राजनैतिकशिक्षा

मुफ्त राशन, महंगा तेल

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत निःशुल्क राशन मुहैया कराने की अवधि 6 माह बढ़ाने का फैसला किया हैै। अब यह सुविधा 30 सितंबर, 2022 तक जारी रहेगी। इससे करीब 80,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ सरकारी खजाने पर आएगा। दूसरी ओर उप्र में योगी कैबिनेट ने अपने पहले फैसले के तहत मुफ़्त अनाज मुहैया कराने का समय 3 माह बढ़ाकर 30 जून, 2022 तक किया है। दोनों ही फैसले बेहद मानवीय हैं, क्योंकि कोरोना महामारी के 24 महीनों के बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। करीब 25 करोड़ लोग गरीबी-रेखा के तले जीने को विवश हैं। यह आज की विकराल समस्या है, क्योंकि बेरोज़गारी की राष्ट्रीय दर 8 फीसदी से अधिक है। जिनके रोज़गार आपदा के दौर में छिन गए थे, उनकी 100 फीसदी बहाली में कितना वक़्त लगेगा, शायद सरकारों के पास भी सटीक आकलन नहीं हैं।

हालांकि भारत सरकार में आर्थिकी से जुड़े शीर्ष अधिकारियों के सुझाव थे कि कोरोना-पूर्व की अर्थव्यवस्था की पूर्ण बहाली के लिए अब मुफ्त अन्न योजना बंद कर देनी चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी नहीं माने और योजना की अवधि बढ़ाने का निर्णय लिया। इस योजना पर राजनीतिक तौर पर संदेह भी व्यक्त किए जा रहे थे कि चुनावों के बाद इसे समाप्त किया जा सकता है अथवा कुछ कटौतियां संभव हैं! संदेह गलत साबित हुए। अब आसार ऐसे हैं कि 2024 के आम चुनावों तक यह योजना जारी रखी जा सकती है! बहरहाल केंद्र और राज्य दोनों के स्तर पर गरीबों को कमोबेश भुखमरी का शिकार नहीं होना पड़ेगा। यदि 6 माह के दौरान वितरित किए जाने वाले अनाज को भी जोड़ दिया जाए, तो भारत सरकार 1003 लाख मीट्रिक टन अनाज निःशुल्क ही गरीबों को मुहैया करा देगी। यह मात्रा अभूतपूर्व है। हालांकि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत, राशन डिपुओं के जरिए, सस्ता गेहूं और चावल उपलब्ध कराने की व्यवस्था बदस्तूर जारी रहेगी।

गरीब कल्याण अन्न योजना अतिरिक्त मानवीय सुविधा है। जन-कल्याण के राष्ट्रीय प्रयास के समानांतर एक विसंगति भी है कि पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। पांच राज्यों में चुनाव थे, लिहाजा 137 दिन तक पेट्रो पदार्थ महंगे नहीं हुए थे, लेकिन अब जनादेश आने और सरकारें बन जाने के बाद बीते 5 दिनों से हररोज़ 80 पैसे प्रति लीटर दाम बढ़ाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों के आकलन हैं कि पेट्रो पदार्थ 20-25 रुपए प्रति लीटर महंगे किए जाने हैं। यह किश्तों में लिया जाएगा। केंद्र सरकार की दलील रहती है कि तेल की कीमतों पर उसका नहीं, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का नियंत्रण होता है। तो फिर 137 दिन तक दाम क्यों नहीं बढ़े? बीते साल भी कुछ राज्यों में चुनाव थे, तब भी 84 दिनों तक तेल महंगा नहीं किया गया था। तेल का यह चुनावी अर्थशास्त्र हमारी समझ के परे है। जिस तरह तेल और रसोई गैस महंगे किए जा रहे हैं, उसका असर गरीब और मध्यवर्गीय लोगों पर ज्यादा पड़ता है, क्योंकि उनके आर्थिक संसाधन सीमित होते हैं। क्या सरकारों ने यह समीकरण तय किया है कि एक तरफ 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दिया जाए, तो दूसरी ओर तेल की कीमतें लगातार बढ़ाकर आम आदमी की जेब पर डाका डाला जाए? जन-कल्याण का यह समाज-शास्त्र भी समझ के परे है। पेट्रो पदार्थ महंगे होते रहेंगे, तो दूसरी कई वस्तुओं के भी दाम बढ़ेंगे। अब जरूरी यह लगता है कि जन-कल्याण भी जारी रहे और तेल की एक राष्ट्रीय नीति भी बनाई जाए।

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