राजनैतिकशिक्षा

हिजाब पर विराम

-सिद्वार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कर्नाटक में पिछले कुछ माह से हिजाब पर चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया। मंगलवार को हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने फैसले में कहा कि कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाजत नहीं मिलेगी। पिछले 74 दिन से इस मामले पर जारी घमासान को लेकर दिए फैसले में हाईकोर्ट ने दो अहम बातें कहीं। पहली- हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दूसरी- स्टूडेंट्स स्कूल या कॉलेज की तयशुदा यूनिफॉर्म पहनने से इनकार नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने हिजाब के समर्थन में मुस्लिम लड़कियों समेत दूसरे लोगों की तरफ से लगाई गईं सभी 8 याचिकाएं खारिज कर दीं। चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की तीन मेंबर वाली बेंच ने राज्य सरकार के 5 फरवरी को दिए गए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था। मंगलवार को फैसला सुनाने से पहले हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने कहा कि इस मामले में दो सवालों पर गौर करना अहम है। पहला- क्या हिजाब पहनना आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक आजादी के अधिकार में आता है। दूसरा- क्या स्कूल यूनिफॉर्म पहनने को कहना इस आजादी का हनन है। इसके बाद हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर बैन को सही ठहराया। कर्नाटक के उडुपी में हिजाब पहनने को लेकर शुरू हुआ विवाद बढ़ते हुए यहां तक पहुंच गया कि सरकार को राज्य भर के स्कूल, कॉलेज बंद करने पड़े। विवाद तब शुरू हुआ, जब उडुपी के एक कॉलेज में छह लड़कियों को अंदर जाने से इस आधार पर रोक दिया गया कि वे हिजाब पहने हुए हैं। विवाद में अगला मोड़ तब आया, जब कुछ लड़के भगवा गमछा डालकर आ गए। उनका कहना था कि अगर लड़कियों को हिजाब पहनने दिया गया तो हम भी भगवा गमछा डालेंगे। इसके बाद यह मामला आसपास के इलाकों में भी फैल गया और तनाव बढ़ने लगा। बहरहाल, ध्यान देने की बात है कि एक शहर के एक कॉलेज का छोटा सा मामला जो थोड़ी सी समझदारी से सुलझाया जा सकता था, न केवल एक महीने तक जारी रहा बल्कि फैलते हुए पूरे राज्य में इतने बड़े बवाल का कारण बन गया। अचानक ऐसा क्या हो गया कि विधायक की अगुवाई में चलने वाले उस कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से रोकने का नियम लागू करना अनिवार्य हो गया? फिर यह सवाल भी है कि जो विवाद कुछ लड़कियों और कॉलेज प्रशासन के बीच था, उसने राजनीतिक रंग कैसे ले लिया? साफ है कि यह विवाद जितना स्वत:स्फूर्त लगता है, उतना है नहीं। परदे के पीछे से इसमें राजनीति अहम भूमिका निभा रही है। इस इलाके में बीजेपी और पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के बीच चलने वाली रस्साकशी ही इस विवाद के मूल में है। हिजाब के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन करे रहे लड़के-लड़कियों को एसडीपीआई की स्टूडेंट विंग सीएफआई और बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीवीपी का समर्थन हासिल था। मगर दोनों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की इस लड़ाई का नतीजा यह हुआ कि जिन बच्चों को आपस में मिलजुल कर पढ़ाई पर ध्यान लगाना चाहिए था वे पहनावे के आधार पर एक-दूसरे को अपने विरोधी और दुश्मन की तरह देखने लगे। यह स्थिति न केवल शैक्षिक सत्र के लिए नुकसानदेह है बल्कि स्कूल-कॉलेजों के माहौल को लंबे समय तक के लिए दूषित कर सकती है। बता दें कि इस विवाद में पाकिस्तान भी कूद चुका है। पाकिस्तान के एक मंत्री फवाद चौधरी ने बयान दिया था कि हिजाब पहनने से छात्राओं को नहीं रोका जाना चाहिए। नोबल पुरस्कार प्राप्त मलाला यूसुफजई ने भी कहा है कि हिजाब न पहनने देना भयावह है। भारत के राजनीतिक दलों के नेता तो पहले ही इस मामले को लेकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी लगाए जाने के आदेश को अल्पसंख्यक लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने का षड्यंत्र करार दे दिया था। इन लोगों का बयान राजनीति की वजह से ही आया। कुल मिलाकर बात का बतंगड़ बनाया गया। जबकि सीधी सी बात यह है कि किसी भी स्कूल या कालेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए क्या पहनना है यह तय करना उन स्कूलों और कॉलेजों का काम है। हर शिक्षण संस्थान का अपना ड्रेस कोड होता है। वहां पढ़ने वालों को ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है। कोई भी कुछ भी पहनकर नहीं जा सकता। ऐसे में कर्नाटक में राज्य सरकार के फैसले को लेकर विवाद खड़ा करना शुद्ध राजनीति है। यह ठीक है कि हर राजनीतिक दल को विभिन्न मुद्दों को लेकर राजनीति करने का अधिकार है लेकिन छात्रों के कंधों पर बंदूक रख के निशाना साधना कतई उचित नहीं है।

 

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