहां शनिवार को कहा कि वह आने वाले बरसों में इस सहयोग को विकसित होते देखना चाहेंगी। उन्होंने मरूस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र समझौते के 14 वें कॉंफ्रेंस ऑफ पार्टिज (कॉप 14) के लिए अपनी हालिया भारत यात्रा को याद करते हुए कहा कि उन्होंने उप राष्ट्रीय स्तर पर किये जा रहे (जलवायु संबंधी) कार्यों में आश्चर्यजनक चीजें देखीं, जिन्हें वहां के शासन के नेतृत्व द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जलवायु संकट हमारी पीढ़ी की एक प्रमुख चुनौती है और इससे निपटने के लिए सभी देशों के हाथों से समय निकलता जा रहा है। अमीना ने कहा, उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अगला दशक अहम है। हमें पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना होगा… इसका मतलब है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 2030 तक 45 फीसदी की कमी लानी होगी, 2050 तक कार्बन न्यूट्रलिटी तक पहुंचना होगा और सदी के अंत तक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करना होगा। उन्होंने कहा कि उद्योग क्षेत्र, खासतौर पर सीमेंट, इस्पात, रसायन और हैवी ड्यूटी ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्र सालाना 10 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं जो वैश्विक उत्सर्जन का करीब 30 फीसदी है। उन्होंने कहा कि सीमेंट और इस्पात जैसे उद्योग अत्यक्षिक अक्षम (उत्सर्जन में कमी लाने में) बने हुए हैं। ऐसे क्षेत्रों को कम-उत्सर्जन तरीके से विकसित किया जा सकता है। इस्पात का उत्पादन बगैर कोकिंग कोल के उपयोग से किया जा सकता है। संरा उप महासचिव ने कहा, यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि इन समाधानों को आगे बढ़ाय जाए और वे अंतर पैदा करने वाले स्तर तक पहुंच सके। यही कारण है कि इस दिशा में कदम उठाने के लिए आज हम भारत जैसे देशों की ओर देख रहे हैं…।