राष्ट्रपति पर विपक्ष बिखरा
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
चार दिन बाद 18 जुलाई को देश का राष्ट्रपति चुनने को मतदान किया जाएगा। इस मुद्दे पर विपक्ष की जिस लामबंदी की अपेक्षा थी, वह लगातार खंड-खंड हुई है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा-एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा की है। उन पर पार्टी के 18 में से 16 सांसदों का दबाव था कि राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू का ही समर्थन किया जाए। उद्धव नहीं चाहते थे कि पार्टी में विभाजन की एक और नौबत आए, लिहाजा उन्हें यह घोषणा करनी पड़ी। उद्धव ठाकरे सफाई दे रहे हैं कि शिवसेना ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को भी समर्थन दिया था। दरअसल वह ‘मराठी गौरव’ का सवाल था, क्योंकि पहली बार महाराष्ट्र से कोई राष्ट्रपति बन रहा था। उद्धव की घोषणा के साथ ही महाविकास अघाड़ी गठबंधन विभाजित हो गया है, क्योंकि कांग्रेस और एनसीपी विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रही हैं। विपक्ष की साझा सरकार झारखंड में भी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मुर्मू के समर्थक बताए जा रहे हैं। मतदान के दिन सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। द्रौपदी मुर्मू न केवल झारखंड की राज्यपाल रही हैं, बल्कि राज्य के संथाल परगना सरीखे आदिवासियों में उनका प्रभाव बहुत है। सोरेन आदिवासियों के वोट बैंक को नाराज़ करने का जोखि़म नहीं उठा सकते।
पहली बार किसी आदिवासी को संविधान के सर्वोच्च पद पर बैठने का मौका मिल रहा है। इसके अलावा, आंध्रप्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी तेलुगूदेशम ने भी राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान किया है। वहां की सत्तारूढ़ पार्टी वाईएसआर कांग्रेस तो नामांकन के दिन से ही मुर्मू की पक्षधर रही है। जनता दल-एस, बसपा, अकाली दल आदि विपक्षी पार्टियों ने भी भाजपा-एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की है। गोवा के 11 कांग्रेस विधायकों में से 9 विधायक पाला बदलने पर आमादा लग रहे हैं, फिलहाल वे पार्टी में ही हैं। वे भाजपा में कब शामिल होंगे, यह तो बाद की बात है, लेकिन वे द्रौपदी मुर्मू के ही पक्ष में वोट करेंगे, ऐसा वे निश्चित कर चुके हैं। हरियाणा में कांग्रेस के बागी विधायक कुलदीप बिश्नोई ने गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर अपना वोट तय कर दिया है। कांग्रेस से निष्कासित विधायक कभी भी भाजपा का अंग-वस्त्र धारण कर सकते हैं। विपक्ष की एकजुटता कहां दिखाई दे रही है? ताज़ा गणना के मुताबिक, राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू को 6 लाख से ज्यादा वोट-मूल्य हासिल हो सकते हैं। वह स्पष्ट विजेता लग रही हैं।
दरअसल जब राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब भाजपा-एनडीए के पक्ष में कुछ वोट-मूल्य कम थे। उसी के मद्देनजर विपक्ष ने साझा उम्मीदवार के तौर पर यशवंत सिन्हा का नाम तय किया था। उनसे पहले शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और गोपाल गांधी प्रस्तावित उम्मीदवारी से इंकार कर चुके थे। ओडिशा के बीजद और आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस ने जैसे ही भाजपा-एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन घोषित किया, तो विपक्ष का पहला बिखराव शुरू हुआ। दरअसल राष्ट्रपति को लेकर विपक्ष एकजुट और गंभीर कभी रहा ही नहीं। इस चुनाव के जरिए विपक्षी दल 2024 के आम चुनाव के लिए लामबंद होकर महागठबंधन तैयार करना चाहते थे, लेकिन विपक्ष लगातार खंड-खंड होता रहा। दरअसल वे प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लामबंदी चाहते हैं, जबकि बुनियादी मुद्दों पर उनमें आज भी सहमति नहीं है। विपक्षी गठबंधन की नियति ही यही है कि वह टूटने के लिए बनाया जाता है। यदि बन जाता है, तो उसे तोड़ने की कवायदें की जाती हैं। बहरहाल राष्ट्रपति चुनाव में आज की स्थिति यह है कि यशवंत सिन्हा के पक्ष में करीब 3.89 लाख वोट-मूल्य का मतदान हो सकता है। जीत-हार के बीच व्यापक फासला स्पष्ट दिखाई दे रहा है। यशवंत सिन्हा अब यह दुष्प्रचार करने में जुटे हैं कि मुर्मू ‘रबर स्टाम्प’ राष्ट्रपति साबित होंगी, लिहाजा देश के लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने का वक़्त अब भी है। राजनीतिक दल, उनके सांसद और विधायक, इस मुद्दे पर गंभीरता से पुनर्विचार करें। उधर मुर्मू ने अपने पक्ष में मतदान के लिए कई राज्यों का दौरा करके न केवल भाजपा और उसके साथी दलों से, बल्कि विरोधी दलों से भी समर्थन मांगा। यहां तक कि ममता बैनर्जी से भी वह मिलीं। तभी वह आगे लग रही हैं।