राजनैतिकशिक्षा

तालिबानी सोच गलत

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

राजस्थान के उदयपुर में टेलर कन्हैयालाल की निर्मम हत्या ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। नूपुर शर्मा के समर्थन में एक पोस्ट की वजह से कट्टरपंथियों ने इस्लामिक स्टेट के आतंकियों की तर्ज पर कन्हैया की गर्दन काट डाली। इस घटना के बाद जहां आम लोगों में गुस्सा है, वहीं कांग्रेस-भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने इसकी निंदा की है और भारत में विकसित होती तालिबानी सोच को खत्म करने की मांग की है। अजमेर दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान ने भी उदयपुर की घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि कोई भी धर्म मानवता के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा नहीं देता है। देश में हम तालिबानी कल्चर पर नहीं आने देंगे। चाहे जाने ही चली जाए। ये जो लोग इस तरह की हरकत कर रहे हैं, उससे न केवल इस्लाम बदनाम होता है। धर्म बदनाम होता है, देश बदनाम होता है। यह गलत है। भाजपा के अलावा ओवैसी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल तक ने उदयपुर की घटना को मानवता के लिए शर्मसार बताया है। एक सिरे से इस घटना को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रिया आई, वह बताती है कि वैचारिक मतभेद कुछ भी हों, भारत में बर्बरता की जगह नहीं है। उदयपुर में कन्हैया के मर्डर पर राजस्थान पुलिस भी सवालों के घेरे में आ गई है। खुद गहलोत सरकार भी पुलिस महकमे से चूक को स्वीकार कर रही है। लेकिन अभी सिर्फ एएसआई को सस्पेंड किया गया है। दरअसल नूपुर शर्मा को लेकर कन्हैयालाल के फोन से गलती से हुई पोस्ट को लेकर कुछ लोगों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत पर त्वरित ऐक्शन लेते हुए उदयपुर पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, बाद में उसे कोर्ट से जमानत मिल गई। जमानत मिलने के बाद कन्हैया को कट्टरपंथियों से धमकियां मिलने लगीं। उसे अलग-अलग नंबरों से फोन और मैसेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी जाने लगी। खुद की जान पर खतरे को देखते हुए कन्हैया 15 जून को उसी थाने में शिकायत और गुहार लेकर पहुंचा, जहां की पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। उसने धमकियों की जानकारी देते हुए अपनी जान की रक्षा की गुहार लगाते हुए सुरक्षा की मांग की। कन्हैया को गिरफ्तार करने में देर ना करने वाली पुलिस ने धमकी देने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने या गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं समझी। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ इतना किया कि कुछ लोगों को थाने में बुलाकर समझा-बुझा दिया और शांति-मेल मिलाप से रहने का उपदेश देकर घर भेज दिया। पुलिस मामले की संवेदनशीलता क्यों नहीं समझ पाई? सिर कलम करने की धमकी को इतने हल्के में क्यों लिया गया? क्यों नहीं समय रहते आरोपियों को गिरफ्तार किया गया? राजस्थान पुलिस पर हर कोई इस तरह के सवाल उठा रहा है और कहा जा रहा है कि पुलिस ने यदि धमकी देने वालों को गिरफ्तार कर लिया होता तो आज शायद कन्हैयालाल जिंदा होता। राजस्थान में सांप्रदायिक हिंसा और तनाव थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। हालात यह हैं कि प्रदेश में तीन महीने की अंदर तीन बड़ी हिंसक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। उदयपुर की घटना को छोड़कर राज्य में चार साल में छह बड़े दंगे हो चुके हैं। इधर, उदयपुर में दर्जी की गला रेतकर हत्या करने के बाद पूरे प्रदेश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। साथ ही सभी जिलों में धारा 144 भी लागू कर दी गई है। जिले के साथ थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू भी लगाया गया है। जोधपुर में परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में रैली निकाली गई थी। इस दौरान जालोरी गेट चौराहे पर झंडे लगाए गए। दो मई की देर रात ईद को लेकर समाज के लोगों ने इसी चौराहे पर झंडे लगाने की कोशिश की। लोग वहां पहले से लगे झंडों को हटाकर अपने धर्म के झंडे लगाने लगे, दूसरे समाज के लोगों ने इसका विरोध किया। इस दौरान एक युवक के साथ विशेष समुदाय के लोगों ने मारपीट कर दी। इसके बाद मौके पर जुटी भीड़ ने नमाज के लिए लगाए गए लाउडस्पीकरों को पोल से हटा दिया। दोनों समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए और पत्थरबाजी शुरू हो गई। पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागकर कर हालात काबू में किए। पथराव में डीसीपी भुवन भूषण यादव, एसएचओ अमित सिहाग सहित चार पुलिसकर्मी और कुछ मीडियाकर्मी भी घायल हो गए थे। कई दिन बाद शहर के दस थाना इलाकों से कर्फ्यू हटाया गया था। हिंदू नव वर्ष पर निकाली गई बाइक रैली पर विशेष समुदाय के लोगों ने पथराव कर दिया था। इससे शहर के हटवारा बाजार में हिंसा भड़क गई। उपद्रवियों ने 35 से ज्यादा दुकानों, मकानों और बाइकों को आग के हवाले कर दिया। बिगड़ते हालात को देखते हुए प्रशासन तुरंत हरकत में आया और शहर में धारा 144 लागू कर दी, लेकिन इससे हालात नहीं संभले। इसके बाद प्रशासन ने जिले में कर्फ्यू लगाया और फिर इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी थी। हिंसा में पुलिसकर्मियों सहित 43 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस हिंसा के बाद लगे कर्फ्यू के कारण शहर के लोग करीब 15 दिन तक घरों में कैद रहे थे।

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