चीन-अमेरिका में ठनी
-सिद्धार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
जापान में क्वाड समिट से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को ताइवान के मसले पर कड़ा संदेश दिया है। जो बाइडेन ने कहा कि यदि ताइवान पर चीन हमला करता है तो फिर अमेरिका उसका जवाब देगा। उन्होंने कहा कि ऐसा होने की स्थिति में अमेरिका की ओर से ताइवान को सैन्य मदद दी जाएगी। यही नहीं उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि चीन खतरे से खेलने का प्रयास कर रहा है। बाइडेन ने कहा कि यह हमारा कमिटमेंट है कि ताइवान की रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि वन चाइना पॉलिसी को लेकर सहमत हैं, लेकिन किसी भी क्षेत्र पर यदि चीन की ओर से जबरन कब्जा किया जाता है तो फिर उसका जवाब दिया जाएगा। उन्होंने कहा, हम वन चाइना पॉलिसी से सहमत हैं। हमने उस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन बलपूर्वक कुछ भी हथियाने का काम चीन करता है तो वह ठीक नहीं होगा। चीन को लेकर बाइडेन का यह बयान यूक्रेन में रूस को न रोक पाने की विफलता है। अब अमेरिका ताइवान के बहाने उस प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करना चाहता है, जो उसने यूक्रेन मसले पर गंवाई है। यूक्रेन जंग से पहले तक अमेरिका के भरोसे रहा। अमेरिका भी यूक्रेन को मदद का भरोसा देता रहा, लेकिन रूस ने देखते-देखते यूक्रेन को खंडहर में तब्दील कर दिया। अमेरिका की किरकिरी के बीच कई छोटे देश अपनी योजना बदलने पर मजबूर हुए। बाइडेन इसकी गंभीरता को समझते हैं। इसीलिए उन्होंने चीन के साथ रूस को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन में बर्बरता की कीमत व्लादिमीर पुतिन को चुकानी होगी। रूस को लंबे वक्त तक इसकी कीमत अदा करनी होगी। उन्होंने कहा कि यह बात सिर्फ यूक्रेन को लेकर ही नहीं है। अब जो बाइडेन के इस रुख पर चीन भी भड़क सकता है। वह पहले भी कई बार अमेरिका को ताइवान की मदद के मामले में चेतावनी दे चुका है। चीन की विस्तारवादी सोच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। चीन अक्सर ताइवान की सीमा में घुसने की फिराक में रहता है। इसके साथ ही चीन दक्षिणी चीन सागर के अधिकतर हिस्से को अपना बताता है। ताइवान के मुद्दे पर चीन और अमेरिका के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है, लेकिन ताइवान और चीन के आपसी कारोबार में हाल में तेज गति से वृद्धि हुई है। बीते वित्त वर्ष में ताइवान ने चीन को 270 बिलियन डॉलर के बराबर का निर्यात किया। यह ताइवान के सालाना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 40 फीसदी था। ताइवान की जीडीपी पिछले साल 668 बिलियन डॉलर की थी। इस बीच चीन में ताइवान का निवेश बढ़ कर 200 बिलियन डॉलर की सीमा पार कर गया है। अब ताइवान चीन में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में एक बन गया है। 1991 से मई 2021 तक ताइवान के 44,577 निवेश प्रस्ताव चीन में मंजूर हुए। इनके तहत 193.51 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ। ताइवान से चीन को सबसे ज्यादा निवेश कंप्यूटर चिप का हो रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समय लगाए गए व्यापार प्रतिबंधों के बाद से चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए ताइवान एक बड़ा सहारा बन गया है। चीन में इस समय जितने चिप फैब्रिकेशन इंजीनियर काम कर रहे हैं, उनमें लगभग 20 प्रतिशत ताइवानी हैं। ये लोग चीन में चिप निर्माण की सुविधाएं तैयार करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। ताइवान ने चिप उद्योग में जो विशाल निवेश किया है, उसकी सफलता चीन से आने वाली मांग पर निर्भर है। 2020 में चीन ने ताइवान से 350 बिलियन डॉलर के चिप का आयात किया था। चिप का फिलहाल जितना बड़ा बाजार चीन में है, उतना इस समय दुनिया में कहीं और नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन के लिए ताइवानी निर्यात में बाधा पड़ी, तो ताइवान के चिप उद्योग को बहुत बड़ा नुकसान झेलना होगा। उधर चीन के इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को भी इससे उसी पैमाने पर क्षति होगी। फिलहाल चीन की ताइवान पर निर्भरता इतनी ज्यादा है कि ताइवान पर हमला करना उसके हित में नहीं होगा। ऐसे में उसके हमले की आशंका तभी पैदा होगी, अगर ताइवान अचानक अपनी स्वतंत्रता का एलान कर दे। ताइवान को चीन अपना हिस्सा समझता है। लेकिन चीन में कम्युनिस्ट क्रांति होने के बाद से वहां चीन सरकार का शासन नहीं है।