राजनैतिकशिक्षा

किसे कष्ट है भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से

-आर.के. सिन्हा-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

अगर आप किसी ठोस आधार पर तैयार किये गए किसी प्रोजेक्ट में मीन-मेख निकालते हैं तो बात कुछ समझ में आती है। ये तो लोकतंत्र में आपका हक है। लोकतंत्र इतना हक सबको देता है। पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के आगे अवरोध एक पूरी रणनीति के तहत खड़ी की जा रही है। इसकी निंदा अकारण की जा रही है। कुछ तत्वों को लगता है कि इतना विशाल प्रोजेक्ट केन्द्र में मोदी सरकार की सरपरस्ती में बनने से उनकी भविषय की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर होगा। इस प्रोजेक्ट के आगे खड़े किए जाने वाले तमाम अवरोधों की कड़ी में ताजा मामला तब सामने आया जब इस पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। पर याचिकाकर्ता को लेने के देने पड़ गए। दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि निर्माण कार्य को नहीं रोका जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कोरोना वारयस वैश्विक महामारी के दौरान परियोजना रोके जाने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिका किसी मकसद से ‘‘प्रेरित’’ थी और ‘‘वास्तविक जनहित याचिका’’ नहीं थी। न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

दरअसल राष्ट्रीय महत्ता से जुड़े प्रोजेक्ट को किसी भी तरह से रुकवाने की कोशिश शर्मनाक है। इस प्रोजेक्ट को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी केंद्र पर कई बार हमला बोल चुके हैं। क्या उन्हें पता है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद सरकार का हर साल लगभग एक हजार करोड़ रुपए बचेगा जो उसे किराए के रूप में देना होता है। फिलहाल आजादी के 74 वर्ष बीतने के बाद भी केन्द्र सरकार के बहुत से दफ्तर प्राइवेट इमारतों से भी काम कर रहे हैं, जिसका सरकार को हर साल एक हजार करोड़ रुपये से अधिक किराए के रूप में देना पड़ता है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नई इमारतें बनने के बाद कोई भी सरकारी दफ्तर किराये की जगह से नहीं चलेगा।

एक बात और समझ ली जानी चाहिए कि अब जो भी नई सरकारी इमारतें बनेंगी वे सब गगनचुंबी होंगी। अब चार-पांच फ्लोर की इमारतों के बनने का दौर गुजर गया है। जब एडविन लुटियन देश की नई राजधानी की सरकारी इमारतों के डिजाइन बना रहे थे, तब दिल्ली की आबादी 14-15 लाख के आसपास थी। अब ये ढाई करोड़ को पार कर रही है। अब यहां कारों और दूसरे वाहनों की तादाद भी एक करोड़ से कहीं अधिक होगी। सभी नई इमारतों में पर्याप्त भूतल कार पार्किंग होगी। अभी किसी भी सरकारी दफ्तर में कारों की पर्याप्त पार्किंग की व्यवस्था नहीं है।

अभी यह कहना जल्दी होगा कि नए संसद भवन और बाकी बनने वाली इमारतों का डिजाइन किस स्तर का होगा। हां, इतना जान लें कि नई बनने वाली इमारतें डिजाइन के लिहाज से उतनी ही या उससे कहीं ज्यादा भव्य और बेहतरीन होगी जो लुटियंस और उनके साथियों ने डिजाइन की थीं। सरकार ने सेंट्रल विस्टा के विकास के लिये अहमदाबाद की मैसर्स एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एण्ड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को जिम्मेदारी सौंपी है। इसका अभीतक का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। इस फर्म ने मुंबई पोर्ट काम्प्लेक्स, गुजरात राज्य सचिवालय, आईआईएम, अहमदाबाद आदि के लाजवाब डिजाइन तैयार किये हैं। इसलिए इसकी क्षमताओं पर सवाल खड़े करना गलत होगा। सेट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिये कुल 6 नामीगिरामी आर्किटेक्चर फर्मों ने दावे पेश किये थे। उन सभी के दावों और पहले के कामों का गहराई से अध्ययन करने के बाद बाजी एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एन्ड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने मार ली।

कुछ सिरफिरे लोग कहते फिर रहे हैं कि अहमदाबाद की फर्म को इतने खास प्रोजेक्ट का दायित्व सौंपने में निष्पक्षत्ता और पारदर्शिता नहीं दिखाई गई। पर दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन के प्रमुख और राजधानी दिल्ली स्थित स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के डायरेक्टर प्रो.पी.एस.एन राव की अध्यक्षता वाली कमेटी पर बिना पुख्ता प्रमाणों के सवाल खड़े करना गलत है। वैसे भी लोकतंत्र में किसी की जुबान तो बंद की नहीं जा सकती है। ये सबको पता है कि जो सवाल खड़े कर रहे हैं वे एक खास एजेंडे के तहत ही काम कर रहे हैं। वे निश्चित ही बुरी तरह बेनकाब होंगे।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के आवास के साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण भी किया जाना है। सेंट्रल विस्टा परियोजना की सितंबर 2019 में घोषणा की गई थी। 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परियोजना की आधारशिला रखी थी। इसके अलावा एक केंद्रीय सचिवालय का भी निर्माण किया जाएगा। इसके साथ ही इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक तीन किलोमीटर लंबे ‘राजपथ’ में भी परिवर्तन प्रस्तावित है।

जब देश की राजधानी नई दिल्ली बनी तो यहां की सारी प्रमुख इमारतों को बनने में करीब 20 वर्षों का समय लगा था। पर सेंट्रल विस्टा का कार्य तो करोना कल में भी मार्च 2024 तक समाप्त हो जाएगा। यानी 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तक देश को सेंट्रल विस्टा नए रूप में मिलेगा। अब विनिर्माण क्षेत्र में नई-नई तकनीक आ गई है। इसमें काम बहुत तेज गति से होता है। इसलिए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो ही जाएगा ऐसा लगता है। सरकार की चाहत है कि संसद की नई इमारत भी 2022 तक बन जाए जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो। अगर आप संसद भवन के आसपास से गुजरे तो देखेंगे कि संसद भवन परिसर पर काम तेजी से चल रहा है। सारे परिसर को बड़े- बड़े बोर्डों से कवर किय जा चुका है।

मुझे एक घटना याद आती है प् पोलैंड जब आजाद हुआ तब पोलैंड की नई सरकार ने देश के सबसे बड़े चर्च को तोड़कर उसी स्थान पर एक नये सुन्दर चर्च के निर्माण का आदेश दियाप् इसकी आलोचना होने लगी प् लोगों ने कहा कि पोलैंड तो ईसाई देश है प् यहाँ पुराने सुंदर विशाल चर्च को तोड़कर वहां फिर से नए चर्च बनाये जाने का क्या तुक है प् पोलैंड के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री का तुक यह है कि वह चर्च अंग्रेज शासकों द्वारा निर्मित था जो हमें बार- बार हमारी गुलामी की याद दिलाता था प् हम यह नहीं चाहते कि हमारी नई पीढ़ियां गुलामी के चिन्हों को देखकर शर्मिंदा हों, इसीलिये हम देश में गुलामी के चिन्हों को नष्ट करके आजाद पोलैंड के नये चिन्हों का निर्माण करना चाहते हैंप्
मैंने यह उदहारण मात्र एक संकेत के रूप में दिया है प् कोई भी स्वाभिमानी प्रधानमंत्री गुलामी के प्रतीकों के साथ दिन-रात जी कैसे सकता है ? खैर इन बातों को छोड़िये यह तो यकीन मानिए कि नये सेंट्रल विस्टा की इमारतों का डिजाइन और इस सारे क्षेत्र की लैंड स्केपिंग विश्वस्तरीय होगी। विगत सालों और दशकों के दौरान नई दिल्ली की अनेक इमारतों की दशा वैसे भी बेहद खराब हो चुकी है। उनकी मेंटनेंस पर बार-बार करोड़ों खर्च करने से बेहतर है कि उनके स्थान पर आधुनिक और बेहतरीन इमारतें बनें। अंत में एक बात को नोट कर लें कि समूचे ष्सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्टष् पर मात्र 20 हजार करोड़ रुपए व्यय होने हैं। इतने धन की रिकवरी तो हो ही जाएगी क्योंकि सरकार को सेंट्रल विस्टा के बनने के बाद हर साल एक हजार करोड़ रुपए किराए पर खर्च नहीं करने होंगे।

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